🍁गीता के अनुसार ज्ञानी मनुष्य सभी में समरूप परमात्मा को देखते है और किसी से भेदभाव नहीं करते -
विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।
(भगवद् गीता 5 :18)
अर्थात - ज्ञानी महापुरुष विद्या-विनययुक्त ब्राह्मण में और चाण्डाल में तथा गाय हाथी एवं कुत्ते में भी समरूप परमात्मा को देखने वाले होते हैं।
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🍁परमेश्वर किसी से भेदभाव नहीं करता-
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।
( भगवद् गीता 9 :29)
अर्थात - मैं सम्पूर्ण प्राणियों में समान हूँ। उन प्राणियों में न तो कोई मेरा द्वेषी है और न कोई प्रिय है।
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🍁परमेश्वर को वही भक्त पसंद है लोगो से समानता रखते है भेदभाव नहीं करते-
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च।
निर्ममो निरहंकार: समदु:खसुख: क्षमी ॥13
संतुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चय: ।
मय्यार्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्त: स मे प्रिय: ॥14
(गीता-12:13-14)
अर्थात - मेरे लिए वे भक्त प्रिय हैं जो सभी जीवों के प्रति भेदभाव नहीं करते है , जो मित्रवत हैं, और दयालु हैं। वे सम्पत्ति और अहंकार के प्रति आसक्ति से मुक्त होते हैं, सुख-दुःख में समान , क्षमाशील , सन्तुष्ट हैं। वे आत्म-नियंत्रित में दृढ़ है और मन और बुद्धि में मेरे लिए समर्पित हैं।
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🍁परमेश्वर कहता है कि कोई बड़ा छोटा नहीं -
अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभाय ।
(ऋग्वेद 5 : 60 : 5)
अर्थात - परमेश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा।तुम सब भाई-भाई हो। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो।
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🍁सबमें एक जैसी आत्मा इसलिए भेदभाव न करे -
यस्मिन्त्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानत:
तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यत:
(यजुर्वेद 40 : 7)
अर्थात - जो सभी आत्माओ में अपनी ही आत्मा को देखते हैं, उन्हें कहीं पर भी शोक या मोह नहीं रह जाता क्योंकि वे उनके साथ अपनेपन की अनुभूति करते हैं ।
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🍁महर्षि याज्ञवल्क्य सभी को नमस्कार करते है क्युकी सबमे वह ईश्वर है-
ईश्वरो जीवकलया प्रविष्टो भगवानिति ।
प्रणमेद्ण्डवद्भूमावाश्वचण्डालगोखरम् ॥ ४॥
(याज्ञवल्क्य उपनिषद -4)
अर्थात - ईश्वर को यह समझकर कि वह जीव के रूप में इस संसार के समस्त
प्राणियों में स्थित है, घोड़े, चाण्डाल, गौ तथा गधे आदि सभी को
दण्डवत् प्रणाम करता है ॥
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🍁महोपनिषद् में वर्णित अद्भुत मानवीयता को पढ़िए -
अयं बन्धु-रयं नेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
(महा उपनिषद - 4 : 71)
अर्थात - यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो सम्पूर्ण धरती ही परिवार है।
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🍁महाभारत में भी लिखा है प्रत्येक मनुष्य की आत्मा एक जैसी है इसलिए द्वेष न रखना -
नात्मनोऽस्ति प्रियतरः पृथिवीमनुसृत्य ह ।
तस्मात्प्राणिषु सर्वेषु दयावानत्मवान् भवेत् ।।
(महाभारत :अनुशासन पर्व 21:47)
अर्थात - इस भूमण्डल पर आत्मा से बढ़कर कोई प्रिय पदार्थ नहीं है, अतः मनुष्य को चाहिए कि प्राणियों पर दया करे , द्वेष न रखे और सबको अपनी ही आत्मा समझे।
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🍁ईश्वर संहिता भी सभी को एक सामान बताती है-
सर्वे समानास : चतवारो गोत्रप्रवरवर्जिता : ।
उत्कर्षो न-अपाकर्ष: च जातितस तेषु सम्मत:॥
( ईश्वर संहिता 21:40)
अर्थात - गोत्र , वंश, या नस्ल ऐसे कोई भेद नहीं होता है ; चारों वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) चारों समान हैं। जाति का कोई उच्च और निम्न नहीं है।
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