वर्ण व्यवस्था पर श्रीपाद माधवाचार्य के विचार






1.


 आर्ज्जवं ब्राह्मणे साक्षात् शूद्रोऽनार्ज्जवलक्षणः ।

गौतमस्त्विति विज्ञाय सत्यकाममुपानयत् ॥

(Sripada Madhavacharya: Chhandogya Upnishad commentary )

English translation — Simplicity exists in brahmins and crookedness in shudras. Haridrumat Gautam, expressing such an opinion on virtues, bestowed the Upanayana or Savitya Sanskar to Satyakama Jabal.

अर्थ – ब्राह्मण में साक्षात् सरलता एवं शूद्र में कुटिलता विद्यमान होती है। हारिद्रुमत गौतम ने गुणों पर ऐसा मत प्रकट करते हुए सत्यकाम जाबाल को उपनयन अथवा सावित्र्य संस्कार प्रदान किया ।

  1. Note -Satyakāma Jābāla was the son of a prostitute. He was not a brāhmin son. So he wanted to become brāhmin. So he went to Gautama Muni, by seeing the truthfulness and behavior of Satyakam, Gautam Rishi initiated him. Later he wrote jabala upnishad and wrote other some Vedic verses… 


2.


 

ब्रह्मविद् ब्रह्मैव भवतीत्यादि च 'सम्पूज्य ब्राह्मणंभक्त्या शुद्रोपि ब्राह्मणो भवेदितिवत् बृंहितो भवतीत्यर्थः । न हि ब्राह्मणपूजकः स एव ब्राह्मणो भवति ।

(Sripada Madhavacharya: Vishnutattva Nirnaya -Sutra 65 )

English translation— 'ब्रह्मविद् ब्रह्मैव भवतीत्यादि च' means that he attains greatness like Brāhman (It does not mean that he will attain identity with Brāhman). This passage has to be understood like the statement that 'A Südra who worships a Brāhmaṇ with devotion will become a Brahmin. A Sudra who worships a Brāhmaṇ will not become the same Brahman.

अर्थात - 'ब्रह्मविद् ब्रह्मैव भवतीत्यादि च' का अर्थ है कि वह ब्रह्मज्ञानी ब्रह्मसमान महानता प्राप्त करता है , इसका यह अर्थ नहीं है कि वह ब्रह्म के साथ तादात्म्य प्राप्त कर लेगा। एक ब्रह्मज्ञानी शूद्र जो ब्रह्म उपासना करता है वह ब्राह्मण बन जाएगा। एक शूद्र जो ब्रह्म की पूजा करता है, वह स्वयं ब्रह्म नहीं बनेगा ।

  1. Note - Please don't get confused between Brahman and Brahmin . 
  2. Brahman (ब्रह्म) referred to Om (Pranav), the supreme form of God which is the source of all energies. 
  3. Brahmin (ब्राह्मण ) referred to a Varna of Chaturvarna. 

 

3.

 


Sripad Madhvacharya has further propounded this topic in "Tatparya Nirnaya" -

अधिकाश्चेद् गुणा: शूद्रे ब्रह्मणादि: स उच्छ्यते ब्रह्मणोऽप्यल्पगुणक:द्र एवेति कीर्तित:

(Sripada Madhavacharya: Śrimad Bhagvat Gita Tatparya 18:48)

English translation- If there are superior attributes in a Shudra, he is known as Brahmin; and if a Brahmin has inferior attributes he will be known as Shudra.

अर्थ- यदि शूद्र में श्रेष्ठ भाव हैं तो उसे ब्राह्मण कहा जाता है और निम्न गुणों वाले ब्राह्मण को शूद्र के रूप में जाना जाता है।


4.




अन्त्यजा अपि ये भक्ता नामज्ञानाधिकारिण:

स्त्री शूद्रब्रह्मबन्धूनां तन्त्रज्ञानेऽधिकारिता།

..

आहुरप्युत्तमस्त्रीणामधिकरं तु वैदिके །

यथोर्वशी यमी चैव शच्याद्याश्च तथाऽपरा ॥ इति ॥

~( Sripada Madhavacharya, Brahmasutra Bhashya:1:1:1)

English translation — Even lowest born devotee is Qualified for Wisdom & knowledge of "Naam" Divine essence/Name of Lord. Women & shudra who are knowledgeable are also eligible for knowledge in Puranas, Itihasa and Agama.

Elevated Women is QUALIFIED for Vedas and eligible for brahmavichara. For example there are Women sages such as Urwashi,Yami & Sachi.

Hindi translation — यहां तक ​​कि सबसे कम जन्म लेने वाले अंत्यज भक्त "नाम" के दिव्य सार / भगवान के नाम के ज्ञान और ज्ञान के लिए योग्य हैं। स्त्री और शूद्र जो ज्ञानी हैं, वे पुराण, इतिहास और आगम अध्ययन के पात्र हैं।

उन्नत महिलाएं वेदों के लिए योग्य हैं और ब्रह्मविचार के लिए पात्र हैं।उदाहरण के लिए उर्वशी, यमी , साची जैसी महिला विदुषी हुई है।

He is the only Bhasyakara who has recognised the existence of women of the highest spiritual attainments, eligible for Brahmavicara through the Vedanta .


5.




विष्णुभक्तिश्चनुगता सर्ववर्णेषु विश्पतिम्

(Sripada Madhavacharya: Śrimad Bhagvat Gita Tatparya 4:13)

Meaning- The "pure sattvik devotee" of Vishnu is above the division of the four varnas.

अर्थ- विष्णु के "शुद्ध सात्विक भक्त" चार वर्णों के विभाजन से ऊपर है।



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