बृहदारण्यक उपनिषद् में ब्रह्मविद्या की ज्ञाता गार्गी वाचक्नवी नामक विदुषी का उल्लेख है। उसने ब्रह्मविद्या के सर्वोच्च ज्ञाता ऋषि याज्ञवल्क्य से संवाद किया था -
अथ हैनं गार्गी वाचक्नवी पप्रच्छ याज्ञवल्क्येति होवाच यदिदं सर्वमप्स्वोतं च प्रोतं च कस्मिन्नु खल्वाप ओताश्च प्रोताश्चेति वायौ गार्गीति कस्मिन्नु खलु वायुरोतश्च प्रोतश्चेत्यन्तरिक्षलोकेषु गार्गीति कस्मिन्नु खल्वन्तरिक्षलोका ओताश्च प्रोताश्चेति गन्धर्वलोकेषु गार्गीति कस्मिन्नु खलु गन्धर्वलोका ओताश्च प्रोताश्चेत्यादित्यलोकेषु गार्गीति कस्मिन्नु खल्वादित्यलोका ओताश्च प्रोताश्चेति चन्द्रलोकेषु गार्गीति कस्मिन्नु खलु चन्द्रलोका ओताश्च प्रोताश्चेति नक्षत्रलोकेषु गार्गीति कस्मिन्नु खलु नक्षत्रलोका ओताश्च प्रोताश्चेति देवलोकेषु गार्गीति कस्मिन्नु खलु देवलोका ओताश्च प्रोताश्चेतीन्द्रलोकेषु गार्गीति कस्मिन्नु खल्विन्द्रलोका ओताश्च प्रोताश्चेति प्रजापतिलोकेषु गार्गीति कस्मिन्नु खलु प्रजापतिलोका ओताश्च प्रोताश्चेति ब्रह्मलोकेषु गार्गीति कस्मिन्नु खलु ब्रह्मलोका ओताश्च प्रोताश्चेति स होवाच गार्गि मातिप्राक्षीर्मा ते मूर्धा व्यपप्तदनतिप्रश्न्यां वै देवतामतिपृच्छसि गार्गि मातिप्राक्षीरिति ततो ह गार्गी वाचक्नव्युपरराम ॥ १ ॥
(बृहदारण्यक उपनिषद् 3.6.1)
अर्थ- पश्चात् प्रसिद्ध याज्ञवल्क्य से वचक्नु कन्या गार्गी ने पूछा, हे मुनि याज्ञवल्क्य! वह बोली जो यह सब जल में ओत-प्रोत है तो जलं किसमें ओत-प्रोत हैं?
याज्ञवल्क्य-हे गार्गी! वायु में।
गार्गी-वायु किस में ओत-प्रोत है?
याज्ञवल्क्य-हे गार्गी? अन्तरिक्ष लोक में।
गार्गी-अन्तरिक्ष लोक किसमें ओत-प्रोत है ?
याज्ञवल्क्य -हे गार्गी गन्धर्व लोक में
गार्गी- गन्धर्वलोक किसमें ओत-प्रोत हैं।
याज्ञवल्क्य -हे गार्गी! आदित्य लोक में
गार्गी-आदित्य लोक किसमें ओत-प्रोत हैं ?
याज्ञवल्क्य -हे गार्गी! चन्द्रलोक में
गार्गी-चन्द्रलोक किसमें ओत-प्रोत हैं ?
याज्ञवल्क्य -हे गार्गी! देवलोक में।
गार्गी-देवलोक किसमें ओत-प्रोत है ?
याज्ञवल्क्य -हे गार्गी! इन्द्रलोक में।
गार्गी-इन्द्रलोक किसमें ओत-प्रोत है ?
याज्ञवल्क्य- हे गार्गी! प्रजापति लोक में ।
गार्गी-प्रजापति लोक किसमें ओत-प्रोत हैं ?
या०-हे गार्गि! ब्रह्मलोक में ।
गार्गी-मुने! ब्रह्मलोक किसमें ओत-प्रोत है ?
याज्ञवल्क्य -उस याज्ञवल्क्य ने कहा हे गार्गी! अति प्रश्न न कर। ऐसा न हो कि अपमानित होना पड़े । अति प्रश्न वर्जित है ऐसा देवता के सम्बन्ध में तू अति प्रश्न करती है अतः हे गार्गी! अति प्रश्न न कर वह गार्गी चुप हो गई।
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