वेद और शूद्र

 


शूद्रों का वेद अध्ययन एवं उसके प्रचार का अधिकार -

यथे॒मां वाचं॑ कल्या॒णीमा॒वदा॑नि॒ जने॑भ्यः।ब्र॒ह्म॒रा॒ज॒न्या᳖भ्या शूद्राय॒ चार्या॑य च॒ स्वाय॒ चार॑णाय च।
प्रि॒यो दे॒वानां॒ दक्षि॑णायै दा॒तुरि॒ह भू॑यासम॒यं
मे॒ कामः॒ समृ॑ध्यता॒मुप॑ मा॒दो न॑मतु ॥२ ॥
( यजुर्वेद » अध्याय:26» मन्त्र:2 )
अर्थ - हे मनुष्यो ! मैं (ईश्वर ) सबका कल्याण करने वाली वेदरूप वाणी का सब जनों के लिए उपदेश कर रहा हूँ, जैसे मैं इस वाणी का ब्राह्मण , क्षत्रियों, शूद्रों , वैश्यों और अपने स्त्रियों के लिए जैसे मैं इसका उपदेश कर रहा हूँ और जिन्हें तुम अपना आत्मीय समझते हो , उन सबके लिए इसका उपदेश कर रहा हूँ और जिसे पराया समझते हो, उसके लिए भी मैं इसका उपदेश कर रहा हूँ, वैसे ही तुम भी आगे आगे सब लोगों के लिए इस वाणी के उपदेश का क्रम चलते रहो.
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शुद्रो से समानता का व्यव्हार -

रुचं॑ नो धेहि ब्राह्म॒णेषु॒ रुच॒ꣳ राज॑सु नस्कृधि।
रुचं॒ विश्ये॑षु शू॒द्रेषु॒ मयि॑ धेहि रु॒चा रुच॑म् ॥४८ ॥
(यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:48)
अर्थ - हे ईश्वर ! आप हमारी रुचि ब्राह्मणों के प्रति उत्पन्न कीजिए, क्षत्रियों के प्रति उत्पन्न कीजिए, वैश्यों के प्रति उत्पन्न कीजिए और शूद्रों के प्रति उत्पन्न कीजिए।
मंत्र का भाव यह है कि हे परमात्मन! आपकी कृपा से हमारा स्वभाव और मन ऐसा हो जाए कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी वर्णों के लोगों के प्रति हमारी रुचि हो। सभी वर्णों के लोग हमें अच्छे लगें। सभी वर्णों के लोगों के प्रति हमारा बर्ताव सदा प्रेम और प्रीति का रहे।
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शुद्रो व अन्य वर्णों के पापों के लिए छमा याचना -

यद् ग्रामे॒ यदर॑ण्ये॒ यत्स॒भायां॒ यदि॑न्द्रि॒ये। यच्छू॒द्रे यदर्ये॒
यदेन॑श्चकृ॒मा व॒यं यदेक॒स्याधि॒ धर्म॑णि॒ तस्या॑व॒यज॑नमसि ॥१७ ॥
(यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:17)
अर्थ - हे विद्वन् ! हम लोग जो गाँव में , जो जङ्गल में , जो सभा में ,जो मन में , जो शूद्र में , जो स्वामी वा वैश्य में ब्राह्मण या क्षत्रिय में , जो एक के ऊपर धर्म में तथा जो और अपराध करते हैं वा करनेवाले हैं उस सबका आप छुड़ाने के साधन हैं,
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शुद्रो से प्रेमवत व्यवहार -

प्रि॒यं मा॑ दर्भ कृणु ब्रह्मराज॒न्याभ्यां शू॒द्राय॒ चार्या॑य च।
यस्मै॑ च का॒मया॑महे॒ सर्व॑स्मै च वि॒पश्य॑ते ॥
(अथर्ववेद » काण्ड:19» सूक्त:32» मन्त्र:8)
अर्थ - हे शत्रु विदारक परमेश्वर मुझको ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शुद्र के लिए और जिसके लिए हम चाह सकते हैं प्रत्येक विविध प्रकार देखने वाले पुरुष के लिए प्रिय कर दे .
इस प्रकार वेद की शिक्षा में शूद्रों के प्रति भी सदा ही प्रेम-प्रीति का व्यवहार करने और उन्हें अपना ही अंग समझने की बात कही गयी हैं.
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शूद्र यज्ञ कर सकता है -

अ॒ग्नेस्त॒नूर॑सि वा॒चो वि॒सर्ज॑नं दे॒ववी॑तये त्वा गृह्णामि बृ॒हद् ग्रा॑वासि वानस्प॒त्यः सऽइ॒दं दे॒वेभ्यो॑ ह॒विः श॑मीष्व सु॒शमि॑ शमीष्व। हवि॑ष्कृ॒देहि॒ हवि॑ष्कृ॒देहि॑ ॥१५॥
(यजुर्वेद » अध्याय:1» मन्त्र:15)
अर्थ - मैं सब जनों के सहित और काष्ठ के मूसल आदि पदार्थ विद्वान् वा दिव्यगुणों के लिये उस यज्ञ को श्रेष्ठ विद्वान् वा विविध भोगों की प्राप्ति के लिये ग्रहण करता हूं। हे विद्वान् मनुष्य! तुम विद्वानों के सुख के लिये अच्छे प्रकार दुःख शान्त करने वाले यज्ञ करने योग्य पदार्थ को अत्यन्त शुद्ध करो। जो मनुष्य वेद आदि शास्त्रों को प्रीतिपूर्वक पढ़ते वा पढ़ाते हैं, उन्हीं को यह होम में चढ़ाने योग्य पदार्थों का विधान करने वाली जो कि यज्ञ को करने के लिये ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों की शुद्ध सुशिक्षित और प्रसिद्ध वाणी वेद के पढ़ने से है .
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शुद्रो को नमन एवं सत्कार करना -

नम॒स्तक्ष॑भ्यो रथका॒रेभ्य॑श्च वो॒ नमो॒ नमः॒ कुला॑लेभ्यः क॒र्मारेभ्यश्च वो॒ नमो॒ नमो॑ निषा॒देभ्यः॑ पु॒ञ्जिष्ठे॑भ्यश्च वो॒ नमो॒ नमः॑ श्व॒निभ्यो॑ मृग॒युभ्य॑श्च वो॒ नमः॑ ॥२७ ॥
(यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:27)
अर्थ - हे मनुष्यो ! जैसे राजा परिश्रम करने वालों को धन देके सत्कार करते है उसी तरह मट्टी के पात्र बनानेवालों को को नमन है अन्नादि पदार्थ और खड्ग, बन्दूक और तोप आदि शस्त्र बनानेवाले तुम लोगों का सत्कार व नमन करते हैं वन और पर्वतादि में रह कर अन्नादि देते , कुत्तों को शिक्षा करने ( कुत्तों को पालतू बनाना) तुम को अन्नादि देते और अपने आत्मा से वन के हरिण आदि पशुओं को चाहने वाले तुम लोगों का सत्कार करते हैं, वैसे तुम लोग भी करो .
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ईश्वर की नज़र में सभी एक सामान है कोई बड़ा छोटा नहीं -

अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभाय ।
-(ऋग्वेद 5/60/5)
अर्थ:-ईश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा।तुम सब भाई-भाई हो। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो।
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ईश्वर का आदेश मानिये और भेदभाव को त्याग दीजिए -

मनु॑र्भव (ऋग्वेद 10.53.6)
अर्थ:- ईश्वर कहता है, "मनुष्य बनों"

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