गीता vs कुरान

                              गीता vs कुरान 



कुरान 6: 102 – वही अल्लाह तुम्हारा रब है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, हर चीज़ का स्रष्टा है, अतः तुम उसी की बन्दगी करो। वही हर चीज़ का ज़िम्मेदार है।


गीता 7:22 – ऐसी श्रद्धा से समन्वित वह पुरुष देवता विशेष की पूजा करने का यत्न करता है और अपनी इच्छा की पूर्ति करता है । किन्तु वास्तविकता तो यह है कि ये सारे लाभ केवल मेरे द्वारा प्रदत्त हैं । यानि जो जिस भी देवता की पूजा करेगा भगवान् श्री कृष्ण उसी देवता में उस भक्त की आस्था स्थिर कर देते हैं और उसी देवता के रूप में भक्त को आस्थानुसार फल देते हैं ।

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कुरान 3: 110 – जिन लोगों ने अल्लाह के मुक़ाबले में इनकार की नीति अपनाई है, न तो उनके माल उनके कुछ काम आएँगे और न उनकी संतान ही। और वही हैं जो आग (जहन्नम) का ईधन बनकर रहेंगे।


गीता 6:32 – हे अर्जुन ! जो योगी अपनी भाँति समस्त प्राणियों में सम ( Equal ) देखता है और सुख अथवा दु:ख को भी सबमें एक सामान देखता है, और दूसरों की पीड़ा समझता है, वह योगी परम श्रेष्ठ माना गया है।

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कुरान 65: 5 – यह अल्लाह का आदेश है जो उसने तुम्हारी ओर उतारा है। और जो कोई अल्लाह का डर रखेगा उससे वह उसकी बुराइयाँ दूर कर देगा और उसके प्रतिदान को बड़ा कर देगा ।


गीता 18:66 – तू चिन्ता मत कर, सम्पूर्ण धर्मों को अर्थात् सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझ में त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्व शक्त्तिमान् सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा । मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त्त कर दूंगा।

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कुरान 72: 23 – सिवाय अल्लाह की ओर से पहुँचाने और उसके संदेश देने के। और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करेगा तो उसके लिए जहन्नम की आग है, जिसमें ऐसे लोग सदैव रहेंगे।

गीता 9:29 – मै सब भूतो ( प्राणियों ) मे सम भाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है, परन्तु जो भक्त्त मुझको प्रेम से भजते है, वे मुझ मे है और मै भी उनमे प्रत्यक्ष प्रकट हूँ।


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कुरान 3 : 85 – जो इस्लाम के अतिरिक्त कोई और दीन (धर्म) तलब करेगा तो उसकी ओर से कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। और आख़िरत में वह घाटा उठानेवालों में से होगा।

गीता 18:6 – इसलिये हे पार्थ! इन यज्ञ, दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करके अवश्य करना चाहिये, यह मेरा निश्चय किया हुआ उत्तम मत है ।

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कुरान 9 : 5 फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।

गीता 18: 6 – हे अर्जुन ! जो भक्त्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उन को उसी प्रकार भजता हूँ, क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं ।
गीता 4: 7 – हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्बि होती है, तब-तब मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात् साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ।


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कुरान 9 : 23 – ऐ ईमान लानेवालो! अपने बाप और अपने भाइयों को अपने मित्र न बनाओ यदि ईमान के मुक़ाबले में कुफ़्र उन्हें प्रिय हो। तुममें से जो कोई उन्हें अपना मित्र बनाएगा, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी होंगे।

गीता 4: 7 – हे अर्जुन ! शरीर रूप यन्त्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण करता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है। और श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता खुद मित्रता प्रेम की एक बड़ी मिसाल है ।
 


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