छत्रपति शिवाजी महाराज

                     छत्रपति शिवाजी महाराज


शिवाजी महाराज का आरम्भिक जीवन :

. इस धरती पर ऐसे महान शासक पैदा हुए है जिन्होंने अपनी योग्यता और कौशल के दम पर इतिहास में अपना नाम बहुत ही स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज किया है. ऐसे ही एक महान योद्धा और रणनीतिकार थे – छत्रपति शिवाजी महाराज. वे शिवाजी महाराज ही थे जिन्होंने भारत में मराठा साम्राज्य की नीवं रखी थीं. 


छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी, 1627 को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। शिवाजी के जन्म के समय सम्पूर्ण भारत में मुगलों का राज था। 
मात्र 16 साल की आयु में शिवाजी ने पुणे के तोरण दुर्ग पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की तभी से उनकी बहादुरी के जयकारे पूरे दक्षिण भारत में गूंजने लगे। शिवाजी की बढ़ती प्रतिष्ठा को देखकर मुग़ल शासक घबरा गए और बीजापुर के शासक आदिलशाह ने शिवाजी को बंदी बनाना चाहा लेकिन वो असफल रहा तब उसने शिवाजी के पिताजी को बधंक बना लिया। शिवाजी ने अपनी कुशल नीतियों के दम पर आदिलशाह के महल में घुसकर अपने पिता को बाहर निकाला।



शिवाजी महाराज का सैनिक वर्चस्व :
सन 1640 और 1641 के समय बीजापुर महाराष्ट्र पर विदेशियों और राजाओं के आक्रमण हो रहे थें. शिवाजी महाराज मावलों को बीजापुर के विरुद्ध इकट्ठा करने लगे. मावल राज्य में सभी जाति के लोग निवास करते हैं, बाद में शिवाजी महाराज ने इन मावलो को एक साथ आपस में मिलाया और मावला नाम दिया. इन मावलों ने कई सारे दुर्ग और महलों का निर्माण करवाया था.
इन मावलो ने शिवाजी महाराज का बहुत भी ज्यादा साथ दिया. बीजापुर उस समय आपसी संघर्ष और मुगलों के युद्ध से परेशान था जिस कारण उस समय के बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने बहुत से दुर्गो से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों के हाथों में सौप दी दिया था.
तभी अचानक बीजापुर के सुल्तान बीमार पड़ गए थे और इसी का फायदा देखकर शिवाजी महाराज ने अपना अधिकार जमा लिया था. शिवाजी ने बीजापुर के दुर्गों को हथियाने की नीति अपनायी और पहला दुर्ग तोरण का दुर्ग को अपने कब्जे में ले लिया था.

छत्रपति शिवाजी महाराज का पूरा जीवन महत्वपूर्ण सिद्धांतों की शिक्षा देता है। और वो हैं-
  1. लक्ष्य या दृढ़ संकल्प
  2. उचित योजना और रणनीति
  3. कार्य के लिए योग्य, सक्षम और सही लोगों का चयन करना।
  4. योजना का सटीक निष्पादन
  5. अलग-अलग काम के लिए उचित व्यक्ति चुनना
  6. वीरता
  7. चरित्र
  8. सकारात्मक सोच
  9. सभी चीजों के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण
  10. लोगों के साथ लगाव

शिवाजी महाराज का चरित्र :
वे ऐसे पुरुष थे जो महिलाओं को देवी मानते हैं। उसने अन्य महिलाओं को अपनी माँ, बहन या बेटी के रूप में माना। उनके चरित्र की सबसे प्रसिद्ध कहानी "कल्याण के सूबेदार की बेटी" थी। जब शिवाजी महाराज के लोगों ने कल्याण को जीत लिया, उस समय उस टुकड़ी के नेता ने एक सुंदर युवती को पकड़ा, जो कल्याण के सूबेदार की बेटी थी और वे उसे शिवाजी महाराज को कल्याण से उपहार के रूप में भेंट करते हैं, लेकिन जब शिवाजी महाराज को समग्र के बारे में पता चला। अपने आदमियों की तस्वीर और इरादे से उन्हें गुस्सा आया और उन्होंने अपने आदमियों को डांटा कि "यह स्वराज्य है और हम महिलाओं को देवी मानते हैं"। शिवाजी महाराज ने उस महिला को ज़बरदस्त आश्वासन दिया और उसे अपनी बहन की तरह माना।

शिवाजी महाराज का राज्यभिषेक :
सन 1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरंदर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुगलों को देने पड़े थे. बालाजी राव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवाड़ के सिसोदिया वंश से मिलते हुए प्रमाण भेजे थें. इस कार्यक्रम में विदेशी व्यापारियों और विभिन्न राज्यों के दूतों को इस समारोह में बुलाया था. शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि धारण की और काशी के पंडित भट्ट को इसमें समारोह में विशेष रूप से बुलाया गया था. शिवाजी के राज्यभिषेक करने के 12वें दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया था और फिर दूसरा राज्याभिषेक हुआ.


शिवाजी द्वारा हिन्दू देव जगदीश अर्थात् भगवान विष्णु के मन्दिर बनाने का उल्लेख है इस शिलालेख में शिल्पी का भी नाम है।इसका विवरण इस प्रकार है
स्थान :-जगदीश्वर मंदिर के प्रांगण में मुख्य दरवाजे की दाहिने दीवार की बाहरी बाजू पर संस्कृत में आठ पंक्तियां लिके हुयी हैं ।
॥ श्रीगणपतेय नमः।।
प्रासादो जगदीश्वरस्य जगतामानन्द दोऽनु
।। ज्ञया श्रीमच्छत्रपते शिवस्यनृपतेः सिंहासने तिष्ठतः।।
।। शाके षण्नव बाणभूमिगणनादानंद संवत्सरे ज्योतिराज।।
।। मूहूर्त कीर्तिमहिते शुक्लेश सार्प्ये तिथौ ।।१।।
वापीकूपतडागराजिरू चिरै हम्यैर्वनवीथिको स्तमैः कुंभिगृहैनरेंद्रसदने­।।
महिते श्रीमद्रायगिरौ गिरामविषये हीरोजिना निर्मिती
।। यावच्चंद्र दिवाकरौ विलसतस्तावत्समुग ।।२।।


सम्पूर्ण दुनिया को आनंददायी जैसे जगदीश्वर का प्रसाद हो तब सिंहासनाधिश्वर श्रीमद् छत्रपती शिवाजी महाराज की आज्ञा से शक १५९६ में चालू आनंदमय सवंत्सर के सुमुहूर्त पर इसका निर्माण किया गया । श्रीमद् रायगड़पर हीरोजी नाम के शिल्पकार ने कुआ, तल, बाग़, रास्ते, स्तंभ, राजशाला, ऊँचे राजगृह, इन्ह सबका निर्माण किया । वो चंद्र सूर्य रहे तबतक सब कुशलमंगल रहो ।
( इस संस्कृत शिलालेख का मराठी से हिंदी अनुवाद नागराज जी आर्य्य द्वारा किया गया है)

शिवाजी महाराज की मृत्यु और वारिस :
शिवाजी अपने आखिरी दिनों में बीमार पड़ गये थे और 3 अप्रैल 1680 में शिवाजी की मृत्यु हो गयी थी. उसके बाद उनके पुत्र को राजगद्दी मिली. उस समय मराठों ने शिवाजी को अपना नया राजा मान लिया था. शिवाजी की मौत के बाद औरंगजेब ने पुरे भारत पर राज्य करने की अभिलाषा को पूरा करने के लिए अपनी 5,00,000 सेना को लेकर दक्षिण भारत का रूख किया.

1700 ई. में राजाराम की मृत्यु हो गयी थी उसके बाद राजाराम की पत्नी ताराबाई ने 4 वर्ष के पुत्र शिवाजी 2 की सरंक्षण बनकर राज्य किया. आखिरकार 25 साल मराठा स्वराज के युद्ध थके हुए औरंगजेब की उसी छत्रपति शिवाजी के स्वराज में दफन किये गये.

कुछ तिथियों के समय घटनाएँ –
* 1594 में शिवाजी महाराज के पिता जी शाहजी भोसलें का जन्म
* 1596 में शिवाजी की माँ का जन्म
* 1627 छत्रपति शिवाजी का जन्म
* 1630 से लेकर 1631 तक महाराष्ट्र राज्य में अकाल की समस्या पैदा हुई थीं
* 1640 में शिवाजी महाराज और साईं-बाई का विवाह
* 1646 में शिवाजी जी ने पुणे के तोरण दुर्ग पर अपना अधिकार जमा लिया था
* 1656 में शिवाजी ने चंद्रराव मोरे से जावली जीता था
* 1659 में छत्रपति शिवाजी ने अफजल खान का वध किया था
* 1659 के समय शिवाजी ने बीजापुर पर अधिकार किया था
* 1666 में शिवाजी महाराज आगरा के जेल से भाग निकले थें
* 1668 शिवाजी और औरंगजेब के बीच एक संधि
* 1670 में दूसरी बार सूरत पर हमला किया था
* 1674 शिवाजी महाराज को छत्रपति की उपाधि से सम्मानित किया गया था
* 1680 में छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु

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