घरवापसी शास्त्र सम्मत है या नहीं ?




 【घरवापसी के शास्त्र प्रमाण 】


🍁श्रुति प्रमाण -


इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वार्यम |

अपघ्रन्तो अराव्णः ॥ 

(ऋग्वेद 9:63:5 )

अर्थात - हे परम ऐश्वर्ययुक्त आत्मज्ञानी ! तुम आत्म शक्ति का विकास करते हुए गतिशील, प्रमादरहित होकर कृपणता, अदानशीलता, ईर्ष्या, आदि का विनाश करते हुए आर्य बनो और सारे संसार को आर्य बनाओ।


श्रुति ही घरवापसी की आज्ञा देती है इसलिए किसी अन्य प्रमाण की आवश्यकता नहीं रह जाती अगर कोई स्मृति प्रमाण की बात करता है तो इसके स्मृति प्रमाण भी है -


🍁स्मृति प्रमाण-


तस्य शुद्धिं प्रवक्ष्यामि यावदेकं तु वत्सरम् । 

चान्द्रायणं तु विप्रस्य सपराकं प्रकीर्तितम् ||८ 

पराकमेकं क्षत्त्रस्य पादकृच्छ्रण संयुतम् । 

पराकाधं तु वैश्यस्य शूद्रस्य दिनपञ्चकम् ॥६ 

नखलोमविहीनानां प्रायश्चित्तं प्रदापयेत् । 

चतुर्णामपि वर्णानामन्यथाऽशुद्धिरस्ति हि ||१०

(देवलस्मृति 7-10)

अर्थात -शुद्धि का वार्षिक उपाय – एक वर्ष तक चांद्रायण कर पराक व्रत करने वाला ब्राह्मण पुनःहिन्दू विप्र हो जाएगा। अन्य जाति का व्यक्ति इससे कम प्रायश्चित करेगा। यदि क्षत्रिय है तो वह एक पराक और एक कृच्छ्र व्रत करके ही शुद्ध हो जाएगा। वैश्य व्यक्ति आधा पराक व्रत से पुनः हिन्दू हो जाएगा। शूद्र व्यक्ति पांच दिन के उपवास से शुद्ध हो जाएगा। शुद्धि के अंतिम दिन बाल और नाखून अवश्य कटवाना चाहिए।


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【घरवापसी के उदाहरण】


अब देखते है सनातन धर्म के 7 प्रमुख स्थलों में लोगो ने जब इस्लाम अपनाया तो वहां घरवापसी किसने की -


यंत्राणि कारयामासुः सप्तस्वेव पुरीषु च । 

तदघो ये गता लोकास्सर्वेते म्लेच्छतां गताः। ५०

महत्कोलाहलं जातमायणां शोककारिणाम् | 

(भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व -4 अध्याय 21:50)

अर्थात -म्लेच्छों ने सात पवित्र पुरीयो में अपनी मस्जिदें बना ली जो उनके वश में आये म्लेच्छ बन गये तब तमाम आर्यों में एक कोलाहल मच गया।


🍁गौड़ीय वैष्णवों द्वारा जगन्नाथ पूरी में घरवापसी-


श्रुत्वा ते वैष्णवाः सर्वे कृष्ण चैतन्य सेवकाः । 

दिव्यं मंत्रं गुरोश्चैव पठित्वा प्रययुः पुरीः | ५१

(भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व -4 अध्याय 21:51)

अर्थात -तब वैष्णव धर्म्मानुयायी कृष्ण चैतन्य के सेवक अपने गुरु से योग्य शिक्षा लेकर पुरी में फैल गये (और म्लेच्छों की शुद्धि की।)


रामानंदी वैष्णवों  द्वारा अयोध्या में घरवापसी-

रामानन्दस्य शिष्योवै चायोध्यायामुपागतः । 

कृत्वा विलोमं तं मंत्रं वैष्णवाँस्तानकारयत् ॥५२

भाले त्रिशूल चिन्हं च श्वेत रक्तं तदाभत्व । 

कण्ठे च तुलसीमाला जिह्वा राममयी कृता ॥५३

म्लेच्छास्ते वैष्णवाश्चासन् रामानन्द प्रभावतः । 

संयोगिनश्च ते ज्ञेया रामानन्दमते स्थिताः ॥५४

आर्य्याश्च वैष्णवा मुख्या अयोध्यायां बभूविरे ॥

(भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व -4 अध्याय 21:52-54)

अर्थात -रामानन्द का शिष्य अयोध्या में गये और वहां म्लेच्छों के उपदेशों को खण्डन कर उनको वैष्णव धर्मी बनाया माथे में त्रिशूलाकार वैष्णव तिलक दिया । गले में तुलसी की माला पहरा राम नाम का उपदेश दिया वह सम्पूर्ण म्लेच्छ रामानन्द के प्रभाव से वह  संयोगि वैष्णव बने और वह मुख्य आर्य अयोध्या में रहने लगे।


🍁निम्बार्क  वैष्णव निम्बार्काचार्य द्वारा काँची में घरवापसी-


निम्बादित्योगतो धीमान् सशिष्यः कांचिकांपुरीम् 

म्लेच्छ यंत्रं राजमार्गे स्थितं तत्र ददर्श है।५५ | 

विलोमं स्वगुरोमंत्रं कृत्वा तत्र स चावसत् । 

वंशपत्र समारेखा ललाटे कण्ठमालिका | ५६॥ 

गोपी बल्लभ मंत्रोहि मुखे तेषां रराजसः । 

तदधो ये गता लोका वैष्णवाश्च बभूविरे | ५७

म्लेच्छाः संयोगिनो ज्ञेया आर्यास्तन्मार्ग वैष्णवाः

(भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व -4 अध्याय 21:55-57)

अर्थात -बुद्धिमान् निम्बादित्य (निम्बार्काचार्य) कांची में गया और वहां पर म्लेच्छों के विरुद्ध उपदेश कर सब को अपने वश में करके वैष्णव बना आया। उनके मस्तक में वंश पत्र के तुल्य तिलक कण्ठ में माला तथा गोपी बल्लभ का मन्त्र सिखाता हुआ और वह सब वैष्णव बने।


🍁रूद्र वैष्णव विष्णु स्वामी द्वारा हरिद्वार में घरवापसी -


विष्णु स्वामी हरिद्वारे जगाम स्वगणैर्वृतः । 

“तत्रस्थितं महामंत्रं विलोमं तच्चकार ह ॥ 

तदघो ये गता लोका आसन् सर्वे च वैष्णवाः ।५९

(भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व -4 अध्याय 21:59)

अर्थात -विष्णु स्वामी हरिद्वार में गया और वहां म्लेच्छों के विरुद्ध प्रचार कर सब को वैष्णव बनाया एवं बाणी भूषण आदि विद्वानों ने काशी आदि स्थानों में जाकर सहस्रों म्लेच्छों को शुद्ध किया।


🍁ब्रह्म वैष्णव मध्वाचार्य द्वारा मथुरा में घरवापसी-


मथुरायं रामायतो मध्वाचार्यो हरिप्रियः ॥ ६१ 

राजमार्गे स्थितं यन्त्रं विलोम म चकार ह । 

तदधो ये गता लोकां वैष्णवास्तस्य पक्षगाः ||६२ 

करवीरपत्रसदृशं ललाटे तिलकं शुभम् । 

स्थितम् नासार्द्धभागान्ते कण्ठे तुलसि मालिका॥६३ 

राधाकृष्णशुभं नाम मुखे तेषां बभूव ह । 

(भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व -4 अध्याय 21:61-63)

अर्थात -मथुरा में हरिप्रिय मध्वाचार्य की यात्रा हुई । उन्होंने राजमार्ग में मस्जिद को देखकर उसे विलोम (मंदिर मे परिवर्तित) किया जिससे उसके नीचे पहुँचने वाले सभी वैष्णव हो जाते थे। वहाँ के वैष्णव वेश में भाल में करवीर पत्र के समान शुभ तिलक भी, जो नासिका के आधे भाग तक स्थित रहती है, कंठ में तुलसी की माला और मुख से सदैव राधाकृष्ण का परमोत्तम नामोच्चारण होता था।


 🍁कण्व ऋषि द्वारा मिश्र देश में घरवापसी -


सरस्वत्याज्ञया कण्वो निश्रदेशमुपाययौ । 

म्लेच्छान्संस्कृतमभाष्य तदा दशसहस्रकान् ॥

वशीकृत्य स्वयम्प्राप्तो ब्रह्मावर्ते महोत्तमे ॥१५

 (भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व -4 अध्याय 21:15)

अर्थात - सरस्वती (विद्या) की प्रेरणा से कण्व ऋषि मिश्र देश में गया और वहां दश हजार म्लेच्छों को शुद्ध कर और पढ़ा कर और अपने वशीभूत करके पचित्र ब्रह्मावर्त्त में लाया।


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【शिलालेखीय प्रमाण】


🍁नाशिक जिले में मिले शिलालेख में लिखा है-


'सिधं ओतराहम दत्ता मिति यकस योणकस धंम देव पुतस इन्द्राग्नि दतस धर्मात्मना "

 इस से प्रतीत होता है कि उत्तर ( सरहद ) से आए हुए यवन के पिता पुत्र को संस्कार कर घम्भदेव और पुत्र को इन्द्राग्निदत्त बना कर आर्य बनाया।


🍁हिन्दुस्तान की उत्तर और तुर्क लोगों का राज्य था जिसको राजतरंगिणी नामक पुस्तक में "तुरुक" नाम से लिखा है इसी वंश का हिमकाढफिस-नाम का एक राजा हिन्दू होकर शैव बन गया था यह मसीह की दूसरी वा तीसरी सदी में राज्य करता था इनके विशेषणों में लिखा है -

" राजाधिराजस्य सर्व लोकेश्वरस्य माहेश्वरस्य” 

इसका  नाम हिन्दुओं का सा नहीं है परन्तु यह शैव हिन्दु था इसके सिक्कों पर एक तरफ तुर्की टोपी और दूसरी तरफ नन्दी बैल तथा त्रिशूल हस्त एक पुरुष (शिव) की तस्वीर है जिस से सिद्ध है कि यह राजा तुकों के वंश में पैदा होकर भी हिन्दु हो गया ।


🍁दूसरे देशों के आये हुए लोग ब्राह्मण भी बन जाते थे , इस के बहुत से उदाहरणों में से एक " मग " जाति के लोगों का है, इन लोगों ने पहिले पहिल राजपूताना, मारवाड़, बङ्गाल तथा संयुक्त प्रान्त में बसते है, शालिवाहन के २०२८ शके के एक शिलालेख से-


देवोजीया त्रिलोकी मणिरयमरूणो यनिवा सेन पुण्यः, शाकद्वीपस्सदुग्धाम्बुनिधि वलयितो यत्र विप्रा मगाख्याः |वंशस्तद्विजानां भ्रमि लिखित तनोर्भा स्वतः स्वाङ्गामुक्तः, शाम्बोयानानिनाय स्वयं मिह महितास्ते जगत्यां जयन्ति ॥ 


शाकद्वीप में मग लोक रहते थे वहां से शाम्ब ( साम्ब ) उन्हें यहां लाया इस वंश में छः पुरुष प्रसिद्ध कवि थे,  शाम्ब ने चन्द्रभागा (चिनाव ) नदी के तट पर एक मन्दिर बनवाया उस समय ब्राह्मणलोक देवपूजन को निन्द नीय कर्म समझते थे इस लिये शाम्य को कोई पुजारी न मिला और उसने शाकद्वीप से आये हुए मग जाति के लोगों को पुजारी बना दिया।


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【अन्य ऐतिहासिक प्रमाण 】


🍁मराठों ने 17वीं सदी में शुद्धिकरण की व्यवस्था ही खड़ी की थी। दबाव के कारण बने मुसलमान को शुद्ध कर स्वयं छत्रपति शिवाजी ने पुनः हिन्दू बनाने का कार्य किया था। हिन्दवी स्वराज्य में भ्रष्ट किए व्यक्तियों को शुद्ध करने की चार व्यवस्थाएं दी गई हैं। यह कार्य करवाने के लिए ‘पंडितराव’ उपाधि धारक अधिकारी भी नियुक्त किया गया था। शुद्ध हुए व्यक्ति को शुद्धिकरण का आधिकारिक प्रमाण-पत्र दिया जाता था और उस का पंजीकरण भी स्थानीय कोतवाली में होता था। 1665-70 ई. में पुर्तगाल-शासित प्रदेशों को जीतने के बाद शिवाजी ने पुर्तगाली शासन को बलपूर्वक ईसाइयत में धर्मांतरित हिन्दुओं की शुद्धि के भी आदेश दिए थे।


🍁हरिहर और बुक्का राय ने इस्लाम अपना लिया था लेकिन एक संत ने इनकी घरवापसी (शुद्धि) करवाई और इन्होने विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी।

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