सनातन धर्म में समय समय पर ऐसे महापुरुष हुवे जिन्होंने धर्म का उत्थान किया जो अलग अलग वर्ग से थे ये इसलिए संभव हो सका क्यूंकि सनातन धर्म हमेशा से गुण कर्म प्रधान धर्म है जिसमे व्यक्ति का गुण महत्व रखते है ख़ानदान नहीं उदाहरण के तौर पर आप इनके बारे में पढ़िए -
1-【महर्षि ऐत्रेय महिदास】 : परंपरा के अनुसार उनकी माता 'इतरा' नाम की दासी थीं। इस ऋषि को ऐत्रेय ब्राह्मण के संकलन का श्रेय दिया जाता है।
2-【ऋषिका लोपामुद्रा】: यह विदर्भ की एक क्षत्रिय राजकुमारी थीं, जिन्होंने महर्षि अगस्त्य से विवाह किया था। यह ऋग्वेद के कुछ श्लोकों की द्रष्टा हैं। इनके और महर्षि अगस्त्य के बीच कई संपादन संवाद पुराणों में दर्ज हैं।
3-【महर्षि विश्वामित्र】: यह 'विश्वरथ' नाम के क्षत्रिय थे। इनको 'गायत्री मंत्र' की सर्वोत्कृष्टता को प्रकट करने का श्रेय दिया जाता है। महर्षि विश्वामित्र ने अपनी आध्यात्मिक ज्ञान के कारण ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया।
4-【महर्षि वेद व्यास】: यह पाराशर ऋषि से सत्यवती नाम की एक मछुआरे-महिला के पुत्र थे। इनका जन्मदिन 'गुरु-पूर्णिमा' के रूप में मनाया जाता है। महाभारत और कई अन्य सनातन ग्रंथों के संकलन का श्रेय इन्हें ही दिया जाता है।
5-【महर्षि मातंग】: यह एक शूद्र माता और एक वैश्य पिता के पुत्र थे। असल में, चांडालों को अक्सर (वराह पुराण 1.139.91 ) जैसे अंशों में 'मतंग' के रूप में संबोधित किया जाता है।
6-【महर्षि वाल्मीकि】: यह ऋषियों के वंशज थे लेकिन चांडाल बन गए थे (सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया)चांडाल रत्नाकर नाम दिया गया था, क्योंकि इन्होने हत्या की और राजमार्ग डकैती की थी। प्रजापति ब्रह्मा द्वारा इनका सुधार किया गया और दिव्य ऋषि नारद से प्रेरित होकर इन्होने हिंदू महाकाव्य सर्वोत्कृष्ट- रामायण रचना किया ।
7-【ऋषिका सुलभा मैत्रेयी】: यह एक क्षत्रिय महिला थीं जिन्होंने ऋग्वेद की शाखा सौलभा को प्रख्यापित किया था। उनकी गिनती ऋग्वेद के उन श्रद्धेय आचार्यों में होती है जिनके लिए कौशिकी ब्राह्मण जैसे ग्रंथों में सम्मान दिया गया है। सौलभा ब्राह्मण अब खो गया है, लेकिन काशिका में नाम का उल्लेख किया गया है। विदेह के राजा जनक के साथ ऋषिका सुलभा का आध्यात्मिकता पर संवाद है महाभारत के शांति पर्व में दर्ज है।
8-【भक्त नम्मालवर】: आलवार वैष्णव संतों में सबसे प्रमुख, ये शूद्र माता पिता की संतान थे। इनका जन्म अलवारथिरुनागिरि (कुरुगुर ) 3059 ईसा पूर्व में हुवा था । नम्मलवार को बारह अलवरों की पंक्ति में पांचवां माना जाता है। उन्हें वैष्णव परंपरा का एक महान रहस्यवादी माना जाता है। उन्हें बारह अलवरों में सबसे महान भी माना जाता है और नलयिर दिव्य प्रबंध में 4000 श्लोकों में से उनका योगदान 1352 श्लोकों में है । नाम्मलवार ने चार ग्रन्थ की रचना की हैं । वे इस प्रकार है -
तिरुविरुत्तम(ऋग वेद सामान )
तिरुवासिरियम (यजुर वेद सामान )
पेरिय तिरुवन्दादी (अथर्व वेद सामान )
तिरुवाय्मोळि (साम वेद सामान)
इन्हे “वेदम तमिल सेय्द मारन” नाम से भी सम्बोधित किया जाता हैं । इसका अर्थ हैं की संस्कृत वेदों का सारार्थ तमिल प्रभंधा में अनुग्रह करने वाले मारन । अन्य आल्वारों के प्रभंध वेदों के अंग (जैसे शिक्ष, व्याकरण इत्यादि ) माने जाते हैं और तिरुवाय्मोळि को 4000 दिव्य पशुरो का सार संग्रह माना जाता हैं।
9-【नरसी मेहता】: उनका जन्म 15 वीं सदी में एक वैश्य परिवार में हुआ था, जो गुजरात के एक प्रसिद्ध वैष्णव संत हैं। हालांकि कुछ लोगों का मानना है वह ब्राह्मण थे। उनकी एक रचना- "वैष्णव जन" थी।
10-【संत रविदास】: वे एक मोची थे, और इसलिए शूद्र मूल के थे। उन्होंने भक्ति आंदोलन को आगे बढ़ाया इनकी 16 रचनाओं को आदि ग्रंथ- सिख ग्रंथ में शामिल किया गया था।
11-【संत मीरा】: यह मेवाड़ की एक राजपूत क्षत्रिय राजकुमारी थीं और उन्होंने अपना जीवन भगवान कृष्ण की सेवा में समर्पित कर दिया। भगवान कृष्ण को संबोधित उनकी सुंदर काव्य रचनाएँ हैं: जो आज तक हिंदुओं द्वारा बड़े उत्साह के साथ पाठ किया जाता है।इन्होने वैष्णव मत का प्रचार प्रसार किया।
12-【स्वामी विवेकानंद】: आधुनिक हिंदू धर्म के अग्रणी सुधारकों में से एक, वह बंगाल की कायस्थ उपजाति के थे । इन्होने अमेरिका और यूरोप में वेदांत का संदेश फैलाया और उनके लेखन और भाषण "द कलेक्टेड राइटिंग्स ऑफ़ स्वामी विवेकानंद" में निहित हैं । इन्होने रामकृष्ण मिशन- एक धार्मिक संगठन की स्थापना की अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया। धर्मांतरित हुवे लोगो की घर वापसी का काम विवेकानंद ने अपने धार्मिक संगठन रामकृष्ण मिशन द्वारा करवाया।
13-【संत चोखामेला 】: यह एक महार, मराठी भक्ति आंदोलन में 14 वीं शताब्दी की एक प्रमुख हस्ती हैं। वे संत नामदेव के शिष्य थे, स्वयं एक शूद्र और भगवान विट्ठल के प्रबल भक्त थे। उन्होंने कई प्रसिद्ध अभंग लिखे जो भगवान विट्ठल (कृष्ण) को समर्पित भक्ति कविता हैं।
14-【संत गुरु घासी दास】 : इनका जन्म रायपुर, छत्तीसगढ़ (1756–1850) में निम्न जाति के परिवार में हुआ था। दलित संत गुरु घासी दास जनता को हिंदू धर्म के सतनामी संप्रदाय का प्रचार किया और छत्तीसगढ़ में सतनामी संप्रदाय की स्थापना की।इन्होने हिन्दू धर्म त्याग कर अन्य धर्म अपना लिए आदिवासी हिन्दुओ की घर वापसी करवाई । उनके काम के परिणामस्वरूप राज्य में कई दलित और बहिष्कृत समुदायों का सामाजिक और धार्मिक उत्थान हुआ।
15-【संत बलराम हादी 】: इनका जन्म 18 वीं शताब्दी में हुआ , बलराम हादी ने बंगाल के नादिया क्षेत्र में बलहादी/बलरामी संप्रदाय की स्थापना की। वह हादी निम्न जाति के थे। इनके ज्ञान के कारण लोगो ने इन्हे राम का अवतार मान लिया। उन्होंने जिस धर्म का प्रचार किया वह गृहस्थों के लिए था और हादी, डोम, बगदी, मुची, बेडे जैसे निम्न पिछड़ी जातियां अनुयायी थे और यहां तक कि मुसलमानों के बीच भी इनको प्रसिद्धि मिली और वह के मुस्लिम भी इनके अनुयायी बने। इन्होने जातिवाद का विरोध किया और मुक्ति प्राप्त करने के लिए भक्ति और तपस्वी के मार्ग की वकालत की।
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