राम राज्य


 

महर्षि वाल्मीकि ने राम राज्य का वर्णन निम्नलिखित शब्दों में किया है

१. न पर्यदेवन् विधवा न च व्यालकृतं भयम्।
न व्याधिजं भयं चासीद् रामे राज्यं प्रशासति।।
२.निर्दुस्युरभवल्लोको नानार्थं कश्चिदस्पृशत्।
न च स्म वृद्धा बालानां प्रेतकार्याणि कुर्वते।।
३. सर्वं मुदितमेवासीत् सर्वो धर्मपरोsभवत्।
राममेवानुपश्यन्तो नाभ्यहिंसन् परस्परम्।।
४. नित्यमूला नित्यफलास्तरवस्तत्र पुष्पिताः।
कामवर्षी च पर्जन्यः सुखस्पर्शश्च मारुतः।।
५. ब्राह्मणाः क्षत्रीया वैश्याः शूद्रा लोभविवर्जिताः।
स्वकर्मसु प्रवर्तन्ते तुष्टाः स्वरैव कर्मभिः।।
-(वाल्मीकि रामायण : युद्धकाण्ड -१२८/९८,१००,१०३,१०४)
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महर्षि बाल्मीकि ने राम राज्य का वर्णन निम्नलिखित शब्दों में किया है:-
(१) श्रीराम के राज्य में स्त्रियां विधवा नहीं होती थी,सर्पों से किसी को भय नहीं था और रोगों का आक्रमण भी नहीं होता था।
(२) राम-राज्य में चोरों और डाकुओं का नाम तक न था।दूसरे के धन को लेने की तो बात ही क्या,कोई उसे छूता तक न था।राम राज्य में बूढ़े बालकों का मृतक-कर्म नहीं करते थे अर्थात् बाल-मृत्यु नहीं होती थी।
(३) रामराज्य में सब लोग वर्णानुसार अपने धर्मकृत्यों का अनुष्ठान करने के कारण प्रसन्न रहते थे।श्रीराम उदास होंगे,यह सोचकर कोई किसी का हृदय नहीं दुखाता था।
(४) राम-राज्य में वृक्ष सदा पुष्पों से लदे रहते थे,वे सदा फला करते थे।उनकी डालियां विस्तृत हुआ करती थी।यथासमय वृष्टि होती थी और सुखस्पृशी वायु चला करती थी।
(५) ब्राह्मण,क्षत्रीय,वैश्य और शूद्र कोई भी लोभी नहीं था।सब अपना-अपना कार्य करते हुए सन्तुष्ट रहते थे।राम-राज्य में सारी प्रजा धर्मरत और झूठ से दूर रहती थी।सब लोग शुभ लक्षणों से युक्त और धर्म परायण होते थे।

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