मांश - पशु बलि और सनातन धर्म



 𝕃𝕠𝕣𝕕 𝕂𝕣𝕚𝕤𝕙𝕟𝕒 𝕆𝕡𝕡𝕠𝕤𝕖𝕤 𝔸𝕟𝕚𝕞𝕒𝕝 𝕊𝕒𝕔𝕣𝕚𝕗𝕚𝕔𝕖-


न ते मामङ्ग जानन्ति हृदिस्थं य इदं यत: ।

उक्थशस्‍‍‍‍‍त्रा ह्यसुतृपो यथा नीहारचक्षुष: ॥ २८ ॥

ते मे मतमविज्ञाय परोक्षं विषयात्मका: ।

हिंसायां यदि राग: स्याद् यज्ञ एव न चोदना ॥ २९ ॥

हिंसाविहारा ह्यालब्धै: पशुभि: स्वसुखेच्छया ।

यजन्ते देवता यज्ञै: पितृभूतपतीन् खला: ॥ ३० ॥

स्वप्नोपमममुं लोकमसन्तं श्रवणप्रियम् ।

आशिषो हृदि सङ्कल्प्य त्यजन्त्यर्थान् यथा वणिक् ॥ ३१ 

(Śrimad Bhagavatam 11:21:28-31)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 -My dear Uddhava, persons dedicated to sense gratification obtained through honoring the Vedic rituals cannot understand that I am situated in everyone’s heart and that the entire universe is nondifferent from Me and emanates from Me. Indeed, they are just like persons whose eyes are covered by fog.

Those who are sworn to sense gratification cannot understand the confidential conclusion of Vedic knowledge as explained by Me. Taking pleasure in violence, they cruelly slaughter innocent animals in sacrifice for their own sense gratification and thus worship demigods, forefathers and leaders among ghostly creatures. Such passion for violence, however, is never encouraged within the process of Vedic sacrifice.

Just as a foolish businessman gives up his real wealth in useless business speculation, foolish persons give up all that is actually valuable in life and instead pursue promotion to material heaven, which although pleasing to hear about is actually unreal, like a dream. Such bewildered persons imagine within their hearts that they will achieve all material blessings.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - हे उद्धव, वैदिक अनुष्ठानों का आदर करने से प्राप्त इन्द्रियतृप्ति के प्रति समर्पित लोग, यह नहीं समझ सकते कि मैं हर एक के हृदय में स्थित हूँ और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मुझसे अभिन्न नहीं है और मुझी से उद्भूत है। निस्सन्देह, वे उन व्यक्तियों के समान हैं जिनकी आँखें कुहरे से ढकी रहती हैं।

 जो लोग इन्द्रियतृप्ति के वशीभूत हैं, वे मेरे द्वारा बतलाये गये वैदिक ज्ञान के गुह्य मत को नहीं समझ सकते। वे हिंसा में आनन्द का अनुभव करते हुए अपनी ही इन्द्रियतृप्ति के लिए यज्ञ में निरपराध पशुओं का निष्ठुरता से वध करते हैं और इस तरह वे देवताओं, पितरों तथा भूत-प्रेतों के नायकों की पूजा करते हैं। किन्तु वैदिक यज्ञ-विधि में हिंसा की ऐसी उत्कट इच्छा को कभी प्रोत्साहन नहीं दिया जाता।

जिस तरह कोई मूर्ख व्यापारी व्यर्थ की व्यापारिक कल्पना में अपनी असली सम्पत्ति गँवा देता है, उसी तरह मूर्ख व्यक्ति जीवन की वास्तविक मूल्यवान वस्तुओं को त्याग कर स्वर्ग जाने के पीछे पड़े रहते हैं, जो सुनने में मोहक तो है किन्तु स्वप्न सदृश असत्य है। ऐसे मोहग्रस्त लोग अपने हृदयों में यह कल्पना करते हैं कि वे सारे भौतिक वर प्राप्त कर सकेंगे।

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 ℙ𝕦𝕣𝕒𝕟𝕒𝕤 /𝕊𝕒𝕞𝕙𝕚𝕥𝕒𝕤 𝕆𝕡𝕡𝕠𝕤𝕖𝕤 𝔸𝕟𝕚𝕞𝕒𝕝 𝕊𝕒𝕔𝕣𝕚𝕗𝕚𝕔𝕖 -


🍁Srimad Bhagavatam prohibited the meat eating and animals sacrifice -


◉ नारद उवाचभो भो: प्रजापते राजन् पशून् पश्यत्वयाध्वरे ।

संज्ञापिताञ्जीवसङ्घान्निर्घृणेन सहस्रश: ॥ ७ ॥

एते त्वां सम्प्रतीक्षन्ते स्मरन्तो वैशसंतव ।

सम्परेतम् अय:कूटैश्छिन्दन्त्युत्थितमन्यव: ॥ ८ ॥

(Śrimad Bhagvatam 4:25:7-8)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - The great saint Nārada said: O ruler of the citizens, my dear King, please see in the sky those animals which you have sacrificed without compassion and without mercy in the sacrificial arena. All these animals are awaiting your death so that they can avenge the injuries you have inflicted upon them. After you die, they will angrily pierce your body with iron horns.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - नारद मुनि ने कहा : हे राजन्, तुमने यज्ञस्थल में जिन पशुओं का निर्दयतापूर्वक वध किया है, उन्हें आकाश में देखो। ये सारे पशु तुम्हारे मरने की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिससे वे उन पर किये गये आघातों का बदला ले सकें। तुम्हारी मृत्यु के बाद वे अत्यन्त क्रोधपूर्वक तुम्हारे शरीर को लोहे के अपने सींगों से बेध डालेंगे।


◉ ये त्वनेवंविदोऽसन्त: स्तब्धा: सदभिमानिन: ।

पशून् द्रुह्यन्ति विश्रब्धा: प्रेत्य खादन्ति ते च तान् ॥ १४ ॥

(Śrimad Bhagvatam 11:5:14)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - Those sinful persons who are ignorant of actual religious principles, yet consider themselves to be completely pious, without compunction commit violence against innocent animals who are fully trusting in them. In their next lives, such sinful persons will be eaten by the same creatures they have killed in this world.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - वे पापी व्यक्ति, जो असली धर्म से अनजान होते हुए भी अपने को पूर्णरूपेण पवित्र समझते हैं, उन निरीह पशुओं के प्रति बिना पश्चाताप किये हिंसा करते हैं, जो उनके प्रति पूर्णतया आश्वस्त होते हैं। ऐसे पापी व्यक्ति अगले जन्मों में उन्हीं पशुओं द्वारा भक्षण किये जाएँगे, जिनका वे इस जगत में वध किये रहते हैं।


🍁 Rishis clearly declared Killing animals in Yajña is Adharma and must not be done. They Said it is GREAT ADHARMA to harm any animals in Yajñas and not in accordance to Vedas . Surprisingly that same verses are present in various scriptures -


महर्षयश्च तान् दष्ट्वादीनान् पशुगणांस्तदा । 

विश्वभुजं ते त्वपृच्छन् कथं यज्ञविधिस्तव ११ 

अधर्मो बलवानेष हिंसा धर्मेप्सया तव। 

नव पशुविधिस्त्विष्टस्तव यज्ञे सुरोत्तम । १२ 

अधर्मो धर्मघाताय प्रारब्धः पशुभिस्त्वया। 

नायं धर्मो ह्यधर्मोऽयं न हिंसा धर्म उच्यते । 

आगमेन भवान् धर्म प्रकरोतु यदीच्छति ॥ १३ 

विधिदष्टेन यज्ञेन धर्मेणाव्यसनेन तु ।

यज्ञबीजैः सुरश्रेष्ठ त्रिवर्गपरिमोषितैः ॥ १४


(Matsya Purana - Chapter 143 :Verse11-14)

(Vayu Purana - Chapter 57 :Verse 97-100)

(Laxminarayan Samhita 1:52:39-44)

(Brahmanda Purana - 2 : 30 : 17 -21)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - Upon seeing the animals, the sages stood up and asked Indra, "Oh King of the Devas, what kind of ritual is this in your yajna? Those who are eager to attain righteousness commit great sin by harming living beings. It appears that you are resorting to unrighteousness in order to destroy righteousness by causing harm to animals in your yajna. This is not righteousness, but rather it is sheer unrighteousness. Harming living beings is not considered as righteousness. Therefore, if you want to practice righteousness, perform the yajna according to the Vedic injunctions. By performing the yajna and following the Vedic injunctions and abstaining from harmful practices, the attainment of the three goals of life (dharma, artha, kama) is possible.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - महर्षि उन दीन पशुओं को देखकर उठ खड़े हुए और वे इन्द्र से पूछने लगे- 'देवराज! आपके यज्ञ की यह कैसी विधि है? आप धर्म प्राप्ति को अभिलाषा से जो जीव हिंसा करनेके लिये उद्यत हैं, यह महान् अधर्म है। सुरश्रेष्ठ! आपके यज्ञ में पशु हिंसा की यह नवीन विधि दीख रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि आप पशु-हिंसाके व्याजसे धर्मका विनाश करनेके लिये अधर्म करनेपर तुले हुए हैं। यह धर्म नहीं है। यह सरासर अधर्म हैं। जीव-हिंसा धर्म नहीं कही जाती। इसलिये यदि आप धर्म करना चाहते हैं तो वेदविहित धर्मका अनुष्ठान कीजिये। वेदविहित विधि के अनुसार किये हुए यज्ञ और दुर्व्यसन रहित धर्म के पालन से यज्ञ के  त्रिवर्ग (नित्य धर्म, अर्थ, काम) की प्राप्ति होती है।


🍁Taittiriya Samhita of the Yajurveda also sheds sufficient light on the subject of animal sacrifice. Such as:


दधि मधु घृतमापों धाना भवन्त्येतद्वै पशूनां रूपम्। रूपेर्णेव पशूनवरुन्धे ।।

(Taittiriya Samhita 2 :3 : 2: 8 )


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - Curd, honey, ghee, milk, roasted barley - these are certainly taken as the forms of animals (in sacrifice) . By means of these forms alone, I hinder the animals.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - दही, मधु, घी, जल ( दूध ), भुने हुए जौ - ये, निश्चय से, पशुओं के रूप हैं, इन रूपों के द्वारा ही पशुओं का अवरोध करता हूँ । 


This passage clearly states that the form or nature of animals is curd, ghee, etc. It is the acceptance of curd, ghee, etc. that is the acceptance of animals."


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𝕄𝕒𝕙𝕒𝕓𝕙𝕒𝕣𝕒𝕥𝕒 𝕆𝕡𝕡𝕠𝕤𝕖𝕤 𝔸𝕟𝕚𝕞𝕒𝕝 𝕊𝕒𝕔𝕣𝕚𝕗𝕚𝕔𝕖 -


🍁 King of Chedi Vasu lied on animal sacrifice so he was sent to the Rasatala Loka by Lord as a punishment - 


महाभाग कथं यज्ञेष्वागमो नृपसत्तम ।

यष्टव्यं पशुभिर्मुख्यैरथो बीजै रसैरिति ॥ २१ ॥

तच्छ्रुत्वा तु वसुस्तेषामविचार्य बलाबलम् ।

यथोपनीतैर्यष्टव्यमिति प्रोवाच पार्थिवः ॥ २२ ॥ 

एवमुक्त्वा स नृपतिः प्रविवेश रसातलम् ।

उक्त्वाथ वितथं प्रश्नं चेदीनामीश्वरः प्रभुः ॥ २३ ॥ 

(Mahabharata -Ashwamedhika Parva : 91 21-23)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - "Great king, what is the view of the scriptures regarding performing sacrifices? Should they be performed by the main animals or through seeds and juices? Hearing both sides, King Vasu did not consider whether there was any essence or uselessness in their statements, and he simply said, "Whatever you get perform the sacrifice with it." Saying this and giving a false decision, King Vasu had to go to the Rasatala."


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - 'महाभाग नृपश्रेष्ठ ! यज्ञों के विषय में शास्त्र का मत कैसा है ? मुख्य-मुख्य पशुओं द्वारा यज्ञ करना चाहिये अथवा बीजों एवं रस द्वारा ' ॥ २१ ॥  यह सुनकर राजा वसु ने उन दोनों पक्षों के कथन में कितना सार या असार है, इसका विचार न करके यों ही बोल दिया कि "जब जो वस्तु मिल जाय, उसी से यज्ञ कर लेना चाहिये" || २२ ॥ इस प्रकार कहकर असत्य निर्णय देनेके कारण चेदिराज वसु को रसातल में जाना पड़ा ॥ २३ ॥


🍁 Rishis told the Devtas that Aja means seed, killing animals in Yajña is not allowed - 


ऋषय ऊचुः बीजैर्यज्ञेषु यष्टव्यमिति वै वैदिकी श्रुतिः । अजसंज्ञानि बीजानि च्छागं नो हन्तुमर्हथ ॥ ४ ॥

(Mahabharata - Shanti Parva : 337 :4)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - The Rishis said - "O Devtas ! According to Vedas, yajnas should be performed by seeds. The name for seeds is Aja (which means unborn or unmanifest); therefore, it is not appropriate to kill a goat." 


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - ऋषियों ने कहा- देवताओ ! यज्ञों में बीज द्वारा यजन करना चाहिये, ऐसी वैदिक श्रुति है। बीजों का ही नाम अज है ; अतः बकरे का वध करना उचित नहीं है ॥ ४ ॥


🍁 Mahabharata itself clear that only wicked person do such act -


सुरां मत्स्यान्मधु मांसमासवं कृसरोदनम्। 

धूतैः प्रवर्तितं ह्येतन्नैतद्वेदेषु कल्पितम् ॥ 

मानान्मोहाच्च लोभाच्च लौल्यमेतत्प्रकल्पितम् । विष्णुमेवाभिजानन्ति सर्वयज्ञेषु ब्राह्मणाः॥ 

पायसैः सुमनोभिश्च तस्यापि यजनं स्मृतम्। 

यज्ञियाश्चैव ये वृक्षा वेदेषु परिकल्पित: ।।

(Mahabharata - Shanti Parva : 265:9-11)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - Alcohol, fish, meat, etc., all these practices are being driven by the wicked. There is no evidence of such behavior in the Vedas. It is the desire, illusion, greed, and tongue-liking that drive the business of meat, alcohol, and fish. Brahmins consider Bhagavan Vishnu with great reverence in all the yajnas and worship him with offerings such as Kheer (a sweet dish) and flowers. 


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - सुरा, मछली, मदिरा, माँस आदि यह सारा व्यवहार धूर्तों का चलाया हुआ है। ऐसे व्यवहार का वेदों में कोई प्रमाण नहीं है। मान, मोह, लोभ और जिव्हा लोलुपता से यह माँस, मदिरा, मछली का व्यापार चल रहा है। ब्राह्मण तो सम्पूर्ण यज्ञों में भगवान विष्णु का ही आदर भाव मानते हैं और खीर तथा फूल आदि से ही उनकी पूजा करते हैं। 


🍁 Those who eat meet in the name of Dharma are Adharmis sinful persons-


अव्यवस्थितमर्यादैर्विमूढैर्नास्तिकैर्नरैः । संशयात्मभिरव्यक्तैहिंसासमनुवर्णिता ॥ ४॥ सर्वकर्मस्वहिंसा हि धर्मात्मा मनुरब्रवीत्। कामकाराद्विहिंसन्ति बहिर्वेद्यां पशून् नराः ॥ ५॥

तस्मात् प्रमाणत: कार्यो धर्मः सूक्ष्मो विजानता । 

अहिंसा सर्वभूतेभ्यो धर्मेभ्यो ज्यायसी मता ॥ ६ ॥ 

यदि यज्ञांश्च वृक्षांश्च यूपांश्नोद्दिश्यमानवाः। 

वृथा मांसं न खादन्ति, नैष धर्मः प्रशस्यते ॥ ७ ॥

(Mahabharata - Shanti Parva : 265: 4-7)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - "Only those who are narrow-minded, have no boundaries, are atheists, foolish, and skeptical have made provision for violence in the Yajna. But actually there is no violence in Yajna. Manu has also praised non-violence. It is the duty of the Brahmins to practice subtle righteousness according to non-violence. Non-violence is the best Dharma among all Dharma . Those who eat meat by committing animal slaughter for religious purposes, their Dharma is not praiseworthy in any way."


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - उच्छृंखल, मर्यादाशून्य, नास्तिक, मूढ़ तथा संशयात्मक लोगों ने ही यज्ञ में हिंसा का विधान बना दिया है। यज्ञ में हिंसा नहीं होनी चाहिए। मनु ने भी अहिंसा की प्रशंसा करी है। ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि अहिंसा के अनुसार सूक्ष्म धर्मानुष्ठान करें।

सभी धर्मों में अहिंसा ही श्रेष्ठ धर्म है। जो मनुष्य धार्मिक उद्देश्यों से पशुहत्या करके माँस खाते हैं, उनका धर्म किसी भी तरह प्रशंसनीय नहीं है।


◉That was also cleared in Matsya Purana I  which Narayan Muni gave the instructions to the Brahmin about the Vedic Yajna don't have concept of Animal sacrifice and later he explained what they actually need to sacrifice - 


अन्नैर्व्रीह्यादिभिर्यज्ञाः पयोदधिघृतादिभिः । 

रसैश्च क्रियतां तेन तृप्तिं यास्यन्ति देवताः ।। ४२ 

सात्विका देवताः प्रोक्ताः तामसा असुरास्तथा । 

राजसा मनुजाः शास्त्रे ह्यूर्ध्वाधोमध्यवासिनः ।। ४३ 

मद्यमांसप्रिया दैत्याः तामसत्वाद्बवन्ति च । 

देवास्तु सात्विका ब्रह्मन्नन्नाज्यादिरसप्रियाः ।। ४४ 


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - Perform the Yajna by offering grains such as rice, yava (barley) and aqueous liquids like milk, curds and ghee. This is the way to satisfy the Devtas (Demigods) . According to the scriptures, the Devtas are of a sattvic nature, the Demons are tamasik, and humans are rajasic due to their materialistic desires. Because of their tamasic nature, the demons are attracted to alcohol and meat. The Devtas being Sattvik personified, they like pure food, ghee and other substances made of grains etc.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 -  धान आदि अन्न, दूध, दही, घृतादि तथा रस" इन द्वारा ही यज्ञ करो। इसी से देवता तृप्त होंगे। यह शास्त्रसम्मत है कि देव सात्विक हैं, असुर तामस और मनुष्य राजस हैं अपने भौतिक कामनाओं के कारण।  तमोगुणी होने के कारण दैत्य शराब और मांस में रुचि रखते हैं। देव सत्वगुणी हैं, अतः उनकी रुचि घी आदि रसों में है।

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ℕ𝕒𝕣𝕒𝕕𝕒 ℙ𝕒𝕟𝕔𝕙𝕣𝕒𝕥𝕣𝕒 𝕔𝕝𝕒𝕚𝕞 𝕥𝕙𝕖 𝕤𝕒𝕞𝕖 -


It is written in the Narada Pancaratra that there is no mention of violence anywhere in the Vedas. This verse has also been quoted by the Sripada  Madhavacharya and Sripada Ramanujacharya in their various Bhashyas -


श्रुतिर्वदति विश्वस्य जननीव हिंतं सदा कस्यापि द्रोहजननं न वक्ति प्रभुतत्परा ।।


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - The Shruti (Vedas) is like a mother who teaches the principles of welfare for all living beings. It does not give permission for the killing or harm of any particular species or individual.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - श्रुति (वेद) माता की न्याई सम्पूर्ण प्राणियों के हित का उपदेश करती है। वह किसी जाति या प्राणीविशेष के द्रोह (हत्या) के लिये आज्ञा नहीं देती।


In this verse, the Vedas are referred to as a mother. Just as a mother does not want harm to come to any of her children, the Vedas also want the welfare of all living beings. All living beings are like the children of the Vedas. Therefore, how can the Vedas, as a mother, give permission for the killing of any of her children?


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🚩🚩🚩𝕍𝕖𝕕𝕒𝕤 ( 𝕊𝕙𝕣𝕦𝕥𝕚 ) 𝕆𝕡𝕡𝕠𝕤𝕖𝕤 𝔸𝕟𝕚𝕞𝕒𝕝 𝕊𝕒𝕔𝕣𝕚𝕗𝕚𝕔𝕖 -


🍁 Prohibited violence against horse -


इमं मा हिंसीऐकशफं पशुं कनिक्रदं वाजिनं वाजिनेषु ।।  ( Yajurveda - 13 : 48 )


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - इस एक खुर वाले पशु की हिंसा न कर। जो कि हेषा - शब्द वारम्वार करता और जो वेगवालों में अत्यन्त वेग वाला है।


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - "Meaning: Do not harm a uncut hoof animal. It repeatedly makes the sound 'heshah' and is very fast among the fast. 


This Mantra prohibited Horse sacrifice.


🍁 Prohibited violence against animals and created authority of punishment -


यो अर्वन्तं जिघांसति तमभ्यमीति वरुणः परो मर्तः परः श्वा  (Yajurveda - 22 : 5)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - One who desires to kill a horse or any other animal, Varuna punishes that person. Such a violent person should be separated from our society, just like a dog.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - जो मनुष्य, अर्वा अर्थात् अश्व के हनन की इच्छा करता है, वरुण, उस मनुष्य का बध करता है। वह हिंसक मनुष्य हमारे समाज से पृथक्' होजाय, वह कुत्ता' हमारे समाज से पृथक् हो जाय।


🍁 Prayer for  overcoming the addiction of meat eating -


य आमं मांसमदन्ति पौरुषेयं च येक्रवि:। 

गर्भान खादन्ति केशवास्तानितो नाशयामसि।। (Atharvaveda -8:6:23)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - Destroy this evil addiction of eating raw meat or cooked meat consumed by humans.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - जो कच्चा मांस खाते हैं,जो मनुष्यों द्वारा पकाया हुआ मांस खाते हैं,इस दुष्ट व्यसन का नाश करो।


🍁 Prohibited the sacrifice of animal in Yajna (Yagya)-


नकि देवा इनीमसि नक्या योपयामसि' | मन्त्रश्रुत्यं चरामसि ।।

(Samveda -  2:7:2)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - O Devtas! We do not commit violence or any other sin in Yajna. We follow only the mantras or the Vedas that we have heard.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - हे देवो! हम हिंसा नहीं करते, और न अन्यथानुष्ठान ही करते हैं। जो मन्त्र अर्थात् वेद में सुना है उसी का आचरण करते हैं।


Acharya Sayan in his commentary on this Mantra wrote the same -

हे (देवाः) इन्द्रादयाः! युष्मद्विषये (न कि इनीमसि न किमपि हिंस्मः ; (नकि) न च (योपयामसि ) योपयामः, अननुष्ठानेन, अन्यथानुष्ठानेन वा मोहयामः। किंतर्हि? । (मन्त्रश्रुत्यम्) मन्त्रेण स्मार्ये, श्रुतौ विधिवाक्यप्रतिपाद्यं यद् युस्मद्विषयं कर्म, तत् (चरामसि) आचरामः अनुतिष्ठामः । 


अर्थ - हे इन्द्रादि देवताओ! आप के लिये हम किसी प्रकार की हिंसा नहीं करते, और सत्कर्मों के न करने या अन्यथा करने से कर्म-विघात भी नहीं करते। किन्तु आप के उद्देश से जो कर्म वेद में विहित हैं, उन्हीं कर्मों का हम अनुष्ठान करते हैं।


🍁 Death as a punishment who killed innocent animals and eat it -


यः पौरुषेयेणा क्रविषा समङ्के यो आइष्येन पशुना यातुधानः । यो अध्याया भरति क्षरिमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसाऽपि वृश्व ।।

(Atharvaveda - 8:3:25)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - O Agni, who is the embodiment of fire! Cut the heads of those who nourish themselves with the flesh of horses and other animals, and who kill cows which are not meant for slaughter and by doing this they become reason for stealing their milk.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - जो मनुष्य, घोड़े तथा अन्य पशु पक्षियों के मांस से अपने आप को पुष्ट करता है, तथा जो  हनन न करने योग्य गौओं का हनन कर उन के दूध का अपहरण करता है, हे अग्निस्वरूप राजन् ! तू उन के सिरों को वज्र से काट डाल ।


🍁 Prayer for the teeth that it eat only Satvika food -


व्रीहिमत्तं यवमत्तमयो भाषाथो तिलम् । एष वां भागो निहितो रत्नधेयाय दन्तौ, मा हिंसिष्ट पितरं मातरं च ।। (Atharvaveda 6: 140: 2)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - O teeth! Eat rice, barley, gram, and sesame. This food is your rightful share. By consuming this, you will get beautiful results. Do not commit violence against animals which are able to become parents.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - हे दाँतो ! तुम धान खाओं, जौ खाओ, माप खाओ, तथा तिल खाओ। यह अन्न ही तुम्हारा नियत हिस्सा है। इसके भक्षण से तुम्हें रमणीय फल मिलेगा। तुम पिता और माता बनने योग्य प्राणियों की हिंसा न करो।

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ℍ𝕚𝕤𝕥𝕠𝕣𝕚𝕔𝕒𝕝 𝔼𝕧𝕚𝕕𝕖𝕟𝕔𝕖 -


Panchtantra is a ancient story book which contain thousands of stories that have deep moral values . In Panchatantra, Tantra 3, Story 2, the following lines relate to the word 'Aja':


एतेऽपि ये यज्ञिका यक्षकर्मणि पशून्व्यापादयन्ति ते मूर्खाः परमार्थे श्रुतेर्न जानन्ति । तब किलैतदुक्तमजैर्यष्टव्यमिति ।

अजा ब्रीहयस्तावत्सप्तवार्षिकाः कत्थ्यन्ते न पुनः पशुविशेषाः । । 

(Panchatantra : Tantra 3 : Story 2)


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - Those Yajniks who perform animal sacrifice during Yajna are ignorant and don't know the true essence of the Vedas. The Vedas only state that 'aja' should be used in the Yajna Sacrifice, but it was misinterpreted as a specific type of animal. But actually the terms 'aja' means "Seven years old rice" not specified as sacrificial animals.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 -  जो याज्ञिक लोग यज्ञकर्म में पशुओं का घात करते हैं वे मूर्ख वेद के परम अर्थ को नहीं जानते। वेद में इतना ही कहा है कि अज द्वारा यज्ञ करना चाहिये। परन्तु अज' शब्द का अर्थ है “सात वर्ष के पुराने धान" न कि पशु विशेष |


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ℕ𝕠𝕨 𝕔𝕠𝕞𝕚𝕟𝕘 𝕥𝕠 𝕄𝕒𝕟𝕦𝕤𝕞𝕣𝕚𝕥𝕚 𝕚𝕤𝕤𝕦𝕖 -


Some Smritis says that Manusmriti is only for Satyuga. But still many people believed in this authority.


🍁Que -Is meat eating allowed in Manusmriti?


Ans - Yes , it is allowed only when the life is in danger -


प्रोक्षितं भक्षयेन् मांसं ब्राह्मणानां च काम्यया ।

यथाविधि नियुक्तस्तु प्राणानामेव चात्यये ॥ २७ ॥

(Manusmriti:5:27)

He may eat meat that has been consecrated; also at the wish of Brāhmaṇas; and when invited according to law; and when his life is in danger.


🍁Otherwise these all verses of Manusmriti chapter 5 Verse 45 to 54 clearly prohibited the meat eating - 


योऽहिंसकानि भूतानि हिनस्त्यात्मसुखेच्छया ।

स जीवंश्च मृतश्चैव न क्वचित्सुखमेधते ।।४५

यो बन्धनवधक्लेशान्प्राणिनां न चिकीर्षति ।

स सर्वस्य हितप्रेप्सुः सुखमत्यन्तमश्नुते ।।४६

नाऽकृत्वा प्राणिनां हिंसां मांसमुत्पद्यते क्वचित्।

न च प्राणिवधः स्वर्ग्यस्तस्मान्मांसं विवर्जयेत् ।।४८

समुत्पत्तिं तु मांसस्य वधबन्धौ च देहिनाम् ।

प्रसमीक्ष्य निवर्तेत सर्वमांसस्य भक्षणात् ।।४९

 न भक्षयति यो मांसं विधिं हित्वा पिशाचवत् ।

स लोके प्रियतां याति व्याधिभिश्च न पीड्यते ।।५०

अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी ।

संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चैति घातकाः ।।५१

वर्षे वर्षेऽश्वमेधेन यो यजेत शतं समाः ।

मांसानि च न खादेद्यस्तयोः पुण्यफलं समम् ।।५३

फलमूलाशनैर्मेध्यैर्मुन्यन्नानां च भोजनैः ।

न तत्फलमवाप्नोति यन्मांसपरिवर्जनात् ।।५४


𝗘𝗻𝗴𝗹𝗶𝘀𝗵 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - The living beings that are not fit for slaughter, if anyone kills them for their own pleasure, then even in their living state, they are as good as dead and they do not find any happiness anywhere.

Those humans who do not desire to keep any living being in captivity, kill them, or cause them suffering, are beneficial for all, and therefore they enjoy infinite happiness.

Without violence against living beings, obtaining meat is not possible, and violence against living beings is an obstacle to attaining heaven and special happiness. Therefore, one should never indulge in meat-eating.

Considering the origin of meat, the captivity of living beings, and their violence, one should abandon meat-eating in every way.

Those humans who do not indulge in meat-eating like a demon by abandoning the principles, become dear to everyone in the world and do not suffer in times of calamity.

Those who permit the killing of animals, cut meat with weapons, kill, buy, sell, cook, serve, and eat, all are killers, that is, butchers.

A person who performs the Ashwamedha Yajna once a year for a hundred years, and another person who does not eat meat, both attain the same merit.

Human beings do not obtain the benefits of holy fruits such as apples, bananas, etc., carrots, radishes, etc. root vegetables, and the food of the munis (sages) by eating them, which are obtained by giving up meat-eating.


𝗛𝗶𝗻𝗱𝗶 𝗧𝗿𝗮𝗻𝘀𝗹𝗮𝘁𝗶𝗼𝗻 - जो जीव वध-योग्य नहीं हैं,उनको जो कोई अपने सुख के निमित्त मारता है,वह जीवित दशा में भी मृतक-तुल्य है,वह कहीं भी सुख नहीं पाता है।

जो मनुष्य किसी जीव को बन्धन में रखने,वध करने व क्लेश देने की इच्छा नहीं रखता है,वह सबका हितेच्छु है,अतएव वह अनन्त सुख भोगता है।

जीवों की हिंसा बिना मांस की प्राप्ति नहीं होती और जीवों की हिंसा स्वर्ग-प्राप्ति (सुखविषेश) में बाधक है,अतः मांस-भक्षण कदापि नहीं करना चाहिए।

मांस की उत्पत्ति,जीवों का बन्धन तथा उनकी हिंसा-इन बातों को देखकर सब प्रकार से मांस-भक्षण का त्याग करना चाहिए।

जो मनुष्य विधि त्यागकर पिशाच की तरह मांस-भक्षण नहीं करता वह संसार में सर्वप्रिय बन जाता है और विपत्ति के समय कष्ट नहीं पाता।

 पशु-हत्या की अनुमति देने वाला,शस्त्र से मांस काटने वाला,मारने वाला,खरीदने वाला,बेचने वाला,पकाने वाला,परोसने वाला और खाने वाला,ये सब घातक अर्थात् कसाई हैं।

जो मनुष्य सौ वर्ष-पर्यन्त प्रत्येक वर्ष एक बार अश्वमेध यज्ञ करता है तथा अन्य पुरुष जो मांसभक्षी नहीं है,इन दोनों के पुण्य का फल समान है।

मनुष्य को सेब,केला आदि पवित्र फल,गाजर,मूली आदि कन्दमूल और मुनी-अन्न के खाने से वह फल प्राप्त नहीं होता,जो मांस-भक्षण के परित्याग से प्राप्त होता है।


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