सबसे पहले हम आंबेडकर टाइटल पर बात करते है
मसलन अंबेडकर को नाम के साथ लगाने को ही लीजिए। उनका पारिवारिक नाम सकपाल था, लेकिन परिवार ने रत्नागिरी के अम्बावाड़े गांव में रहने के कारण नाम के साथ अम्बावाडे़कर लगाना शुरू किया। अंबेडकर ने खुद लिखा कि कैसे उन्होंने अंबेडकर को नाम के साथ पीछे लगाया। स्कूल में उनके एक ब्राह्मण टीचर थे, जिनका नाम अम्बेडकर था। बाबा साहेब उसके चहेते थे। शिक्षक अक्सर अपना खाना उनके साथ बांटते थे। टीचर को लगता था कि अम्बावाडेकर काफी बेडौल उपनाम है। उन्होंने स्कूल रिकॉर्ड में इसे छोटा करके अंबेडकर कर दिया। .इस प्रकार आंबेडकर टाइटल एक ब्राह्मण टाइटल है...लेकिन आंबेडकर के बौध्य धर्म अपनाने पर ज्यादातर ब्राह्मणों ने आंबेडकर टाइटल लगाना छोड़ दिया
1-डॉ. भीमराव अंबेडकर ने जब दूसरी बार शादी की तो एक ब्राह्मण महिला से क्यों की...क्या दलित लड़कियां खूबसूरत नहीं होती😅..उनको ब्राह्मण ही क्यों पसंद आई...
2-1947 के आसपास बाबा साहेब डायबिटीज, ब्लड प्रेसर से काफी परेशान थे। पैरों में दिक्कत बढ़ने लगी थी। समस्या इस कदर बढ़ी कि उन्हें गंभीरता से इलाज की सलाह दी गई। मुंबई की डॉक्टर शारदा कबीर ने इलाज शुरू किया। वह पुणे के सभ्रांत मराठी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं।
3-आंबेडकर ने दूसरी शादी क्यों की .....क्या एक अत्यंत पढ़े लिखे व्यक्ति को दूसरी लड़की से शादी करना वो भी अपनी उम्र से बहुत छोटी
लड़की से शोभा देता है
4-बाबा साहेब की पहली शादी 1906 में हुई थी। बाबासाहेब ही 15 साल के थे औऱ पहली पत्नी रमाबाई 9 साल से भी छोटी थी।
5-तथाकथिक बाबा साहेब के नाम का पहला शब्द भीम है जो उनकी माँ ने महाभारत के भीम के नाम पर रखा था
6-राजपुत राजा ने डॉ. अंबेडकर को अपने खर्चे पर पढ़ाई के लिए भेजा था विदेश लेकीन दलीत राजा का नाम नही लेते है..🤔..आंबेडकर ने राजपुत महाराजा सयाजी गायकवाड़ के लिए लिखी थी। उस चिठ्ठी के साथ अंबेडकर ने अपनी मार्क शीट भी भेजी थी ताकि उनकी काबिलियत को महाराजा समझ पाएं। ... चिट्ठी में लिखा था कि कमजोर माली हालत के चलते कोई भी मेरी मदद करने को तैयार नहीं है। डॉ. अंबेडकर की मार्क शीट को देखकर सयाजी महाराज काफी प्रभावित हुए और अम्बेडकर को मिलने के लिए बुलाया और उनसे कहा तुम विदेश में पढ़ाई करने जाओ हम हर संभव तुम्हारी मदद करेंगे। महाराजा ने कहा कि किसी बात की चिंता मत करना बस मन लगा के पढ़ाई करना। महाराज ने अम्बेडकर की पढ़ाई के सारे खर्चे उठाये और उनके विदेश में रहने का भी प्रबंध किया। ऐसे में एक बार फिर महाराज सयाजी ने डॉ. अंबेडकर की मदद की उन्हें नौकरी देते हुए अपनी रियासत में महामंत्री के पद पर नियुक्त किया। उस जमाने में अंबेडकर को 10,000 रुपए मिलते थे। जो कि उस जमाने में 1 करोड़ के बराबर होता था।
ऐसे में हम कह सकते है कि आंबेडकर जो भी बने एक राजपूत राजा सायाजी की बदौलत बने..
7-अब आंबेडकर के बौध्य धर्म अपनाने पर आते है-
बौध्य ग्रन्थ विसुद्धि मार्ग और मिलिंद प्रस्न के अनुसार बौध्य संघ अपनाने के लिए केवल 7 व्रत होते है...इससे जादा प्रतिज्ञा बौध्य धर्म..बौध्य ग्रंथों के खिलाफ है तो आंबेडकर की 22 प्रतिज्ञों द्वारा बौध्य धर्म स्वीकार करना बौध्य ग्रंथो के खिलाफ है
बौध्य बनाने के लिए जो 22 हिन्दू विरोधी प्रतिज्ञाएँ होती है वो बौध्य ग्रन्थ के अनुसार नहीं और आंबेडकर भी 22 प्रतिज्ञओ से बौध्य बने ..
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि 22 प्रतिज्ञाओं में प्रथम प्रतिज्ञा है –
मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा ये बुद्ध धम्म और उनके शास्त्रों के विपरीत है क्योंकि बौद्ध वाङ्मय में जगह – जगह हिन्दू देवताओं का वर्णन है.इसका पता मिलिन्द प्रश्न से चलता है जिसके अनुसार –
बुद्ध, धम्म का उपदेश ब्रह्मा से प्रार्थना करने के बाद ही देते हैं अर्थात् बिना ब्रह्मा से प्रार्थना किये कोई भी बुद्ध अपने धम्म का उपदेश नही करता है। इतना ही नही इसमें ब्रह्मा को तपस्वी, अलौकिक, ज्ञानी भी माना है। अतः मिलिन्द प्रश्न 4.5.51 के विपरीत अम्बेडकर की प्रथम प्रतिज्ञा होने से यह बौद्ध धम्म के भी विरोध में है।
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✍️✍️Hari Maurya
2 टिप्पणियाँ
Good man baba Sahab
जवाब देंहटाएंSam
जवाब देंहटाएंta and samanta all peupile