डॉ0 अम्बेडकर शूद्रों को आर्य तथा सवर्ण मानते हैं

 

डॉ0 अम्बेडकर शूद्रों को आर्य तथा सवर्ण मानते हैं। उन्होंने उन लेखकों का जोरदार खण्डन किया है जो शूद्रों को अनार्य औेर ‘बाहर से आया हुआ’ मानते हैं। -


(1)-‘‘दुर्भाग्य तो यह है कि लोगों के मन में यह धारणा घर कर गयी है कि शूद्र अनार्य थे। किन्तु इस बात में कोई संदेह नहीं है कि प्राचीन आर्य साहित्य में इस सबन्ध में रंच मात्र भी कोई आधार प्राप्त नहीं होता।’’ (डॉ0 अम्बेडकर र वाङ्मय, खंड 7, पृ0 319)

(2) ‘‘धर्मसूत्रों की यह बात कि शूद्र अनार्य हैं, नहीं माननी चाहिए। यह सिद्धान्त मनु तथा कौटिल्य के विपरीत है।’’ (शूद्रों की खोज, पृ0 42)

(3) ‘‘शूद्र आर्य ही थे अर्थात् वे जीवन की आर्य पद्धति में विश्वास रखते थे। शूद्रों को आर्य स्वीकार किया गया था और कौटिल्य के अर्थशास्त्र तक में उन्हें आर्य कहा गया है। शूद्र आर्य समुदाय के अभिन्न जन्मजात और समानित सदस्य थे।’’ (डॉ0 अम्बेडकर र वाङ्मय, खंड 7, पृ0 322)

(4) ‘‘आर्य जातियों का अर्थ है चार वर्ण – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। दूसरे शदों में मनु चार वर्णों को आर्यवाद का सार मानते हैं।’’ (वही, खंड 8 पृ0 217)

(5) ‘‘मनुस्मृति 10.4 श्लोक (ब्राह्मणः क्षत्रियो वैश्यः …जो इसी अध्याय के आरभ में उद्धृत है) दो कारणों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। एक तो यह कि इसमें शूद्रों को दस्यु से भिन्न बताया गया है। दूसरे, इससे पता चलता है कि शूद्र आर्य हैं।’’ (वही, खंड 8, पृ0 217 पर टिप्पणी)

(6) ‘‘शूद्र सूर्यवंशी आर्यजातियों के एक कुल या वंश थे। भारतीय आर्य-समुदाय में शूद्र का स्तर क्षत्रिय वर्ण का था।’’ (वही, खंड 13, पृ0 165)
(छ) ‘‘सवर्ण का अर्थ है चारों वर्णों में से किसी एक वर्ण का होना। अवर्ण का अर्थ है चारों वर्णों से परे होना। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र सवर्ण हैं।’’ (शूद्रों की खोज, पृ0 15)

(7) ‘‘जो चातुर्वर्ण्य के अन्तर्गत होते थे, उच्च या निन, ब्राह्मण या शूद्र, उन्हें सवर्ण कहा जाता था अर्थात् वे लोग जिन पर वर्ण की छाप होती थी।’’ (अम्बेडकर र वाङ्मय खंड 6, पृ0 181)

महर्षि मनु की वर्णव्यवस्था के अन्तर्गत शूद्र आर्य और सवर्ण थे, शूद्र सबन्धी इन सिद्धान्तों में डॉ अम्बेडकर ने मनु का नाम लेकर उनके मत का समर्थन किया है, फिर भी मनु का विरोध क्यों?

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