वर्ण संकरता और वर्ण व्यवस्था




【 वर्ण संकर का अर्थ 】


अलग अलग वर्ण के स्त्री और पुरुष के मिलन से उत्पन्न होने वाली सन्तान को वर्ण संकर कहा जाता है|


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【पुराणों के अनुसार】


बाद में लिखे गए कुछ स्मृति तथा धर्मसूत्र इस विषय पर बहुत निंदाजनक वचन बोलते है  | वेदों में वर्ण संकरता जैसा कोई विचार नहीं है इसलिए पुराणों से ही हम कलयुग में संकरता वर्ण को समझेंगे तथा अंत में निष्कर्ष निकालेंगे |


नृसिहं पुराण के अध्याय 54 के श्लोक 18और 23 इस संबंध मे दृष्टव्य हैं ,जो इस प्रकार हैं :-

         शूद्रतुल्या  भविष्यन्ति    परस्पर वधेप्सव:|

         उत्तमां नीचतां   यान्ति नीचाश्चोत्मता तथा|(१८)

         न  कश्चिदकविर्नाम   सुरापा   ब्रम्हवादिन:|

         किंकराश्च  भविष्यन्ति  शूद्राणां द्विजातय:|(२३)

अर्थात - सारे वर्णो के लोग शूद्रो जैसे हो जायेंगे ,उत्तम वर्ण वाले नीचे गिरेंगें और नीचे वर्ण वाले उत्तम हो जायेंगे |ऐसा कोई नही होगा जो अपने को कवि न मानता हो|मदिरा पीने वाले ब्रम्हग्यान का उपदेश करेंगे |ब्राम्हण,क्षत्रिय और वैश्य शूद्रो के सेवक हो जायेंगे|





विष्णु पुराण मे क्या कहा गया है|विष्णु पुराण के षष्ठ अंश के अध्याय २ इस संबंध मे पठनीय है,मै उसका संगत अंश आपके सामने रख रहा हूँ |इस अध्याय मे कलियुग मे शूद्र व स्त्रियो के महत्व का वर्णन किया गया है और उनकी कलियुग मे श्रेष्ठता बताई गयी है|जो इस प्रकार है:-

                             श्री पराशर उवाच

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             मग्नो९थ   जान्ह्वीतोयादुत्थायाह   सुतो   मम|

             शूद्रस्साधु:   कलिस्साधुरित्येवं    श्रृणवतां वच|(६)

             तेषां मुनीनां  भूयश्च         ममज्ज स नदी जले|

             साधु साध्विति चोत्थाय शूद्र धन्योसि  चाब्रवीत(७)

             निमग्नश्च    समुत्थाय   पुन:   प्राह    महामुनि:|

             योषित: साधु धन्यातास्ताभ्यो धन्यतरो९स्ति क:|(८)

             व्रतचर्यापरैर्ग्राह्या    वेदा:    पूर्वं    द्विजातिभि:|

             ततस्स्वधर्मसम्प्राप्तैर्यष्टव्यं           विधिवद्धनै |(१९)

             वृथा कथा वृथा भोज्यंवृथेज्या च द्विजन्मनाम|

             पतनाय    ततो   भाव्यं   तैस्तु  संयमिभिस्स्दा|(२०)

             असम्यक्करणे  दोषस्तेषां   सर्वेषु       वस्तुषु|

             भोज्यपेयादिकं चैषां   नेच्छाप्राप्तिकरं  द्विजा:|(२१)

             पारतन्त्रयं   समस्तेषु    तेषां   कार्येषु  वै यत:|

             जयन्ति ते निज़ाँल्लोकान्क्लेशेन महता द्विजा:|(२२)

             द्विजश्रुषयैवैष             पाकयज्ञाधिकारवान|

             निजान्जयति   वै लोकान्च्छूद्रो धन्यतरस्तत:|(२३)

अर्थात - उस समय गंगाजी मे डुबकी लगाए हुए मेरे पुत्र व्यास ने जल से उठकर उन मुनि जन के सुनते हुए ,यह वचन कहा कि कलियुग ही श्रेष्ठ है,शूद्र ही श्रेष्ठ है|ऐसा कहकर फिर उन्होने गोता लगाया और फिर उठकर कहा ''शूद्र तुम ही श्रेष्ठ हो,तुम ही धन्य हो,यह कहकरवे महामुनि फिर जलमे मग्न हो गये और फिर खडे होकर कहा कि ''स्त्रिय़ाँ ही साधु हैं,वे ही धन्य हैं ,उनसे अधिक धन्य कौन है?''| 

फिर इसका कारण भी बताया,कि द्विजातियो को पहले ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करते हुए वेदाध्ययन करना पड़ता है और फिर स्वधर्माचरण से उपार्जित धन के द्वारा विधिपूर्वक यज्ञ करने पड़ते हैं ,इसमे भी व्यर्थ वार्तालाप,व्यर्थ भोजन और व्यर्थ यज्ञ उनके पतन के कारण होते हैं,इसलिए उन्हे सदा संयमी रहना पड़ता है,सभी कामो मे अनुचित(विधि विपरीत) करने से उन्हे दोष लगता है|यहाँ तक वे भोजन पानादि भी अपनी इच्छा से भोग नही सकते क्योंकि उन्हे सम्पूर्ण कार्यो मै परतन्त्रता रहतीहै|द्विज लोग बडे क्लेश से निज लोको को प्राप्त करते है|किन्तु जिसे द्विज सेवार्थ पाक यज्ञ का अधिकार है,वह पुण्य लोको की आसानी से प्राप्ति कर लेता है,''इस लिए वह अन्य वर्णो से धन्यतर है|मुनिजन शूद्र को भक्ष्याभक्ष्य का अथवा पेयापेय का कोई नियम नही होता है,इसलिए मैने उसे साधु अर्थात श्रेष्ठ कहा है|

मित्रों,देखा आपने कलियुग मे वर्ण व्यवस्था का एक और पहलू हम आज कल भी ब्राम्हण को श्रेष्ठ वर्ण बताते है और इसका प्रचार भी करते है|जबकि धर्मशास्त्रो के अनुसार श्रेष्ठ वर्ण शूद्र भी है |





श्रीमद् भागवत पुराण के स्कंध 12 अध्याय  2 के श्लोक 8,12 व 14 ग्रहणीय हैं,जो कलियुग के संबंध में हैं जो इस प्रकार हैं :-

         ब्राम्हणविटक्षत्रशूद्राणाम् यो बली भविता नृप:|

         प्रजा   हि   लुब्धै     राजन्यैनिर्धृणैर्दस्युधर्मभि:|(८)

         क्षीणमायेषु     देहेषु   देहिनाम्     कलिदोषत:|

         वर्णाश्रमवताम्   धर्मे   नष्टे  वेद  पथे    नृणाम् |(१२)

         शूद्रप्रायेषु        वर्णेषुच्छागप्रायासु        धेनुषु |

         गृहप्रायेष्वाश्रमेषु         यौनप्रायेषु        बंधुषु |(१४)

अर्थात -कलियुग मे राजा होने का कोई नियम नही होगा ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य अथवा शूद्र मे जो बली होगा वही राजा होगा|उस समय के राजा निर्दयी होंगे | लोभी इतने होंगे कि उनमें और लुटेरो मे कोई अन्तर नही रह जायेगा| कलि के दोष के कारण प्राणियो के शरीर छोटे व रोगग्रस्त हो जायेंगें |वर्ण और आश्रम बतलाने वाला धर्म नष्ट हो जायेगा| चारो वर्णो के लोग शूद्रो के समान हो जायेगें| गायें बकरी के समान छोटी-छोटी और कम दूध देने वाली होंगी|चारो आश्रम वाले (ब्रम्हचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ और सन्यास) गृहस्थों जैसे होंगे | वैवाहिक संबंध वाले ही अपने बन्धु अर्थात सगे संबंधी होंगे|



मत्स्य पुराण के अध्याय 165 के श्लोक 14 से 17 का उल्लेख कर रहा हू|जो निम्नवत हैं :-

तथा वर्षसहत्रं तु वर्षाणाम् द्वे शते अपि|

संध्यया सह संख्यातं क्रूरं कलियुगं स्मृतम्|((१४)

यन्नाधर्मश्चतुष्पाद: स्याद्धर्म: पादविग्रह:|

कामिनस्त पसा हीना जायन्ते तत्र मानवा:|(१५)

नैवातिसात्विक: कश्चिन्न साधुर्न सत्यवाक |

नास्तिका ब्रम्हभक्ता वा जायन्ते तत्रमानवा|(१६)

अहंकारगृहीताश्च प्रक्षीणस्नेहबन्धना:|

विप्रा: शूद्रसमाचारा: सन्ति सर्वे कलौ युगे|(१७)

अर्थात - तदुपरान्त एक सहस्त्र तथा दो सौ वर्ष अर्थात १२०० वर्षो तक क्रूर कलियुग की अवधि मानी गयी है|जिसमे अधर्म चार चरणो से विद्यमान रहता है उस कलियुग मे उतपन्न होने वाले मनुष्य,कामी,तथा तपस्या से रहित होते है वे अहंकार से ग्रस्त तथा स्नेह से रहित होते है|न तो कोई अत्यन्त सात्विक होता है और न ही कोई साधु अथवा सत्यवादी होता है|प्राय: परलोक न मानने वाले लोग होते है  और ब्रम्ह की उपासना करते है|कलियुग मे सभी ब्राम्हण शूद्रो का सा आचरण करने वाले होते है और सभी शुद्र सामान होंगे |



नृसिहं पुराण के अध्याय 54 के श्लोक  मे इस संबंध मे दृष्टव्य हैं ,जो इस प्रकार हैं :-

                                    राजोवाच 

            कलिं विस्तरतो ब्रूहि त्वं हि सर्वविदां वर:|

            ब्राम्हणा:क्षत्रिया वैश्या:शूद्राश्च मुनिसत्तम||(८)

            किमाहारा: किमाचारा भविष्यन्ति कलौयुगे|

                                    सूतोवाच

            श्रुणुध्वमृषय:   सर्वे     भरद्वाजेन    संयुता:(९)

अर्थात - राजा बोले कि मुनिसत्तम कलि का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए| क्योंकि आप सर्वज्ञ महात्माओ मे सर्वश्रेष्ठ हैं|कृपया बताइये कि कलियुग मे ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र कैसे आचरण व आहार वाले होंगे | 



          सूत जी बोले:-भरद्वाज सहित आप सभी ऋषिगण सुनें:-

            वद्धवैरा         भविष्यन्ति     परस्परवधेप्सव:|

            ब्राम्हणा:  क्षत्रिया वैश्या  सर्वे धर्मपराड् मुखा:(१७)

            शूद्रतुल्या भविष्यन्ति   तप: सत्य विवर्जिता:(१८)१

            ब्राम्हणा:क्षत्रिया वैश्या भविष्यन्ति कलौ युगे|

            गीतवाद्यरता       विप्रा     वेदवादपराड् मुखा|(३६)

            भविष्यन्ति   कलौ   प्राप्ते    शूद्रमार्गप्रवर्तिन:|

            अल्पद्रव्या   वृथालिड्न्गा  वृथाहंकारदूषिता:|(३७)

             शूद्रवृत्यैव  जीवन्ति   द्विजा  नरक    भोगिन:|

            अनावृष्टिभय     प्राया    गगनासक्त      दृष्टय:|(४६)

अर्थात - कलियुग मे ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य आपस मे वैर बाधंकर एक दूसरे का वध करने की इच्छा वाले होंगे|वे सभी अपने-अपने धर्म से विमुख होंगे| तप और सत्य भाषण आदि से रहित होकर शूद्रो के समान हो जायेंगे| कलियुग मे पाखण्डी ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य होंगे | कलियुग मे विप्र गाने बजाने मे मन लगायेँगे और शूद्रो के मार्ग का अनुसरण करेंगे|नरक भोगी द्विज( ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य)शूद्रवृत्ति से अपनी आजीविका चलायेंगे|वे अनावृष्टि का भय होगा वे आकाश की ओर वर्षा के लिए दृष्टि लगायेंगे| 



अग्नि पुराण में सोलहवें अध्याय के पांचवे श्लोक में कलियुग में सबके वर्णसंकर हो जाने की घोषणा की गयी है|श्लोक इस प्रकार है:-

                           सर्वे कलियुगान्ते भविष्यन्ति च संकरा:(५)

अर्थात - कलियुग में पाखण्डी लोग ऐसे कर्म करते है,जो नर्क में ले जाने वाले होते है|कलियुग के अन्त में सभी वर्ण संकर हो जाते है|





नारद पुराण के पूर्व भाग प्रथम पाद मे कलियुग का वर्णन करते हुए कहा गया है कि:-

    ''मनुष्यो के द्वारा बार बार अधर्मपूर्ण व्यवहार होता है|

उस समय समस्त पाप परायण प्रजा अवस्था क्रम के विपरीत मरने लगेगी| ब्राम्हण आदि सभी वर्णो मे परस्पर संकरता आ जायेगी| मूढृ मनुष्य काम और क्रोध के वशीभूत हो व्यर्थ के संताप से पीड़ित होगे|   

'' कलियुग मे सभी वर्ण शूद्रो के समान हो जायेंगे|''


निष्कर्ष-हिंदुओं को छोड़कर बाकी इस्लाम और ईसाइयत में काफी एकता देखी जाती है इसका एक सबसे बड़ा कारण है कि वह लोग अंतरजाति विवाह करते हैं जिससे जरूरत पड़ने पर वह लोग एक हो जाते हैं इसीलिए हम हिंदुओं को भी एक होना होगा आपसी द्वेष और कुंठा बुलाकर सभी वर्णों में वैवाहिक संबंध स्थापित करने होंगे ! और वैसे भी पुराणों के अनुसार कलयुग में सभी वर्णसंकर है क्योंकि अब आश्रम व्यवस्था खत्म हो चुकी है !

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 【ज्योतिष शास्त्र के अनुसार】

 ज्योतिष ग्रन्थो के अनुसार 27 नक्षत्र होते है,उनके आधार पर हमारी जन्म राशि का निर्धारण होता है | राशिय़ाँ 12 है जैसे कि मेष,बृष,मिथुन,कर्क,सिहं,कन्या,तुला,वृश्चिक,धनु,मकर,कुम्भ और मीन | प्रयेक राशि का एक वर्ण होता है|इन बारह राशियों का चार वर्णो में विभाजन किया गया है|

जो निम्न प्रकार से है:-

                 मेष, सिहं ,धनु        =        क्षत्रिय 

                 बृष,कन्या,मकर      =         वैश्य

                मिथुन,तूला,कुम्भ     =           शूद्र

                कर्क,वृश्चिक,मीन      =         ब्राम्हण



यदि आपका परिवार छोटा है तो कम से कम दो या तीन वर्णो के लोग आपके परिवार मे होंगे और यदि परिवार बडा है तो चारो वर्णो के लोग आपके परिवार मे होंगे| जहाँ तक आपके कुल या वंश की बात है,चारो वर्णो के लोग उसमे अवश्य मिलेगें | सिद्ध हुआ ना कि हम सब वर्ण संकर हैं |

झष: कर्कटो वृश्चिको भूमिदेवा धनुर्मेषसिंहास्तथा क्षत्रियाश्च।
वृष: कन्यका नक्रराशिर्विराश्च नृयुग्मं तुला कुम्भराशिश्च शूद्रा:।।
(मुहूर्तसंग्रहदर्पणम्  2:24)
अर्थात - कर्क, वृश्चिक, मीन राशि ब्राह्मण; मेष, सिंह, धनु राशि क्षत्रिय; वृष, कन्या, मकर राशि वैश्य तथा मिथुन, तुला, कुम्भ राशि शूद्र हैं।
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【भिन्न वर्णों के विवाह सम्बन्ध के प्राचीन उदाहरण 】


1-   महर्षि शुक्राचार्य ब्राह्मण ने राजा प्रियवृत क्षत्रिय की पुत्री उर्जस्वती से विवाह किया था। 

2-   महर्षि श्रृंगी ब्राह्मण ने राजा लोमपाद की पुत्री ( और राजा दशरथ की गोद ली हुई पुत्री)  शांता (भगवान रामचन्द्रजी की सौतेली बहन)  से विवाह किया था। इन्हीं के पुत्रेष्टि यज्ञ की खीर से दशरथ जी के चार बेटों का जन्म हुआ था। 

3-   महर्षि जमदग्नि ब्राह्मण ने राजा गाधि की कन्या रेणुका से विवाह किया था।   इन्हीं की महावीर संतान  भगवान परशुराम जी थे, जिन्होंने   21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहिन कर दिया था। 

4- महर्षि ऋचीक ब्राह्मण ने राजा गाधि क्षत्रिय की कन्या सत्यवती से विवाह किया था। 

5- महर्षि पिप्पलाद ब्राह्मण ने क्षत्रिय पद्ध्य से विवाह किया था! ( शिव - पुराण,  उत्तरार्ध,  अध्याय -30)  

6-  महर्षि अगस्त्य ब्राह्मण ने क्षत्रिय कन्या  लोपामुद्रा से विवाह किया था।  

7- महर्षि रैक्व ब्राह्मण (उपनिषद् में प्रसिद्ध  ऋषि) ने राजा जानश्रुत क्षत्रिय की कन्या से विवाह ( या दान में प्राप्त) किया था। 

8- सौभरि ब्राह्मण ने राजा मान्धाता (जो राम जी के पूर्वज थे) क्षत्रिय की कन्या से विवाह किया था।  

9- भगवान रामचन्द्र जी के गुरु महर्षि विश्वामित्र जी ने देवलोक की अप्सरा मेनका से बिना विवाह किये शकुन्तला उत्पन्न की थी।  जिसका प्रेम राजा दुष्यन्त से हुआ था, जिसकी सन्तान भरत थे। जिनके नाम से कहा जाता है कि हमारे देश का नाम भारत पड़ा है। 

10-  महाभारत के भीम ने आदिवासी हिडम्बा से विवाह कर महावीर घटोत्कच को जन्म दिया था। 

11- भगवान कृष्ण ने जामवती नामक एक आदिवासी कन्या से विवाह किया था, उनके पुत्र साम्ब ने मायावती नामक असुर कन्या से प्रेम विवाह किया था! 

12- राजा प्रियवृत क्षत्रिय ने विश्वकर्मा ब्राह्मण की बेटी बर्हिष्मती से विवाह किया था। 

वायु पुराण के अनुसार इनका एक विवाह महर्षि कर्दम ब्राह्मण की पुत्री काम्या या कन्या से हुवा था। 

13- राजा नीप क्षत्रिय ने राक्षसों के गुरु महर्षि शुक्राचार्य ब्राह्मण की पुत्री कृत्वी  से विवाह कर ब्रह्मदत्त को जन्म दिया!  ( भागवत पुराण स्कन्ध 9/21)  इसी कुल में मुदगल ऋषि उत्पन्न हुए थे,  जिनके नाम पर ब्राह्मणों में मौद्गल्य गौत्र चला है। 

14- राजा ययाति क्षत्रिय ने महर्षि शुक्राचार्य ब्राह्मण की एक पुत्री देवयानी से  विवाह किया था ,शुक्राचार्य की अनुमति से यह ब्याह हुआ।  

15- प्रमत्ता ब्राह्मणी का विवाह एक नाई के साथ हुआ!  इनके पुत्र मतंग महामुनि थे ( महाभारत, अनुशासन पर्व,  अध्याय -22,) 

16- आपको यह जानकर घोर आश्चर्य होगा कि भगवान रामचन्द्र जी के गुरु महर्षि वसिष्ठ  गणिका  के गर्भ से पैदा हुए थे। 

 (  गणिकागर्भ सम्भूतो वासिष्ठाश्च महामुनि:। तपसा ब्राह्मणों जात:  संस्कारस्तत्र  कारणम्।।

भविष्य पुराण, 1/42/49) 

17- महर्षि कर्दम ब्राह्मण की कन्या अरुंधती  और वैश्या पुत्र महर्षि वसिष्ठ  का विवाह हुआ था, उनके पुत्र शक्ति का विवाह चांडाल (भंगी) कन्या अदृश्यवती से हुआ था,  इनके पुत्र महर्षि पराशर हुए!  जिनके नाम से ब्राह्मणों में पराशर गोत्र प्रचलित है! (  शिव पुराण, पूर्वार्ध खंड 1 अध्याय 13) 

18-  महर्षि पराशर ने नाव में सत्यवती (मत्स्यगंधा अर्थात जिसके शरीर से मछली की गन्ध आती हो) नामक केवट या भोई या निषाद कन्या से प्रेम होने पर महर्षि वेद व्यास को उत्पन्न किया था,  जो हम हिंदुओं के सबसे बड़े गुरु हैं, जिनके नाम से व्यास पूर्णिमा या गुरुपूर्णिमा हम सारे देश में घूमधाम से मनाते हैं। जिन्हें 18 पुराण,  महाभारत, गीता के लेखक और चारों वेदों के संकलन कर्ता माना जाता है।

19 - महर्षि वेद व्यास ने नियोग द्वारा धृतराष्ट्र और पांडु को पैदा किया था! और पाँच पाण्डव युधिष्ठिर,  भीम,  अर्जुन नकुल सहदेव  पाँचों वर्ण संकर संतान थे।  

20 - गीता में अर्जुन वर्ण संकरता का विरोध करता है जबकि वह स्वयं उसके दादा परदादा और उसकी स्वयं की सन्तान वर्ण संकर थी क्योंकि उसने स्वयं ने चित्रांगदा और उलूपी नामक आदिवासी या विदेशी लड़कियों से विवाह किया था। 

21 - व्यास जी की माता जी सत्यवती केवट  का विवाह इस शर्त पर राजा शान्तनु से हुआ था कि सत्यवती की कोख से जन्मा बालक ही दिल्ली (हस्तिनापुर)  की गद्दी पर बैठेगा!  इस कारण शान्तनु के बेटे देवदत्त को आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा कर भीष्म बनना पड़ा था। 

22-  दशरथ जी का विवाह अफ़ग़ानिस्तान या कैकयी देश की राजकुमारी कैकयी से हुआ था,  भगवान रामचन्द्र जी का विवाह अज्ञात कुल की कन्या माता सीता जी से हुवा था।

23- महान सम्राट  चन्द्रगुप्त मौर्य ने शूद्र स्त्री से प्रेम विवाह  तथा यूनानी सम्राट सेल्यूकस की पुत्री हेलना  से आचार्य चाणक्य की आज्ञा अनुसार विवाह किया , सम्राट चन्द्रगुप्त के बेटे बिन्दुसार ने चंपा की ब्राह्मण स्त्री सुभद्रांगी से विवाह किया जिससे सुप्रसिद्ध सम्राट अशोक का जन्म हुवा। सम्राट अशोक ने विदिशा के एक वैश्य की कन्या श्रीदेवी से प्रेम विवाह किया था।

24 -प्रसिद्ध पितृ मातृ भक्त श्रवण कुमार के पिता वैश्य और माता शूद्र थी ।  

25-  हम सबके लोक देवता प्रातः स्मार्णीय हनुमान जी की माता अंजलि जी ब्राह्मण कन्या व उनके पिता केसरी जी वानर जाति के थे।

26-भृगु मुनि एक ब्राह्मण थे; उनका पुत्र सौनिक उसकी शादी हुयी क्षत्रिय राजा ययाति की कन्या  सुकन्नी के साथ।

27- मुनि सलारकर ने  नागलोक की कन्या  सलार्कारै से शादी की ; यह नागलोक और भूलोक के अंतरजातीय विवाह था।

28-शांतनु महाजा और सत्यवती (परिमाल्गंधी )का विवाह  ।वशु  क्षत्रिय और उनकी पत्नी देव-कन्य थी; देव-कन्या किसी शाप से मच्छ कन्या के रूप में पैदा हुयी ; उस कन्या के पालित पिता ने वर पाया कि उनकी बेटी राजकुमारी  होनी चाहिए. इसी कारण शांतनु और देवयानी की शादी हुयी।

29-रूद्रसेन II तथा प्रभावती गुप्ता का विवाह, रविकीर्ति नामक ब्राह्मण का वैश्य कन्या भानुगुप्ता से विवाह।

अंतरजातीय शादियाँ किसी प्रकार के विरोध के बिना महाभारत में हुयी हैं. अतः अंतरजातीय विवाह नया नहीं हैं. केवल कलियुग की बात नहीं हैं ; भारतीय परंपरा में  हुआ है; इसको कलियुग का बलि मानना गलत है । कौन कहता है कि वर्णसंकर संतान  नालायक, अयोग्य,  विकलांग,  अधार्मिक,  पापी या कुल को डुबोने वाली होती है?  इतिहास और विज्ञान ने साबित कर दिया है कि वर्णसंकर संतान हमेशा बुद्धिमान,  खूबसूरत,  शक्तिशाली और रोग प्रतिरोधक क्षमता से लेश रहते हैं।
इन सब उदाहरणों से साबित होता है कि हमारे पूर्वज रोटी- बेटी व्यवहार में कितने उदार थे, उन्होंने अवैध संतानों तक को भी ऋषि- महर्षि,  देवी- देवता और भगवान  या अवतारी पुरुषों तक का दर्जा दिया था। न जाने हम  कैसे  उनकी नालायक संतान निकले की रोटी- बेटी बंदी को ही धर्म समझकर एक दूसरे के खून के प्यासे बन गए।

30-लक्ष्मण की माता सुमित्रा वर्ण संकरी थी । जिन्हें इस विषय में किसी प्रकार की शंका हो वे कृपा कर भट्टि काव्य, प्रथम सर्ग श्लोक 13 तथा उसकी जयमंगला टीका पढ़ें-

निष्ठांगते दत्रिमसभ्यतोषे, विहित्रिभे कर्म्मणि राजपत्न्यः । 
प्राशुहुनोच्छिष्ट मुदारवंश्या - स्तिस्रः प्रसोतुं चतुरः सुपुत्रान् ॥ 
अर्थ - जब राजा दशरथ का पुत्रेष्ठि यज्ञ विधिपूर्वक समाप्त हुआ और उन्होंने सब लोगों को दान दक्षिणा देकर सन्तुष्ट किया तो उनकी तीनों स्त्रियों ने, जो उच्चकुल में उत्पन्न हुई थीं, चार सुन्दर पुत्रों को उत्पन्न करने के लिए यज्ञ के बचे हुए चरु का भक्षण किया ।

इस श्लोक में 'उदार वेश्या:' शब्द की व्याख्या करते हुए भट्टि काव्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार श्री जयमङ्गल जी अपनी जयमङ्गला टीका में लिखते हैं-

“उदारवंश्या महावंशोद्भवा । शेषेयत् । कौसल्या कैकेयी च क्षत्रिये । सुमित्रा तुवर्ण संकरजा |
अर्थ - उदार वंश्या का अर्थ है उच्चकुल में उत्पन्न । यहाँ पर शैषिक यत् प्रत्यय किया गया है। कौशल्या और कैकेयी क्षत्रिय कुमारियाँ थीं। किन्तु सुमित्रा वर्णसंकरी थी।

महाकाव्य रघुवंश, दशम सर्ग, श्लोक 55 पढ़िए -
अचिता तस्य कौशल्या प्रिया केकय वंशजा ।
अतः संभावितां ताभ्यां सुमित्रा मैश्वरः
अथ - कौशल्या राजा दशरथ की पूजिता थी अर्थात् वे उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा करते थे और कैकेयी उनकी प्रियतमा थी इसलिए उनकी यह इच्छा हुई ये ही दोनों सुमित्रा को सम्मानित करें। अभिप्राय यह कि राजा दशरथ को साहस न हुआ कि पिंड-विभाग करते समय वे सुमित्रा के लिए भी एक भाग स्वयं कर दें; अतः उन्होंने उस पर कृपा करने का भार उक्त दोनों रानियों पर ही छोड़ा किन्तु रानियों ने कोई भेदभाव नहीं किया । 
अतः इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि लक्ष्मण की माता सुमित्रा क्षत्रिया न होकर वर्णसंकरी थी, जिसपर भी लक्ष्मण का विवाह क्षत्रिश्रेष्ठ मिथिलेश के परिवार में ही हुआ।
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【अन्य तथ्य 】


गंधर्व या प्रेम विवाह को सनातन धर्म में कानूनी या धार्मिक मान्यता है। हमारे बहुत से  महापुरुषों ने गंधर्व विवाह किया था और गंधर्व विवाह में ज्यादातर स्त्री और पुरुष अलग अलग वर्ण के होते थे । प्रेम विवाह को सनातन धर्म में धार्मिक मान्यता ही इस रूढ़िवादी विचार का ख़तम कर देती है।

वात्स्यायन ऋषि इस प्रकार के विवाह के प्रबल समर्थक हैं, उनकी दृष्टि में भी अनुरागात्मकता के कारण इसका बहुत महत्व है । बौधायन तथा नारद ने भी इसे हेय नहीं माना है।
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【वर्ण संकरता का फायदा 】


वैज्ञानिक आधार से अगर कहे तो अलग अलग वर्ण के लोगो में वैवाहिक सम्बन्ध बनने से कई आनुवांशिक बीमारियां खत्म हो जाती है जो पीढी दर पीढी चली आ रही तथा पैदा होने संतान अधिक गुणवान होती है ।
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【अन्तर्जातीय विवाह पर प्रतिबन्ध के कारण】


🌸अन्तर्जातीय विवाह पर प्रतिबन्ध के सम्बन्ध में विचार करते हुए डा. घुर्ये ने तीन कारण बताएं हैं -

1- रक्त की परिपक्वता को बनाए रखने की इच्छा.
2- वैदिक संस्कृति को किसी बाहिरी से (मलेच्छ)अक्षुण्य बनाये रखने का प्रयास.  
3- ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को स्थिर रखने तथा कर्माधारित  वर्ण व्यवस्था को  जन्म आधारित बनने की अभिलाषा.

डॉ 0 घुर्ये जैसे समाजशास्त्रियों ने अन्तर्जातीय विवाह के औचित्य का समर्थन करते हुए लिखा है कि- ' अन्तर्जातीय विवाह के द्वारा एक जाति का दूसरी जाति में रक्त का सम्मिश्रण होना, सम्बन्धों को दृढ़ बनाने तथा राष्ट्रीयता
का पोषण करने में सबसे प्रभावशाली साधन सिद्ध हुआ है ।

(सन्दर्भ -Ghurye ,Caste Class and Occupation , page -147 ,75) 

🌸डा 0 राजबली पाण्डेय ने  अपनी किताब ( हिन्दू संस्कार : पेज 227 ) पर विभिन्न उदाहरणों द्वारा दिखाया है कि वैदिक कालीन समाज में प्रतिलोम विवाह व्यवहृत था ।  इसका कारण वर्ण बन्धन में जटिलता का अभी तक विकास न हो पाना था।
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【कलयुग में वर्णव्यवस्था का स्वरूप 】


🌸शुरू में सभी एक वर्ण के थे-

◙ न विशेषोऽस्ति वर्णानां सर्वं ब्राह्ममिदं जगत्।
ब्रह्मणा पूर्वसृष्टं हि कर्मभिर्वर्णतां गतम्॥

(महाभारत- शान्तिपर्व -188:10)

अर्थात्-सारा मनुष्य-जगत् एक ब्रह्म की सन्तान है।  वर्णों में कोई भेद नहीं है। ब्रह्मा के द्वारा रचा गया यह सारा संसार पहले सम्पूर्णतः ब्राह्मण ही था। मनुष्यों के कर्मों द्वारा यह वर्णों में विभक्त हुआ। 

🌸एक वर्ण से 4 वर्ण  बने-

◙ इत्येतैःकर्मभिर्व्यस्ताः द्विजा वर्णान्तरं गताः।
धर्मो यज्ञक्रिया तेषाँ नित्यंच प्रतिषिध्यते ॥ 
(महाभारत- शान्तिपर्व -188:14)
अर्थात्-कार्य भेद के कारण ब्राह्मण ही पृथक-पृथक वर्णों के हो गये। इसलिए धर्म-कर्म और यज्ञ क्रिया उनके लिए भी विहित है-और कभी निषेध नहीं किया गया है ॥ १४ ॥

 🌸फिर कलयुग में वर्णव्यवस्था का पतन होता है-

◙    ब्राम्हणा:   सर्वभक्षाश्च   भविष्यन्ति   कलौयुगे|
अजपा ब्राम्हणास्तात  शूद्रा     जप   परायणा|३३ 
मृषानुशासिन:   पाप : मृषावाद     परायणा:|
आन्ध्रा:शका:  पुलिन्दाश्च   यवनाश्च  नराधिपा:३५ 
काम्बोजा वन्ह्विका: शूरास्तथा भीरा नरौत्तम|
न   तदा     ब्राम्हण:  कश्चित  स्वधर्मुपजीवित:|३६ 
क्षत्रियाश्चापि     वैश्याश्च  विकर्मस्था    नराधिप|
अल्पायुष:     स्वल्पबला:  स्वल्पवीर्य्पराक्रमा: |३७ 
(महाभारत-वनपर्व-188:33-36)

अर्थात - कलियुग मे ब्राम्हण भक्ष्याभक्ष्य का विचार छोडकर सब कुछ खाने पीने लगेंगे,वे जप से दूर भाग जायेंगे और शूद्र लोग वैदिक मन्त्रो से जप करने लगेंगे|  उस समय छल से शासन करने वाले,पापी और असत्यवादी
आन्ध्र,शक,पुलिन्द,यवन,कम्बोज,बान्हिक तथा शोर्य सम्पन्न आभीर इस देश के राजा होंगे |उस समय ब्राम्हण क्षत्रिय और वैश्यअपने धर्मानुसार  अपनी जीविका नही चलायेगा | सबकी आयु कम होगी | 

🌸इसलिए कलयुग में 4 वर्ण फिर से 1 वर्ण का हो जायेगा-

◙ ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्या नशिष्यन्ति जनाधिप।
एकवर्णस्तदा लोको भविष्यति युगक्षये ।।
(महाभारत-वनपर्व-190:42)

अर्थात - ब्राम्हण,क्षत्रिय और वैश्य का नाम भी नही रह जायेगा,युगान्त काल मे सारा विश्व एकवर्ण हो जायेगा जैसे शुरू में था |

इसलिए अब समय आ गया है हम सब अपने निजी द्वेष कुण्ठा भुला कर सभी सनातनियो को जोड़े और अपने धर्म के अंतर्गत अलग अलग वर्ण के लोग विवाह करे तभी हिंदुओं में एकता आएगी और विधर्मियो से सनातन धर्म की सुरक्षा संभव है |
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【क्या गीता वर्ण संकरता का विरोधी है】


🌸अर्जुन कहते है :
 
◙ अधर्माभिभवात्, कृष्ण, प्रदुष्यन्ति, कुलस्त्रिायः,
स्त्रीषु, दुष्टासु, वाष्र्णेय, जायते, वर्णसंकरः।।
संकरः, नरकाय, एव, कुलघ्नानाम्, कुलस्य, च,
पतन्ति, पितरः, हि, एषाम्, लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।।

(गीता -1:41 ,42)

अर्थात - हे कृष्ण! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रिायाँ अत्यन्त दूषित हो जाती हैं और हे वाष्र्णेंय! स्त्रियों के दूषित चरित्र वाली हो जाने पर वर्णशंकर संतान उत्पन्न होती है, वर्णसंकर कुलघातियों को और कुलको नरक में ले जाने के लिये ही होता है। गुप्त शारीरिक विलास जो नर-मादा के बीज और रज रूप जल की क्रिया से इनके वंश भी अधोगति को प्राप्त होते हैं।

=>स्वामी चिन्मयानदं जी भगवद गीता के टीका में पहले अध्याय  में अर्जुन के वर्ण संकर  विषय पर बोले वचन  पर टिप्पणी लिखते है की -

" जिस प्रकार कोई कथावाचक हर बार पुरानी कथा सुनाते हुए कुछ नई बातें उसमें जोड़ता जाता है इसी प्रकार अर्जुन की सर्जक बुद्धि अपनी गलत धारणा को पुष्ट करने के लिए नएनए तर्क निकाल रही है। वह जैसे ही एक तर्क समाप्त करता है वैसे ही उसको एक और नया तर्क सूझता है जिसकी आड़ में वह अपनी दुर्बलता को छिपाना चाहता है। अब उसका तर्क यह है कि युद्ध में अनेक परिवारों के नष्ट हो जाने पर सब प्रकार की सामाजिक एवं धार्मिक परम्परायें समाप्त हो जायेंगी और शीघ्र ही सब ओर अधर्म फैल जायेगा।"

🌸गीता  के प्रथम अध्याय में जो अर्जुन ने जो दुःख और निराशा में बोला था  उसका जवाब देता हुवे कृष्ण ने दूसरे अध्याय में कहा है कि -

◙ क्लैब्यं माँ स्म गमः पर्थ नैत्वत त्वय्युपपद्यते
क्षुद्रं हृदय-दौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप”
 (गीता -2:3)
“हे पार्थ, इस अपौरुष को मान लेना आपको शोभा नही देता है हे परंतप ! ह्रदय के इस प्रकार के तुच्छ दोष का त्याग करें और इससे ऊपर निकलें.”

सिर्फ इसी श्लोक को कृष्ण का जवाब माना जा सकता है ।अतः जब अर्जुन को सारे सवालों के जवाब मिल जाते है तो वो बोलता है -
◙अर्जुन उवाच
नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।
स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव।। 
(गीता -18:73)
अर्थात - अर्जुन बोले -- हे अच्युत ! आपकी कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया है और ज्ञान प्राप्त हो गयी है। मैं सन्देह रहित होकर स्थित हूँ। अब मैं आपकी आज्ञा का पालन करूँगा।

 श्री कृष्ण ने गीता में ये भी कहा है कि उन्होंने चार वर्ण इंसान के कर्म के हिसाब से बनाए हैं और न की उसके जन्म के हिसाब से...

वर्णों के लिए गीता का श्लोक..

◙ चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।। 

(गीता -4:13)
अर्थात -  (चातुर्वण्र्यम्) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्णों का समूह गुण और कर्मों के विभाग पूर्वक मेरे द्वारा रचा गया है। इस प्रकार उस कर्म का कर्ता भी मुझ काल को ही जान तथा वह अविनाशी परमेश्वर अकर्ता है।

“अतः , भगवद्गीता में भगवान् कृष्ण ने साफ़ तौर पर अंतर्जातीय विवाह का समर्थन किया है.”

जाति भेदभाव इंसानों द्वारा प्रथा में लायी गई है और जो लोग इसका अनुकरण करते है , उन्हें भगवान् द्वारा गीता में “कायर” करार दिया गया है. अतः, अगर आप हिन्दू है और आप यह सोचते है की अंतर्जातीय विवाह का समर्थन नहीं कर के अपने धर्म और वंश परम्परा में पद्दोन्नति कर रहे है , तो आप गलत है !

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