वर्तमान समय में हिंदी में लिंग शब्द का अर्थ पुरुष जनेन्द्रिय होता है परन्तु संस्कृत में लिंग का अर्थ पुरुष जनेन्द्रिय नहीं होता । समय के साथ भाषा परिवर्तन के कारण कई शब्दो के अर्थ बदल गए है वही हाल लिंग शब्द के साथ भी है जिसका हिंदी और संस्कृत दोनों भाषाओं में अलग अलग अर्थ है -
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【लिंग (Symbol) का अर्थ क्या है ? 】
वैदिक काल में लिंग शब्द का अर्थ प्रतीक होता था।
🌸व्याकरण अनुसार भी यही भावार्थ है-
1-पुलिंग :-पुरुष का प्रतीक
2-स्त्रीलिंग :-स्त्री का प्रतीक
3-नपुंसकलिंग :-नपुंसक का प्रतीक
🌸वैशेषिक सूत्र कणाद मुनि द्वारा रचित वैशेषिक दर्शन का मुख्य ग्रन्थ है।इनका जन्म इतिहासकारों के अनुसार 2600 ईसापूर्व में हुवा था। इनके रचित ग्रन्थ में भी लिंग का अर्थ प्रतीक ही है जिससे साबित होता है इनके वक़्त तक लिंग शब्द का अर्थ बदला नहीं था-
अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि ।
-( वैशेषिक सूत्र -2:2:6)
अर्थात- जिसमे अपर, पर, (युगपत) एक वर, (चिरम) विलम्ब, क्षिप्रम शीघ्र इत्यादि प्रयोग होते है, इसे काल कहते है, और ये काल के लिंग (प्रतीक) है।
इत इदमिति यतस्यद्दिश्यं लिंगम ।
-( वैशेषिक सूत्र - 2:2:10)
अर्थात - जिसमे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर व् नीचे का व्यवहार होता है उसी को दिशा कहते है और ये सभी दिशा के लिंग (प्रतीक) है।
🌸प्राचीन दर्शन ग्रन्थ न्याय दर्शन में भी लिंग शब्द आया है उसमे भी लिंग का अर्थ प्रतीक ही है -
इच्छाद्वेषप्रयत्न-सुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिङ्गम्
-(न्याय दर्शन - 1:1:10)
अर्थात - आत्मा के यह लिंग (प्रतीक) हैं, इच्छा, द्वेष, सुख-दुःख प्रयत्न और ज्ञान यह छः(आत्मा) के लिंग अर्थात् प्रत्यापक हैं।
🌸श्रीमद भागवतम में भी जहाँ लिंग शब्द आया है वह यही अनुवाद किया गया हैै -
नमामि त्वानन्तशक्तिं परेशं
सर्वात्मानं केवलं ज्ञप्तिमात्रम् ।
विश्वोत्पत्तिस्थानसंरोधहेतुं
यत्तद् ब्रह्म ब्रह्मलिङ्गं प्रशान्तम् ॥ २५ ॥
(श्रीमद भागवतम 10:63:25)
अर्थात - मैं आपको असीमित शक्तियों, सर्वोच्च भगवान, सभी प्राणियों की परमात्मा को नमन करता हूं। आपके पास शुद्ध और पूर्ण चेतना है और आप ब्रह्मांडीय निर्माण, रखरखाव और प्रलय के कारण हैं। पूरी तरह से शांतिपूर्ण, आप परम सत्य हैं, जिसका वेद अप्रत्यक्ष रूप से उल्लेख करते हैं।आप समस्त विकारों से रहित निराकार ब्रह्म लिंग (प्रतीक) है
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【शिश्न (penis) का अर्थ क्या है ? 】
वैदिक काल में शिश्न शब्द का उपयोग पुरुष के जनेन्द्रिय अंग के लिए होता था।
🌸ऋग्वेद में शिश्न शब्द कामवासना से सम्बंधित ही है-
न या॒तव॑ इन्द्र जूजुवुर्नो॒ न वन्द॑ना शविष्ठ वे॒द्याभिः॑।
स श॑र्धद॒र्यो विषु॑णस्य ज॒न्तोर्मा शि॒श्नदे॑वा॒ अपि॑ गुर्ऋ॒तं नः॑ ॥५॥
-(ऋग्वेद :7:21:5)
पदार्थान्वयभाषाः -हे (शविष्ठ) अत्यन्त बलयुक्त (इन्द्र) दुष्ट शत्रुजनों के विदीर्ण करनेवाले जन ! जैसे (यातवः) संग्राम को जानेवाले (नः) हम लोगों को (न) न (जूजुवुः) प्राप्त होते हैं और जो (शिश्नदेवाः) शिश्न अर्थात् उपस्थ इन्द्रिय से विहार करनेवाले ब्रह्मचर्य्यरहित कामी जन हैं वे (ऋतम्) सत्यधर्म को (मा, गुः) मत पहुँचें (अपि) और (नः) हम लोगों को (न) न प्राप्त हों वे ही (विषुणस्य) शरीर में व्याप्त (जन्तोः) जीव को (वेद्याभिः) जानने योग्य नीतियों से (वन्दना) स्तुति करने योग्य कर्मों को न पहुँचे और (यः) जो (अर्यः) स्वामी जन शरीर में व्याप्त जीव को (शर्धत्) उत्साहित करे (सः) वह हम को प्राप्त हो ॥५॥
भावार्थभाषाः-हे मनुष्यो ! जो कामी लंपट जन हों, वे तुम लोगों को कदापि वन्दना करने योग्य नहीं, वे हम लोगों को कभी न प्राप्त हों, इसको तुम लोग जानो और जो धर्मात्मा जन हैं, वे वन्दना करने तथा सेवा करने योग्य हैं, कामातुरों को धर्मज्ञान और सत्यविद्या कभी नहीं होती है ॥५॥
🌸याज्ञवल्क्य स्मृति में भी यही अर्थ लिखा हुवा है-
शिश्न श्चोत्थाय मृद्भिरभ्युद्धृतैर्जलैः
-(याज्ञवल्क्य स्मृति 1:17)
अर्थात -अपनी जनेन्द्रियों को जल से साफ़ करे।
🌸श्रीमद भागवतम में भी जहाँ शिश्न शब्द आया है वह यही अनुवाद किया गया हैै -
अक्षिणी नासिके आस्यमिति पञ्चपुर: कृता: ।
दक्षिणा दक्षिण: कर्ण उत्तरा चोत्तर: स्मृत: ।
पश्चिमे इत्यधोद्वारौ गुदं शिश्नमिहोच्यते ॥ ९ ॥
(श्रीमद भागवतम 4:29:9)
अर्थात -दो आंखें, दो नथुने और एक मुंह - सभी एक साथ पांच - सामने स्थित हैं। दाहिने कान को दक्षिणी द्वार और बायां कान उत्तरी द्वार के रूप में स्वीकार किया जाता है। नीचे पश्चिम में स्थित दो छेद मलाशय और शिश्न ( जननांग ) अंग के रूप में जाने जाते हैं।
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【शिवलिंग का अर्थ क्या है ? 】
जो शिव का प्रतीक है उसे ही शिवलिंग कहा जाता है।
🌸जिनको कुछ सन्देह रह गया हो वो इससे समझ सकते है -
=>लिंग - Symbol
=>शिश्न - Penis - इसे उच्चारण में शिशिन बोलते है
=>शिवलिंग - Symbol of Shiva
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