बौद्ध मत का नरकवर्णन





महात्मा बुद्ध का सुत्तनिपात, कोकालिसुत्त ३,१०
 में स्पष्ट रूप से कथन है कि आर्यों,साधुओं की निंदा करने वाले ,झूठे,गालीबाज़ और अधर्मी-- इन लक्षण वाले जितने अंबेडकरवादी भीमसैनिक हैं, सब नरकों में जायेंगे।
यानी बुद्ध बाबा का फतवा है कि आर्यों को दिन भर पानी पी पीकर गाली बकने वाले नरक में जायेंगे। हम सुत्तनिपात के कोकालिसुत्त का पाठ ज्यों का त्यों अंकित करके इस पर "डॉ भिक्षु धर्मरक्षित" का हिंदी अनुवाद भी लिख देते हैं।
पाठकगण! ये नरक वर्णन गरुडपुराण का भी बाप है, बस पढ़ें और आनंद लें।
१:- आर्य-साधु के निंदक नरक में पड़ेंगे-अरबों सालों तक:-
सतं सहस्सानं निरब्बुदानं छत्तिंस च पञ्च च अब्बुदानि।
यं अरियग निरयं उपेति, वाचं मनं च पणिधाय पापकं।।४।।
आर्य पुरुष की निंदा करने वाला अपने मन और वचन को पाप में लगाकर उस नरक में उत्पन्न होता है जहां कि आयु एक लाख अर्बुद निरर्बुद और एकतालीस अर्बुद(अरब)।।४।।

२:- भीमसैनिक स्वयं को अनार्य कहते नहीं अघाते। आर्यों को गाली देंगे खुद, अनार्य कहायेंगे। अनार्यों की क्या गत होती है, देखिये:-
मुखदुग्ग विभूतमनरियं भूनहु पापक दुक्कतकारि।
पुरसिन्कलि अवजात मा बहु भाणिध नेरयिकोसि।।८।।
दुर्वच, झूठ बोलने वाले, अनार्य, वृद्धिनाशक,पापी,बुरे कर्म करने वाले अधम पुरुष नरक में जाने वाले हैं।"

तुम(यानी ऊपर कहे लोग) संतों की निंदा करने करके अपने अहित का कर्म करते हो। अनेक बुराइयों को करके बहुत समय तक गड्ढे में गिरोगे।।९।।
३:- कर्मफल अटल है:- इस्लाम और ईसाईमत में तौबा करके पाप क्षमा भी हो जाते हैं, पर बौद्ध मत में वैदिक धर्म के ही अनुसार कर्मफल माफ नहीं होता। कर्ता अपना कर्म भुगतकर रहता है:-
नहि नस्सति कस्सचि कम्मं एति हतं लभवेत सुवामि।।१०।।

किसी का कर्म नष्ट नहीं होता। कर्ता उसे प्राप्त करके ही रहता है। पापकारी मूर्ख को अपने परलोक में दुख भोगना पड़ता है।।१०।।
४:- पाठकों! अभी तक तो ट्रेलर था, पिच्चर अभी बाकी है! भीमसैनिक पापियों को नरक में कौन कौन से दंड मिलेंगे, पढ़ते जायें और आनंद लें:-
अयोसंग्कुसमाहतट्ठानं तिण्हधारमयसूलमुपेति।
अथ तत्तअयोगुळसन्निभं भोजनमत्थि तथा पतिरूपं।।११।।
न हि वग्गु वदंति वदंता, नाभिजवंति न ताणमुपेति।
अंगारे सन्थरे सेन्ति अग्गिनिसमं जलितं पविसन्ति।।१२।।
जालेन च ओनहियाना, तत्थ हनन्ति अयोमयकूटेहि।
अंधवं तिमिसमायंति तं विततं यथा महिकायो।।१३।।
अथ लोहमयं पन कुंभि अग्गिनिसमं जळितं पविसन्ति।
पच्चंति हि तासु चिररत्तं अग्गिनिसमासु समुप्पिलवासो।।१४।।
अथ पुब्बलोहितमिस्से तत्थ किं पच्चति किब्बिसकारी।
यं यं दिसतं अधिसेति तत्थ किलस्सति सम्फुसमानो।।१५।।
पुलवावसथे सलिलस्मिं तत्थ किं पच्चति किब्बिसकारी।
गंतुं न हि तीरमपत्थि सब्बसमा हि समन्तकपल्ला।।१६।।
असिपत्तवनं पन तिण्हं तं पविसंति समत्छिदगत्ता।
जिह्वं बळिसेन गहेत्वा आरचया रचया विहनन्ति।।१७।।
अथ वेतरणिं पन दुग्गं तिण्हधारं खुरधारमुपेति।
तत्थ मंदा पपतंति पापकरा पापानि करित्वा ।।१८।।
खादंति हि तत्थ रुदंते सामा सबला काकोलगणा च।
सोणा सिगाला पटिगिज्झा कुलला वायसा च वितुदंति।।१९।।

(क) तामिस्र नरक:-
'वह लोहे के कांटो और तीक्ष्ण धार वाली लोहे की बर्छियों से सताये जाने वाले नरक में गिरते हैं। वहां तपे लोहे के गोले के समान उसके अनुरूप भोजन है।।११।।
नरकपाल उनसे मीठी बातें नहीं करते।वे प्रसन्न मुख से रक्षार्थ उनके पास नहीं आते। वे बिछे हुये अंगार पर सोते हैं और भभकती आग में प्रवेश करते हैं।।१२।।
नर कपाल जाल से बंद करके लोहे के हथौड़ों से उनको कूटते हैं। वे घोर अंधकार में पड़ते हैं और विस्तृत पृथ्वी की तरह फैल जाते हैं।।१३।
(ख) अंधतामिस्र नरक:-
तब वे आग से समान जलती लोहे की कड़ाही में गिरते हैं, और आग के समान उसमें चिरकाल तक पकते रहते हैं।।१४।।
(ग) पूयवह नरक:-
तब पीव और रक्त से लथपथ वे पाप कारी किस प्रकार पचता है। जहां लेटता है वहां-२ उनसे लथपथ हो जाता है।।१५।।
पापकारी कीड़ों से भरे पानी में किस प्रकार पचता है वह कहीं तीर नहीं पा सकता, क्योंकि चारों ओर कड़ाहा है।।१६।।
(घ) असिपत्रवन नरक:-
घायल शरीर होकर वे असिपत्रवन में प्रवेश करते हैं। नरक पाल उनकी जीभ को कांटों से पकड़कर उनका वध करते हैं।।१७।।
(ड-) वैतरणी नदी का नरक:-लीजिये, अब पुराणों में लिखी वैतरणी नदी बौद्ध मत में भी निकल आई!!;-

तब छुरे की धार के समान तीक्ष्ण धार वाली दुस्तर वैतरणी नदी में गिरते हैं। मूर्ख पापकारी उसी में गिरते हैं। १८।।
वहां काले और चितकबरे कौवे उनको खा जाते हैं। कुत्ते,गीदड़,गृध्र,चील और कौवे चाव से उनको नोंचते हैं।।१९।।

५:- पापी लोग अरबों सालों तक नरक में रहेंगे:-
ते गणिता विदूहि तिलवाहा ये पदुमे निरये उपनीता।
नहुतानि हि कोटियो पंच भवंति द्वादस कोटिसतानि पुनञ्ञा।।२१।।
यावदुक्खा निरया इध वृत्ता तत्थपि ताव चिरं वसितब्बं।२१ का पूर्वार्ध।।
' पद्म नरक में जो जाते हैं उनकी आयु पंडितों की गिनती के अनुसार तिल के भार एक एककर गिने जाने की तरह लंबी है, उनकी आयु पांच नरक कोटि और बारह सौ कोटि के बराबर है ।।२२।।
यहां जितने नरक दुख बतायें हैं वो उनको चिरकाल तक भोगना पड़ता है।।२२।।
६:- नरक से बचने का उपाय: अच्छे कर्म तथा साधुओं का सम्मान:-
तस्मा इध जीवितसेसे किच्चकरो सिया नरो न च पमज्जे।।२०।।तस्मा सुचिपेसलसाधुगुणेसु वाचं मनं सततं परिक्खेति।।२२।।
'इसलिए मनुष्य को चाहिये कि अपने शेष जीवन में अच्छे कर्म करे और प्रमाद न करे।।२०।।
इसलिये पवित्र,उत्तम साधुओं के प्रति अपना मन और वचन सदा संयत रखें।।२२।।

( कोकालिसुत्तं ३,११ सुत्तनिपात से)
पाठकगण! यह था बौद्ध मत का नरकवर्णन। इसके देखें, तो गरुडपुराण भी फेल हो जायेगा! अंबेडकरवादियों को चाहिये कि आरक्षण, मुफ्तखोरी का त्याग करके मेहनत करें। ब्राह्मणों,आर्यों,ऋषियों, राम कृष्ण शिव आदि देवपुरुषों तथा ईश्वर की निंदा न करें। यदि फिर भी कोई नहीं मानता, 
तो उसको नरक में पड़ने से बुद्ध भी बचा नहीं सकते।

।।लौटो वेदों की ओर।।
।।ओ३म्।।

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