मनुकालीन उन सात द्वीपों अर्थात् देशों में चारों वर्णों का यज्ञानुष्ठान का अधिकार




शास्त्रों के अनुसार महर्षि मनु ने अपना राज्य अपने बड़े पुत्र प्रियव्रत को सौंपा था। और प्रियव्रत ने उसको अपने सात पुत्रों में सात विभाग करके बांट दिया। मनुकालीन उन सात द्वीपों अर्थात् देशों में मनु द्वारा निर्धारित समाज-व्यवस्था व्यवहार में थी। प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में जो मनुकालीन इतिहास दिया है उसके अनुसार सभी छह देशों में चारों वर्णों को यज्ञानुष्ठान और धर्मपालन का अधिकार था तथा चारों वर्ण यज्ञ करते थे।

प्रमाण सहित उसका वर्णन प्रस्तुत है-

(1) कुशद्वीप में शूद्रों द्वारा यज्ञानुष्ठान-


ब्राह्मणाः क्षत्रियाः वैश्याः शूद्राश्चानुक्रमोदिताः॥
तत्र ते तु कुशद्वीपे……..यजन्तः क्षपयन्ति॥
(विष्णु पुराण 2.4.36, 39)
अर्थ-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कुशद्वीप में रहते हुए यजन करते हैं और इस प्रकार अपनी दुर्भावनाओं को नष्ट करते हैं।
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(2)-शाकद्वीप में शूद्रों द्वारा यज्ञानुष्ठान-

शाकद्वीपे तु तैर्विष्णुः यथोक्तैरिज्यते सयक्॥ 64, 70॥
(विष्णुपुराण 2.4.64,70)
अर्थ-शाकद्वीप में चारों वर्णों के लोग सर्वव्यापक ईश्वर का यज्ञ के द्वाराालीभांति पूजन करते हैं।

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(3)-प्लक्षद्वीप में शूद्रों द्वारा यज्ञानुष्ठान-

धर्माः पञ्चस्वथैतेषु वर्णाश्रमविभागजाः॥ 15॥
इज्यते तत्र भगवान् तैर्वणैरार्यकादिभिः॥ 19॥
(विष्णुपुराण 2.4.7, 15, 19)
अर्थ-प्लक्ष द्वीप में वर्ण और आश्रमों के लिए विहित धर्मों का पालन किया जाता है। ब्राह्मण आदि चारों वर्णों द्वारा यज्ञ करके भगवान् की उपासना की जाती है।
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(4)-क्रौञ्च द्वीप में शूद्रों द्वारा यज्ञानुष्ठान-
ब्राह्मणाः क्षत्रियाः वैश्याः शूद्राश्चानुक्रमोदिताः॥ 53॥
यागैः रुद्रस्वरूपश्च इज्यते यज्ञसन्निधौ॥ 56॥
(विष्णुपुराण 2.4.53, 56)
अर्थ-क्रौञ्च द्वीप में चार वर्ण हैं। वे रुद्रस्वरूप परमात्मा का अनेक यज्ञों के अनुष्ठानपूर्वक, यज्ञ के माध्यम से यजन करते हैं।
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(5)-जम्बूद्वीप में शूद्रों द्वारा यज्ञानुष्ठान-

ब्राह्मणाः क्षत्रियाः वैश्याः मध्ये शूद्राश्च भागशः॥ 9॥
पुरुषैर्यज्ञपुरुषो जबू द्वीपे सदेज्यते॥ 21॥
(विष्णुपुराण 2.3.9, 21)
अर्थ-जम्बूद्वीप में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र साथ-साथ निवास करते हैं। उन चारों वर्णों के पुरुषों द्वारा परमात्मा का सदा यज्ञ के द्वारा यजन किया जाता है।
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(6)-शाल्मलिद्वीप में शूद्रों द्वारा यज्ञानुष्ठान-
ब्राह्मणाः क्षत्रियाः वैश्याः शूद्राश्चैव यजन्ति ते॥ 30॥
वायुभूतं मखश्रेष्ठैः यज्विनो यज्ञसंस्थितम्॥ 31॥
(विष्णुपुराण 2.4.30, 31)
अर्थ-शाल्मलि द्वीप में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सभी यज्ञशील हैं। वे चारों वर्ण यज्ञ-रूप वायु संज्ञक परमेश्वर की बड़े-बड़े यज्ञों द्वारा उपासना करते हैं।

भागवतपुराण इससे आगे बढ़कर स्पष्ट कथन करता है कि ‘‘त्रय्या विद्यया भगवन्तं त्रयीमयं सूर्यमात्मानं यजन्ते’’ (5.20.4) = ‘प्लक्षद्वीप में चारों वर्ण उस सूर्य संज्ञक परमात्मा का जो स्वयं वेदरूप है, तीनों वेदों के मन्त्रों से उसका यजन करते हैं।’

इससे ये सिद्ध होता है कि वैदिक काल में शुद्र भी अन्य तीनो वर्ण के लोगो के साथ यज्ञ अनुष्ठान करते थे । शूद्रों को मंदिर में जाने और यज्ञ,अनुष्ठान ,पूजा - पाठ करने का पूरा अधिकार था। इसलिए आज जो भी जातिवाद है वो मुग़ल काल की देन है लेकिन अब वक़्त आ गया है की हम अपनी वैदिक परंपरा को फिर से अपनाये और भेदभाव ख़त्म करें


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