कृष्ण का चरित्र


【 योगेश्वर श्रीकृष्ण का महान व्यक्तित्व 】

(1) जुए के विरोधी :-

वे जुए के घोर विरोधी थे।जुए को एक बहुत ही बुरा व्यसन मानते थे।जब वे काम्यक वन में युधिष्ठिर से मिले तो उन्होनें युधिष्ठिर को कहा-

नेतत्‌ कूच्छुमनुप्राप्तो भवान स्याद्‌ वखुधाधिप ।
यदहं द्वारकायां स्यां राजन संनिहितः पुरा ॥
आगच्छेयमहं द्यूतमनाहूतोपि कौरवैः ।
वारयेयमहं द्यूतं दोषान् प्रदर्शयन् ।।
(महाभारत :-वनपर्व 13/1-2)
अर्थ:-भगवान श्रीकृष्ण बोले-हे राजन् ! यदि मैं पहले द्वारका में या उसके निकट होता तो आप इस भारी संकट में न पड़ते।मैं कौरवों के बिना बुलाये ही उस द्यूत-सभा में जाता और जुए के अनेक दोष दिखाकर उसे रोकने की पूरी चेष्टा करता।

एकाहाद्‌ द्वव्यनाशोत्र ध्रुवं व्यसनमेव च ।
अभुक्तनाशश्राथोनां वाक्पारुष्यं च केवलम्‌ ॥
(महाभारत :-वनपर्व 13/9)
अर्थ :-भगवान श्रीकृष्ण बोले-जुए से एक ही दिन में सारे धन का नाश हो जाता है। साथ ही जूआ खेलने से उसके प्रति आसक्ति होनी निश्चित है । समस्त पदार्थो का बिना भोगे ही नाश हो जाता है और बदलेमें केवल कठुवचन सुनने कों मिलते हैं |
____________________________
(2) मदिरा(शराब) के विरोधी :-
श्रीकृष्ण मदिरापान के घोर विरोधी थे।उन्होंने मदिरापान पर प्रतिबन्ध लगा दिया था और उसका सेवन करने वाले के लिए मृत्युदण्ड की व्यवस्था की थी।

यश्च नोविदितं कुर्यात्पेयं कश्चिन्नरः क्वचित् ।
जीवन् स कालमारोहेत् स्वयं कृत्वा सबान्धवः ।।
(महाभारत :-मौसलपर्व 1/ 30)
अर्थ:-यदि कोई मनुष्य हम लोगों से छिपकर कहीं भी मादक पेय तैयार करेगा तो वह अपराधी अपने बन्धु-बान्धवों सहित जीवित अवस्था में सूली पर चढ़ा दिया जाएगा।
____________________________

(3) ब्रह्मचर्य का पालन :-
महाभारत का युद्ध होने से पहले श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा था-
ब्रह्मचर्यं महद् घोरं तीर्त्त्वा द्वादशवार्षिकम् ।
हिमवत्पार्श्वमास्थाय यो मया तपसार्जितः ।।
समानव्रतचारिण्यां रुक्मिण्यां योsन्वजायत ।
सनत्कुमारस्तेजस्वी प्रद्युम्नो नाम में सुतः ।।
(महाभारत :-सौप्तिकपर्व 12/ 30-31)
अर्थ :- मैंने 12 वर्ष तक रुक्मिणी के साथ हिमालय में ठहरकर महान् घोर ब्रह्मचर्य का पालन करके सनत्कुमार के समान तेजस्वी प्रद्युम्न नाम के पुत्र को प्राप्त किया था।
विवाह के पश्चात् 12 वर्ष तक घोर ब्रह्मचर्य को धारण करना उनके संयम का महान् उदाहरण है। ऐसे संयमी और जितेन्द्रिय पुरुष को पुराणकारों ने कितना बीभत्स और घृणास्पद बना दिया है। रुक्मिणी से विवाह के पश्चात्‌ भगवान्‌ श्रीकृष्ण उन्हें लेकर हिमालय पर्वत पर अखण्ड ब्रह्मचारी रहकर बारह वर्ष योग साधना की थी, उसके बाद सम्पूर्ण जीवन में एकमात्र पुत्र प्रद्युम्न को उत्पन्न किया था।उन्होंने जीवन में कभी भी मिथ्या भाषण जैसा पाप भी नहीं किया। तब अन्य पापों की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती .
____________________________

(4) धर्मराज युथिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भीष्म पितामह द्वारा योगेश्वर भगवत्कृष्ण का चरित्र चित्रण-

वेदवेदांगविज्ञानं बलं चाभ्यधिकं तथा।
नृणां लोके हि कोऽन्योऽस्ति विशिष्टः केशवादृते ।
दानं दाक्ष्यं श्रुतं शीर्यं हवीः कीर्तिर्बुद्धिरुत्तमा ।
सन्नतिः श्रीधृतिस्तुष्टिः पुष्टिश्च नियताच्युते ।।
(महाभारत :- सभापर्व : 38 : 19-20 )
अर्थात्‌ - वेद, वेदांग के विज्ञान तथा सभी प्रकार के बल की दृष्टि से मनुष्य लोक में भगवत्‌ श्रीकृष्ण के समान दूसरा कोई भी नहीं है। दान, दक्षता, वेदज्ञता, शूरवीरता, लज्जा, कीर्त्ति, उत्तम बुद्धि, विनय , श्री, तुष्टि (सन्तोष) एवं पुष्टि - ये सभी सदगुण भगवान्‌ श्रीकृष्ण में नित्य विद्यमान हैं।
___________________________

【 अब प्रश्न पर आते हैं : - 】


प्रश्न -कृष्ण भगवान गोपियों के कपड़े चुराते थे तब वो नटखट, आज अगर कोई लड़का ऐसा करे तो मार खाए जेल जाए, क्यों ?
उत्तर - इस सोच का कारण है टीवी सीरियल जिनमें क्रष्ण भगवान की बाल लीलाओं को युवा द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। अब लोग इतना दिमाग लगाते नहीं कि वास्तव में किस उम्र की बातें हैं ये सब। सम्भव है कि आपको पता न हो पर 11 वर्ष की उम्र में भगवान कृष्ण ने स्वयं के मामाश्री कंस का वध कर दिया था। उस के बाद वो गोकुल नही गए तो ये सारी गाथाएँ कंस वध के पहले की ही है(जैसा सबको पता ही होगा)।
श्रीमदभागवद्भत के दशम स्कंध में वस्त्र हरण प्रकरण आता है। भगवान का हर कार्य दिव्य होता है। इसे समझने के लिए दृष्टि चाहिए। लीला के अर्थ का समझने की बुद्धि चाहिए। उस वक्त श्रीकृष्ण की उम्र छ: (6) वर्ष थी। सबसे बड़ी गोपी दस (10) वर्ष की थी।
क्या 6 वर्ष की उम्र में किसी बालक और बालिकाओं का साथ में नृत्य करना और नहाना किसी संदेह के घेरे में आता है?
कृष्ण रास को शारीरिक धरातल पर लाकर उसमें मौज-मस्ती या भोग-विलास जैसा कुछ ढूंढना इंसान की खुद की फितरत पर निर्भर करता है। आजकल स्वीमिंग पुल में कई बच्चे साथ-साथ स्नान करते हैं और इस दौरान मस्ती करते हैं तो उसे हम क्या मानें? यदि यह मान भी लिया जाए कि वस्त्र हरण की घटना सच्ची थी तो इसके पीछे एक संदेश था कि सार्वजनीक स्थानों पर निर्वस्त्र होकर नहाया नहीं जाए क्योंकि कंस के आततायी और राक्षस लोग चारों और घुमते रहते थे। ऐसे में मर्यादा का पालन रखना जरूरी है कभी भी किसी भी तरह की घटना घट सकती है।
____________________________

प्रश्न -कृष्ण ने 16000 औरतों से शादी क्यों की क्या ये गलत नहीं ?

उत्तर -महाभारत में कृष्ण के 16000 रानियो का कोई जिक्र नहीं है केवल पुराणों में है .पुराणों के अनुसार एक दानव भूमासुर ने अमर होने के लिए 16 हजार कन्याओं की बलि देने का निश्चय कर लिया था। श्री कृष्ण ने इन कन्याओं को कारावास से मुक्त कराया और उन्हें वापस घर भेज दिया जब ये कन्याएं घर पहुंचीं तो परिवारवालों ने चरित्र के नाम पर इन्हें अपनाने से इनकार कर दिया ।तब श्री कृष्ण ने 16 हजार रूपों में प्रकट होकर एक साथ उनसे विवाह रचाया था।
ध्यान दे -अलग अलग पुराणो में कृष्ण की पत्नियों की संख्या अलग अलग है किसी में 16000 किसी में 16108 और पुत्रो की संख्या भी अलग अलग है जिससे इस कहानी की सत्यता पर संदेह उठता है .
____________________________

प्रश्न -जरासंघ के मित्र कालयवन से लड़े बिना कृष्णा ने क्यू युद्ध भूमि को छोड़ दिया ?

उत्तर - भगवान् कृष्णा मुचुकुंद को मुक्ति देना चाहते थे इसलिए वो लीला करते हुवे युद्ध से भाग गए । कृष्ण एक गुफा में चले गए। जहां मुचुकुंद नामक राजा निद्रासन में था। मुचुकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था कि जो भी व्यक्ति राजा को नींद से जगाएगा और राजा की नजर पढ़ते ही वह भस्म हो जाएगा। कालयवन ने मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठा दिया और राजा की नजर पड़ते ही वहीं भस्म हो गया। इसप्रकार भगवान् ने अपने लीला से कालयवन का अंत किया और को मुचुकुंद को परमगति दे दिया.
__________________________

प्रश्न - राधा के विषय में क्या कहोगे ?

उत्तर - जहां तक सवाल राधा का है तो वह श्रीकृष्ण के वृंदावन से चले जाने के सालों बाद द्वारिका में मिली थी। बस वही उनकी अंतिम मुलाकात थी। योगेश्वर कृष्ण ने कभी राधा के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाए अगर पुराण में वो अश्लील बात लिखी है तो हम उसे प्रछिप्त (बाद में मिलाया गया) मानते है .


श्रीकृष्ण उस सत्य धर्म की रक्षा के लिए दूत बने, सारथी बने, सेवक बने, मित्र बने, सब कुछ बने, किन्तु लक्ष्य एक ही था- धर्म की रक्षा, इसलिए वे यथार्थ में पार्थ के सारथी नहीं, अपितु धर्म के सारथी बने।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ