वैदिक ग्रन्थ शुद्रो को यज्ञ , पूजा- पाठ एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठान करने का पूरा अधिकार देते है आज जो भी जातिवाद है ये मुग़ल काल की देन है जब हिन्दू ग्रंथो में मिलावट हुई जातिवाद बढ़ाया गया इसलिए हमें वैदिक ग्रंथों को पढ़ने की ज़रूरत है जो महर्षि मनु की व्यवस्था के अनुसार सबको पूर्ण अधिकार देते है -
1-महाभारत कहता है कि निम्न वर्ण को ग्रहण करने वालों के लिए यज्ञ, धर्मपालन, वेदाध्ययन का निषेध नहीं है और वेद पढ़ने का अधिकार चारो वर्ण का है –
धर्मो यज्ञक्रिया तेषां नित्यं न प्रतिषिध्यते।
इत्येते चतुरो वर्णांः येषां ब्राह्मी सरस्वती॥
(महाभारत- शान्तिपर्व 188 : 15)
अर्थ-वर्णान्तर प्राप्त जनों के लिए यज्ञक्रिया और धर्मानुष्ठान का निषेध कदापि नहीं है। वेदवाणी चारों वर्ण वालों के लिए है।
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2- महाभारत में तो इससे भी आगे बढ़कर दस्युओं के लिए भी इन कर्मों का विधान किया है-
भूमिपानां च शुश्रूषा कर्त्तव्या सर्वदस्युभिः।
वेदधर्मक्रियाश्चैव तेषां धर्मो विधीयते।।
(महाभारत- शान्तिपर्व 65 :18)
अर्थ-दस्युओं को राजाओं की सेवा पक्ष में युद्ध करके करनी चाहिए। वेदाध्ययन, यज्ञ आदि धर्मानुष्ठानों का पालन करना उनका भी विहित धर्म है।
नोट - दस्यु वो होता है जो वेदों का नहीं मानता था.
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3- महाभारत में ही एक अन्य स्थान पर यज्ञ में चारों वर्णों की भागीदारी को स्वीकार किया गया है-
‘‘चत्वारो वर्णाः यज्ञमिमं वहन्ति’’
(महाभारत-वनपर्व 134:11)
अर्थात - इस यज्ञ का सपादन चारों वर्ण कर रहे हैं।
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4- भविष्यपुराण शूद्रों को मन्त्र-अध्यापन का आदेश देता है-
‘‘ब्राह्मणाः क्षत्रियाः वैश्याः शूद्राः, तेषां मन्त्राः प्रदेयाः।’’
(भविष्यपुराण -उ0 पर्व 13 : 62)
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5 - शतपथ ब्राह्मण में यज्ञ में सोमपान के प्रसंग में शूद्र के लिए भी विधान है-
‘‘चत्वारो वै वर्णाः ब्राह्मणो राजन्यो वैश्यः शूद्रः,
न ह एतेषां एकश्चन भवति यः सोमं वमति।
स यद् ह एतेषां एकश्चित् स्यात् ह एव प्रायश्चित्तिः।’’
(शतपथ ब्राह्मण-5.5.4.9)
अर्थ-वर्ण चार हैं-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इनमें कोई भी यज्ञ में सोम का त्याग नहीं करेगा। यदि एक भी कोई करेगा तो उसको प्रायश्चित्त करना पड़ेगा।
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6- विष्णु पुराण के अनुसार वैदिक काल में भारत के चारो वर्ण के लोग मिलकर यज्ञ करते थे
ब्राह्मणाः क्षत्रियाः वैश्याः मध्ये शूद्राश्च भागशः॥ 9॥
पुरुषैर्यज्ञपुरुषो जबू द्वीपे सदेज्यते॥ 21॥
(विष्णुपुराण-2.3.9, 21)
अर्थ-जबू द्वीप (भारतवर्ष ) में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र साथ-साथ निवास करते हैं। उन चारों वर्णों के पुरुषों द्वारा परमात्मा का सदा यज्ञ के द्वारा यजन किया जाता है।
7- शूद्र द्वारा यज्ञ का करना
शूद्रः पैजवनो नाम सहस्राणां शतं ददौ ।
ऐन्द्राग्नेन विधानेन दक्षिणामिति नः श्रुतम् ॥ ३८ ॥
(महाभारत-शान्तिपर्व 60:38)
पैजवन नामक शूद्र ने ऐन्द्राग्नेय विधान से यज्ञ करके एक लाख दक्षिणा दी थी, ऐसा हमने सुना है।
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