यहोवा का अज्ञान

 

मित्रों! स्वागत है पोलखाता की छठवीं किस्त में.इस किस्त में बाइबल के बगुलाभगतों को दाखरस पिला दिया जायेगा.

तो देखते हैं यहोवा का ज्ञान...

१: सृष्टि का आरंभ

1 आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की। 

2 और पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी; और गहरे जल के ऊपर अन्धियारा था: तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डलाता था। ( उत्पत्ति १/१,२)

समीक्षक:- जब आरंभ में आकाश( खाली स्थान) बनाया तो उसके पहले यहोवा किस मकान में रहता था? यहोवा का आत्मा पानी पर डोलता था.इससे सिद्घ है कि उसका शरीर और आत्मा अलग अलग है.बाइबल बनावे वाला क्या यहोवा को देखने गया था लिखने से पहले?यदि आत्मा औ शरीर अलग थे तो यहोवा का शरीर प्राण हीन होगा.यहोवा का शरीर कहां था? यदि आत्मा अलग थी और जल पर डोलती थी यानी ईसाइयों का ईश्वर एकदेशी और अल्प सामर्थ्य वाला सीमित व्यक्ति हुआ.इससे बाइबल ईश्वरकृत नहीं हो सकता.

२:- 3 तब परमेश्वर ने कहा, उजियाला हो: तो उजियाला हो गया। 

4 और परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है; और परमेश्वर ने उजियाले को अन्धियारे से अलग किया। ( उत्पत्ति अध्याय १)

समीक्षक:- वाह रे यहोवा की फिलासॉफी! प्रकाश ने यहोवा की बात सुन ली.वैसे तब भी यहोवा का आत्मा जल पर डोलता था या नहीं? जो कहो डोलता था तो निर्जीव शरीर बोल नहीं सकता न आत्मा बिन शरीर के बोल सकता है.यदि शरीर में था और यहोवा ने बोला तो यहोवा साकार हो गया.और प्रकाश तो जड़ पदार्थ है वो किसी की बात सुन ले ये क्यों और कैसे संभव है? और यदि पहले प्रकाश न था तो अभाव से भाव नहीं हो सकता.कुछ नहीं से कुछ भी नहीं बन सकता.यदि यहोवा ने अपने से प्रकाश बनाया तो क्या उसे पता नहीं था कि ये अच्छा है? ऐसे तो वो अल्पज्ञ औरमूर्ख हो गया.३: अंधेर को उजाले से अलग किया.

5 और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अन्धियारे को रात कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहिला दिन हो गया॥ 

6 फिर परमेश्वर ने कहा, जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए। ( उत्पत्ति अध्याय १)

समीक्षक:-वाह रे! बलि जाऊं यहोवा तेरी ताकत पर.जब सूरज चांद न बनाया तो दिन का पता कैसे चला? और दिन रात भी किसी की बात सुन सकते हैं? जड़ पदार्थ किसी की बात सुन नहीं सकता.बिना सूरज के पहला दिन भी बना दिया यहोवा ने.शायद सूरज चांद बनाना भूल गया होगा.

४: 7 तब परमेश्वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा ही हो गया।

8 और परमेश्वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया॥ ( उत्पत्ति अध्याय १)

समीक्षक:- यहां जल को ऊपर नीचे करने का सर्कस क्यों किया? और दुबारा आकाश बनाया तो पहली आयत में आकाश बनाना बेकार हो गया.आकाश अतिसूक्ष्म और विभु है तो दो बार कैसे बन सकता है.यहां पर भी बिना सूरज के दूसरा दिन बना डाला 

५:- अब जाकर सूरज चांद बनाया:-

16 तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियां बनाईं; उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया: और तारागण को भी बनाया। 

17 परमेश्वर ने उन को आकाश के अन्तर में इसलिये रखा कि वे पृथ्वी पर प्रकाश दें, 

18 तथा दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अन्धियारे से अलग करें: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 

19 तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौथा दिन हो गया॥

समीक्षक:- अब चौथे दिन जार यहोवा को याद आया कि सूरज चांद बनाना है.ऐसे तो अब पहला दिन होना था इसके पहले बिना सूरज चांद को दिन रात का पता कैसे चला? 

यहोवा बारंबार अच्छा है कहता है.क्यों जी ! नाना पाटेकर है क्या? जब पहले से पता था कि अच्छा है तो क्यों बोला? ऐसे यहोवा कि सर्वज्ञता पर दोष लगा.:-20 फिर परमेश्वर ने कहा, जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें। 

21 इसलिये परमेश्वर ने जाति जाति के बड़े बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया और एक एक जाति के उड़ने वाले पक्षियों की भी सृष्टि की: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 

समीक्षक:- यहोवा यदि पुर्जनम नहीं मानता तो किस कर्म से उसने किसी को जीव जंतु या पक्षी बनाया? फिर से बोला अच्छा हौ! अपनी मनमर्जी से बिना कर्म के किये बना देना कौन सा अच्छा काम है?

७:- अब देखना, यहोवा अबनी ही बात की धज्जियां उड़ायेगा:-

4 आकाश और पृथ्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त यह है कि जब वे उत्पन्न हुए अर्थात जिस दिन यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी और आकाश को बनाया: 

5 तब मैदान का कोई पौधा भूमि पर न था, और न मैदान का कोई छोटा पेड़ उगा था, क्योंकि यहोवा परमेश्वर ने पृथ्वी पर जल नहीं बरसाया था, और भूमि पर खेती करने के लिये मनुष्य भी नहीं था( उत्पत्कि अद्याय २)

समीक्षक:- उत्पत्ति पर्व की पहली आयतों में कहा है कि यहोवा का आत्मा जल पर डोलता था.यहां कहा है कि जल बना नहीं था.अब या तो पहली बात सही है या दूसरी.ऐसी परस्पर विरोधी बातों से बाइबिल भरा पड़ा है.जब पृथ्वी पर जल न था तो पहले अध्याय में पेड़ पौधे कैसे उगाये?

८:-

यहोवा ने छुट्टी ले ली:-2 और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता था सातवें दिन समाप्त किया। और उसने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया। 

3 और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया; क्योंकि उस में उसने अपनी सृष्टि की रचना के सारे काम से विश्राम लिया। ( उत्पत्ति पर्व अध्याय २)

समीक्षक:- वाह जी! यहोवा ६ दिन काम करके थक गया होगा शायद.इसलिये रेस्टरूम में चला गया होगा.ईश्वर का सामर्थ्य अखंड एकरस हौ.उसमें अनंत शक्ति है.वह थक नहीं सरता.मगर बाइबल का यहोवा इससे परे है.अब सातवां दिन यानी रविवार को पवित्र ठहराया.क्योंकि उस दिन विश्राम किया.इससे सिद्ध हो गया कि यहोवा अकर्मण्य और निकम्मा हो गया.तब ईसाई लोग ६ दिन काम क्यों करते हैं जबकि वह दिन पवित्र नहीं है? जिन दिनों में कर्म किया जाता है वो दिन अपवित्र जिसदिन थक गये वो दिन पवित्र क्यों?

तो मित्रों! यहोवा अल्पज्ञ, अल्पसामर्थ्यवाला सिद्ध हो गया.जिस किताब में सृष्टिक्रम विरोधी और परस्पर विरोधी बातें हो वो न ईश्वर की होगी न किसी विद्वान की.अतः इस बाइबिल को त्यागकर ईश्वरीय वेद को अपनायें.

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