इस विवाद को दूर करने के लिए हमने वैदिक ,बौद्ध ,एवं जैन धर्म ग्रंथो का विस्तृत अध्ययन किया है और तमाम तथ्य इस बात को स्पष्ट करते है मौर्य सूर्यवंश से सम्बंधित क्षत्रिय थे।
आइये एक एक करके विभिन्न धर्म ग्रंथो के तथ्यों का अध्ययन करते है :-
पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान के सामन्तों में भीम मौर्य और सारण मौर्य मालंदराय मौर्य और मुकुन्दराय मौर्य का भी नाम आता है।मौर्य वंश का ऋषि गोत्र भी गौतम है।कर्नल टॉड मोरया या मौर्या को मोरी का विकृत रूप मानते थे जो वर्तमान में एक राजपूत वंश का नाम है। "राजपूत शाखाओ का इतिहास " पेज 270 पर देवी सिंह मंडावा महत्वपूर्ण सूचना देते है। वे लिखते है कि विक्रमादित्य के समय शको ने भारत पर हमला किया तथा विक्रमादित्य न उन्हे भारत से बाहर खदेडा । विक्रमादित्य के वंशजो ने ई 550 तक मालवा पर शासन किया. इन्ही की एक शाखा ने 6 वी सदी मे गढवाल चला गया और वहा परमार वंश की स्थापना की। अब सवाल उठता है कि विक्रमादित्य किस वंश से थे? कर्नल जेम्स टाड के अनुसार भारत के इतिहास मे दो विक्रमादित्य आते है। पहला मौर्यवंशी विक्रमादित्य जिन्होने विक्रम संवत की सुरुआत की। दूसरा गुप्त वंश का चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य जो एक उपाधि थी। कर्नल जेम्स टॉड पेज 54 पर लिखते है कि मौर्य बाद मे परमार राजपूत कहलाये। अत: स्पष्ट हो जाता है कि परमार वंश मौर्य वंश की ही शाखा है।
शूद्र -
चन्द्रगुप्त को शूद्र एक किताब में कहा गया है जिसका नाम मुद्राराक्षस है और ये एक नाटक की किताब गुप्तकाल में विशाखदत्त द्वारा लिखी गयी है।
मुद्राराक्षस नामक संस्कृत नाटक चन्द्रगुप्त को "वृषल" और "कुलहीन" कहता है। 'वृषल' के दो अर्थ होते हैं- पहला, 'शूद्र का पुत्र' तथा दूसरा, "सर्वश्रेष्ठ राजा" ।
वैदिक धर्मग्रंथ -
हिन्दू ग्रंथों के अनुसार अनुसार चंद्रगुप्त के पूर्वज शाक्य कुल से निकले सूर्यवंशी क्षत्रिय थे और शाक्य इश्वाकुवंश से निकला जिसमे भगवान राम अवतरित हुए थे।
बौद्ध धर्मग्रंथ -
जैन धर्मग्रंथ -
" पुरा रघोवंशे चित्राङ्गदो राजाऽभिनवैः फलैः "
कुमारपाल प्रबन्ध में 36 क्षत्रिय वंशो की सूची में मौर्य वंश का भी नाम है । चित्तौड की स्थापना चित्रांगद मौर्य ने की थी।गुजरात के जैन कवि ने चित्रांगद मौर्य को रघुवंशी लिखा था और 7 वी सदी में मौर्यो ने पुरे भारत और मध्य एशिया तक पर राज किया -
5 वीं सदी के बाद पुनः मौर्यवंश की शाखा ने - यहाँ निर्माण प्रारंभ कर दिया। चित्रांगद नामक राजा ने नये सिरे से यहाँ का किला बनाया। कुमारपाल प्रबन्ध का यह सूत्र --
" यत्र चित्रांगदश्चक्रे दुर्ग चित्रनगोपरि नगर चित्रकूटाख्यं देवेने तदधिष्ठितम् ॥ "
यही बात मेवाड़ के महाराजा राजसिंह के दरबारी कवि मान राजविलास में भी लिखते है ।मैने उसका पूरा प्रमाण ऊपर दिया था -
" चित्रकोट गढ़ चारु, मंडि चित्रांगद मोरिय।
रघू करत तहॅं राज,ढाहि अरिजन ढंढोरिय॥ "
(राजविलास पृष्ठ 18)
जैनों के प्रकृति शब्दकोश पाइअ-सद्द-महनणवो (प्राकृत-शब्द-महाणर्वः) में मौर्य का अर्थ क्षत्रिय कर रखा है -
"मुरिअ पुं [ मौर्य ] १ प्रसिद्ध क्षत्रिय वंश "
इतिहासकार -
चित्तौड़गढ़ के मौर्यवंशी संस्थापक चित्रांगद के विषय में हम कवियों के प्रमाण हम दे दे रहे हैं -
किताब का नाम -मुहता नैणसी री ख्यात
मुहता नैणसी 16 वीं शताब्दी में महाराजा जसवन्त सिंह के राज्यकाल में मारवाड़ के दीवान थे। इनकी लिखी गई ख्यात की किताब प्रमाणिक है-
बाकी दास का जन्म 1771 में भांडिया ग्राम में हुआ था। अपनी विद्धता के कारण वे जोधपुर नरेश मानसिंह के संपर्क में आए।इन्होंने ने भी चित्तौड़ के विषय में मोरी के बारे में बताया है -
मोरी वस इद्रसू प्रगट हुवो चित्राग मोरी चित्तोड किलो करायो सीसोदियै रावळ वापै मोरिया कनैसू चित्तोड लियो जद मोरी भाज सोरठ देमनू गया । "
(बाँकीदासरी ख्यात - [3] गहलोतांरी वातां: 957)
शूद्र -
चन्द्रगुप्त को शूद्र एक किताब में कहा गया है जिसका नाम मुद्राराक्षस है और ये एक नाटक की किताब गुप्तकाल में विशाखदत्त द्वारा लिखी गयी है।
मुद्राराक्षस नामक संस्कृत नाटक चन्द्रगुप्त को "वृषल" और "कुलहीन" कहता है। 'वृषल' के दो अर्थ होते हैं- पहला, 'शूद्र का पुत्र' तथा दूसरा, "सर्वश्रेष्ठ राजा" ।
वृषलेन वृषेण राज्ञाम् "
-(मुद्राराक्षस)
" राजाओं मे वृष (श्रेष्ट) वृषल कहलाता है "
राजा :- ( आसनोंदुत्थाय । ) आर्य , चन्द्रगुप्तः प्रणमति । ( इति पादयोः पतति ) ।
-(मुद्राराक्षस )
चन्द्रगुप्त :- ( सिंहासन से उठ कर ) आर्य । चन्द्रगुप्त दण्डवत् करता है ।
बाद के इतिहासकारों ने इसके पहले अर्थ को लेकर चन्द्रगुप्त को 'शूद्र' कह दिया।
लेकिन इतिहासकार राधा कुमुद मुखर्जी का विचार है कि इसमें दूसरा अर्थ (सर्वश्रेष्ठ राजा) ही उपयुक्त है।
इन तथ्यों तथा उल्लेखों से संकेत मिलता है कि चंद्रगुप्त के पूर्वज एक क्षत्रिय वंश से आते थे।
लेकिन इतिहासकार राधा कुमुद मुखर्जी का विचार है कि इसमें दूसरा अर्थ (सर्वश्रेष्ठ राजा) ही उपयुक्त है।
इन तथ्यों तथा उल्लेखों से संकेत मिलता है कि चंद्रगुप्त के पूर्वज एक क्षत्रिय वंश से आते थे।
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