सनातन धर्म और ईश्वर






आज हम इस लेख के माध्यम से सनातन परमात्मा को जाने का प्रयास करेंगे..इस लेख में दिए गए सारे प्रमाण उपनिषदो , वेद और गीता से है जो हमारे सनातन धर्म के सबसे शुद्ध और प्रमाणित ग्रन्थ है.

ईश्वर कैसा है-
"दिव्यो ह्य मूर्तः पूरुषः सबाह्यान्तारो ह्यजः ,
अप्रमाणो ह्यमनाः शुभ्रो ह्यक्षरात परतः परः .
-(मुण्डकोपनिषद - 2 : 2 )
अर्थ - निश्चय ही वह ईश्वर आकर रहित और अन्दर बाहर व्याप्त है ,वह जन्म के विकार से रहित उसके न् तो प्राण हैं ,न इन्द्रियां है न मन है वह इनके बिना ही सब कुछ करने में समर्थ हैं वह अविनाशी हैं और जीवात्मा से अत्यंत श्रेष्ठ है
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ईश्वर अजन्मा और सर्वशक्तिमान है-

" न तस्य कश्चित् पतिरस्ति लोके ,
न चेशिता नैव च तस्य लिङ्गम ,
स कारणम करणाधिपाधिपो ,
न चास्य कश्चित्जनिता न चाधिपः
-(श्वेताश्वतर उपनिषद - 6 : 9 )
अर्थ -सम्पूर्ण लोक में उसका कोई स्वामी नहीं है ,और न कोई उसपर शासन करने वाला है और न कोई उसका लिंग ( gender ) है वही कारण और सभी कारणों का अधिपति है और न किसी ने उसे जन्म दिया है और न कोई उसका पालक ही है "
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परमब्रम्ह छोटे से भी छोटा और बड़े से भी बड़ा है-


वि॒श्वत॑श्चक्षुरु॒त वि॒श्वतो॑मुखो वि॒श्वतो॑बाहुरु॒त वि॒श्वत॑स्पात्। 
सं बा॒हुभ्यां॒ धम॑ति॒ सं पत॑त्रै॒र्द्यावा॒भूमी॑ ज॒नय॑न् दे॒वऽएकः॑ ॥१९ ॥
-(यजुर्वेद 17 :19)
अर्थ - जो सूक्ष्म से सूक्ष्म, बड़े से बड़ा, निराकार, अनन्त सामर्थ्यवाला, सर्वत्र अभिव्याप्त, प्रकाशस्वरूप, अद्वितीय परमात्मा है, वही अति सूक्ष्म कारण से स्थूल कार्यरूप जगत् के रचने और विनाश करने को समर्थ है। जो पुरुष इसको छोड़ अन्य की उपासना करता है, उससे अन्य जगत् में भाग्यहीन कौन पुरुष है? 
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ईश्वर हम सब में है-

यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन |
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ||
-(गीता- 10:39)
अर्थ - हे अर्जुन ! मैं सम्पूर्ण प्राणियों का उत्पत्ति का बीज हूँ, क्योंकि चर और अचर कोई भी ऐसा पदार्थ नहीं है, जो मुझसे रहित हो ।
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थित: |
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ||
-(गीता-10:20)
अर्थ - हे अर्जुन, मैं सभी जीवों के हृदय में विराजमान हूं। मैं सभी प्राणियों का आरंभ, मध्य और अंत हूँ।
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परमेश्वर एक है किन्तु नाम अनेक-

इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्य: स सुपर्णो गरुत्मान्।
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहु:॥
-(ऋग्वेद - 1: 164 : 46)
अर्थ - परमेश्वर एक ही है किन्तु विद्वान् उसके अनन्त गुणों के कारण उसको सूचित करने के लिए इन्द्र ,मित्र,वरुण आदि नामों से पुकारते हैं।
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ईश्वर ही ब्रह्मा के रूप रचयिता है-

अहं सर्वस्य प्रभवो मत्त: सर्वं प्रवर्तते |
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विता:||
-(गीता-10.8)
अर्थ - मैं (नारायण) ही सम्पूर्ण जगत की उप्तत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब प्रवर्तित होता है, बुद्धिमान जो इसे पूरी तरह से जानते हैं, वे मुझे विश्वास और भक्ति के साथ पूजते हैं।
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ईश्वर विनाशक और समय भी है-

श्रीभगवानुवाच |
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त: |
-(गीता-11:32)
अर्थ - सर्वोच्च प्रभु ने कहा: मैं शक्तिशाली समय हूं, विनाश का स्रोत जो दुनिया को खत्म करने के लिए आगे आता है।
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ईश्वर गुरु का गुरु और समय से भी परे-

स एष पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात् ।। 26 ।।

शब्दार्थ :- स एष, ( वह ईश्वर) पूर्वेषाम् ( पहले उत्पन्न हुए सभी गुरुओं का ) अपि, ( भी ) गुरु, ( ज्ञान देने वाला / विद्या देने वाला है ।) कालेन, ( काल अर्थात समय की ) अनवच्छेदात्, ( सीमा / बाध्यता से रहित होने के कारण । )

सूत्रार्थ :- वह ईश्वर काल या समय की सीमा के बन्धन से परे होने के कारण पूर्व में उत्पन्न हुए सभी गुरुओं का गुरु है।

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ईश्वर को कैसे लोग अत्यंत प्रिय है-

अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च।
निर्ममो निरहंकार: समदु:खसुख: क्षमी ॥13
संतुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चय: ।
मय्यार्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्त: स मे प्रिय: ॥14
-(गीता-12:13-14)
अर्थ - मेरे लिए वे भक्त बहुत प्रिय हैं जो सभी जीवों के प्रति द्वेष से मुक्त हैं, जो मित्रवत हैं, और दयालु हैं। वे सम्पत्ति और अहंकार के प्रति आसक्ति से मुक्त होते हैं, सुख-दुःख में समान , क्षमाशील , सन्तुष्ट हैं। वे आत्म-नियंत्रित में दृढ़ है और मन और बुद्धि में मेरे लिए समर्पित हैं।
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हम ईश्वर के धाम (मोक्ष) को किसी भी प्रकार से प्राप्त कर सकते है-
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ।।
-(गीता-18.62)
अर्थ - हे भारत! तू सब प्रकार (ध्यान योग , दया धर्म और सत्कर्म आदि ) से उस परमेश्वर की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शान्ति को तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा ।।
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इस लेख का अंत हम गायत्री मंत्र के साथ करेंगे-
ॐ भूर् भुवः स्वः।तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
अर्थ: - हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों तथा अज्ञान की दूर करने वाला हैं- वह हमें प्रकाश दिखाए और हमें सत्य पथ पर ले जाए।

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