" ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी " का अर्थ -

Add caption


सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे।।
गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी।।
तव प्रेरित मायाँ उपजाए। सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए।।
प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई। सो तेहि भाँति रहे सुख लहई।।
प्रभु भल कीन्ही मोहि सिख दीन्ही। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही।।
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।
प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई। उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई।।
प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई। करौं सो बेगि जौ तुम्हहि सोहाई।।


अर्थात -- प्रभु! मेरे बचनों को क्षमा कीजिये। गगन, समीर, अनल , जल और धरती, यह पाँचों स्वभाव से जड़ हैं। ग्रन्थ कहते हैं की आपकी प्रेरणा से इन्हें माया ने रचा है। प्रभु ने जिसके लिए जो मर्यादा निश्चित की है , उसके लिए उसी प्रकार से रहना अच्छा है। आपने बहुत अच्छा किया जो मुझे सीख दी। ढोल , गंवार, शूद्र , पशु और नारी ये ताड़ना ( शिक्षा ) के अधिकारी हैं। आपके प्रताप से में सूख जाऊँगा लेकिन इसमें मेरी क्या विशेषता रहेगी। अब आपको जो अच्छा लगे वो कीजिये।

तो भाइयो, पहले तो विवादित पंक्ति से ठीक पहले के वाक्यों को देखिये जहाँ समुद्र ने कहा कि आपने भला किया जो मुझे सीख दी।

ताड़ना के दो अर्थ संस्कृत में हैं , मारना और शिक्षा देना और अवधी में ताड़न शब्द का अर्थ पहचानना ,समझाना (शिक्षा देना) होता है।

प्रमाण देखेंगे?
ये लीजिये:- लालयेत पञ्च वर्षाणि, दस वर्षाणि ताड्येत।
यह वाक्य चाणक्य नीति का है और इसमें कहा गया है बच्चे को पांच वर्ष तक लाड दुलार से रखो और फिर दस वर्ष तक उसे शिक्षा दो।

तो समुद ने कहा कि आपने अच्छा किया को मुझे शिक्षा दी आखिर, ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और नारी, यह सब शिक्षा के ही तो अधिकारी है।

होता यह है कि ढोल शब्द पढ़ते ही हमारे मन में पीटने का ही विचार आता है। लेकिन विचारणीय बात यह है कि यूँ हे ढोल को पीटने से वह नहीं बजता बल्कि बजाना आता हो तभी बजता है। इसी तरह से गंवार क्यों गंवार है, क्योंकि शिक्षा नहीं मिली। उसे शिक्षा दीजिये। शूद्र का अर्थ है कुशल कारीगर लोग। आप जानते हैं समाज के सबसे कुशल लोग यही लोग हैं क्योंकि समाज के अनेक काम यह करते हैं। तो इस कुशलता को बनाये रखने के लिए शिक्षा चाहिए या नहीं? अब पशु की बात करें तो केवल पीटने से पशु संचालित नहीं होता बल्कि अच्छी तरह हांकने से होता है। इसी हांकने को शिक्षा कह लीजिये। अब बात नारी की करें तो भैया जिस पर दो कुलों का भार है उसे शिक्षित नहीं करोगे तो कैसे चलेगा। इसलिए नारी शिक्षा की पुरुष से भी अधिक अधिकारिणी है। आजकल एक स्लोगन बहुत चल रहा है, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। यह बात तो तुलसीदास जी ने वर्षों पहले कह दी है।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ