सबसे पहला झूठ तो यह है कि यह है कि श्लोक पूरा नहीं है
--दूसरा झूठ तो यह कि “प्रतिमा” का अर्थ चित्र नहीं होता, इस श्लोक में प्रतिमा का अर्थ मूर्ति भी नहीं है| श्लोक का पूरा अर्थ पुरे श्लोक और इसके पहले और आगे के श्लोक को पढकर बताया जा सकता है |
-- इस श्लोक में किसी पूजा, साधना या प्रार्थना की कही कोई परिपेक्ष्य नहीं है|
सही अर्थ
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चूँकि एक शब्द के कई अर्थ होते हैं इसलिए श्लोक के सही अर्थ को समझने के लिए इस पुरे सूक्त के परिपेक्ष को समझना आवश्यक है और आगे और पीछे के श्लोकों को भी|
इस सूक्त के सभी मंत्र(श्लोक) और उनके अर्थ इस प्रकार हैं|
Yajurveda-32:2
सर्वे निमेशा जज्ञिरे विद्युतः पुरुषादधि |
न एनं ऊर्ध्वं न तिर्य्यञ्च न मध्ये परिजग्रभत् ||
उसी पुरुष(भगवान विष्णु) की ज्योति से सारे नक्षत्र और आँखों की ज्योति दीप्यमान है | उसे न कोई ऊपर से, न किनारे से(त्रियक दिशा से) और न मध्य से जान सकता है(उसके विस्तार अर्थात लम्बाई, चौड़ाई और गहराई को मापा नहीं जा सकता)|
Yajurveda -32:3
न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महाद्यशः |
हिरण्यगर्भः इत्येष मा मा हिंन्सिदितेषा यस्मान्न जातः इत्येषः ||
उसकी कोई उपमा(तुलना : parallel, comparsion) नहीं है क्योंकि उसकी महिमा अनंत है(उसके गुण अनंत हैं) | वह सम्पूर्ण सृष्टि को अपने गर्भ में धारण करने वाला(हिरण्यगर्भ)है, सर्व व्यापक (यस्मान्न जातः) है वह हमें सभी पापों(दुर्गुणों, त्रुटियों) से रक्षा करे |
Yajurveda[-32:4}
एषो ह देवः प्रदिशोऽनु सर्वाः पूर्वो ह जातः सऽउ गर्भेंअन्तः |
सऽएव जातः स जनिष्यमाणः प्रत्यङ जनास्तिष्ठति सर्वतोमुखः ||
वह सृष्टि का सबसे अग्रज है और वह सभी खण्डों(स्थानों) में व्याप्त है(अर्थात सर्वत्र व्याप्त है)| वह जो अभी गर्भ में है या वह जो जन्म ले चुके हैं सब प्रकार से उसके ही सम्मुख हैं|
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ऊपर के श्लोकों को पढने से यह पूर्ण स्पस्ट हो जाता है कि किसी भी श्लोक से किसी मूर्ति, किसी चित्र या पूजा विधि का दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है| ऊपर के सभी श्लोकों में ईश्वर के विस्तार और उसको गुणों की महानता का वर्णन है|
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अतिरिक्त जानकारी “यस्मान जात:” (यजुर्वेद 8:36) में परमात्मा को 16 कलाओं से युक्त बताया गया है।। जो श्री कृष्ण जी को दर्शाती है।। “हिरण्यगर्भ” (यजुर्वेद 25:10) में मनुष्य शरीर की आत्मा को दर्शाया गया है। हिरण्यगर्भस इत्येष मा मा= उस परमात्मा की पूजा इसके ब्रम्हांड(गर्भ) से जन्मे हुओं द्वारा आदि आदि मन्त्रों और कार्यों से की जाती है।।
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