साईं बाबा (चाँद मियां) की सच्चाई


 



आप साईं बाबा (चाँद मियां) की सच्चाई जानने से पहले ये जान ले की साईं सत्चरित्र क्या है-

" साईं सत्चरित्र " गोविन्द राव डाभोलकर द्वारा लिखा गया साईं बाबा की जीवनी है । जब 1910 में गोविन्द राव डाभोलकर साईं बाबा (चाँद मियां) से मिले तब साई ने इन्हें अपने जीवन पर एक किताब लिखने को कहा था तब इन्होने ये किताब लिखी जो हर साई भक्त के लिए बहुत पवित्र किताब है ।
------------------------------------------

==साई मुस्लिम था ==


(1)शिरडी पहुँचने पर जब वह मस्जिद मेँ घुसा तो बाबा अत्यन्त क्रोधित हो गये और उसे उन्होने मस्जिद मेँ आने की मनाही कर दी। वे गर्जन कर कहने लगे कि इसे बाहर निकाल दो। फिर मेधा की ओर देखकर कहने लगे कि तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैँ निम्न जाति का यवन (मुसलमान)। तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जायेगी।
(साईं सत्चरित्र -:अध्याय 28. पृष्ठ 197.)

(2)मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैँ तो एक फकीर(मुस्लिम, हिन्दू साधू कहे जाते हैँ फकीर नहीँ) हूँ।मुझे गंगाजल से क्या प्रायोजन?
(साईं सत्चरित्र -:अध्याय 32. पृष्ठ 228.)

(3)महाराष्ट्र मेँ शिरडी साँई मन्दिर मेँ गायी जाने वाली आरती का अंश-
“गोपीचंदा मंदा त्वांची उदरिले!
मोमीन वंशी जन्मुनी लोँका तारिले!”
उपरोक्त आरती मेँ “मोमीन” अर्थात् मुसलमान शब्द स्पष्ट आया है।
------------------------------------------
==साई मांशाहारी और हिंदु विरोधी था==

(1)मस्जिद मेँ एक बकरा बलि देने के लिए लाया गया। वह अत्यन्त दुर्बल और मरने वाला था। बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा।
(साईं सत्चरित्र -:अध्याय 23. पृष्ठ 161.)

(2)तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैँ स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा।
(साईं सत्चरित्र -:अध्याय 23. पृष्ठ 162.)

(3)फकीरोँ के साथ वो आमिष(मांस) और मछली का सेवन करते थे।
(साईं सत्चरित्र -:अध्याय 5. पृष्ठ 7.)

(4)कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल अर्थात् नमकीन पुलाव।
(साईं सत्चरित्र -:अध्याय 38. पृष्ठ 269.)

(5)एक एकादशी के दिन उन्होँने दादा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीद लाने को दिये। दादा पूरे कर्मकाण्डी थे और प्रायः सभी नियमोँ का जीवन मेँ पालन किया करते थे।
(साईं सत्चरित्र -:अध्याय 32. पृष्ठः 270.)

(6)ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है? दादा ने योँ ही मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा है। तब बाबा कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखोँ से ही देखा है और न ही जिह्वा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है? थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो। बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मेँ डालकर बोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर देखो”।
(साईं सत्चरित्र-:अध्याय 38. पृष्ठ 270.)
-----------------------------------

अब मेरा एक प्रश्न साईं भक्तो से-

भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मूर्दा (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र अथवा समाधि) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत-प्रेत ही बनते हैं.( यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपिमाम् ). मरे हुये साई बाबा और उनके कब्र की पूजा क्यों की जाती है? मतलब भागवत गीता के कथन असत्य हैं इसीलिये उसके कथन को नकारा जाता है????

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ