राम ने शूद्र संम्भूक को क्यों मारा ?



【 सम्भुक हत्या का खंडन 】

सम्भुक का वर्णन वाल्मीकि रामायण के सातवें कांड में हुवा है लेकिन महर्षि वाल्मीकि ने रामायण लिखते वक़्त ही अपने दिव्यज्ञान से बता दिया था की इसमें कितने कांड सर्ग और श्लोक है ताकि भविष्य में कोई मिलावट न कर सके -

चतुर्विशत्सहस्त्राणि श्लोकानामुक्तवानृषिः |
तथा सर्गशतान्‌ पञ्च षट्‌ काण्डानि तथोत्तरम|
(वालमीकि रामायण 1- 4-2)

अर्थात्‌ - रामायण में 24,000 श्लोक 500 सर्ग और 6 काण्ड हैँ ।
लेकिन आज की रामायण में 25000 श्लोक 658 सर्ग और 7 काण्ड हैं इससे ये साबित होता है किस तरह से सातवा कांड रामायण में मिलाया गया और रामायण के कुछ अन्य सर्गो में मिलावट की गयी है ताकि वो मर्यदापुर्षोत्तम राम को बदनाम कर सके।

एक बात जो बहुत महत्वपूर्ण है कि उत्तर कांड के 94वें सर्ग के 27वें श्लोक में कहा गया है –
आदिप्रभृति वै राजन् पञ्चसर्ग शतानि च।
काण्डानि षट्कृतानीह सोत्तराणि महात्मना ।। ।
अर्थात्‌ - उन महात्मा ने आदि से लेकर अंत तक पाँच सौ सर्ग और छः काण्डों का निर्माण किया है ।इनके सिवा इन्होंने उत्तरकांड की भी रचना की है ।

उपर्युक्त श्लोकार्थ में उत्तर कांड जिस प्रकार बाहर से साटा हुआ लगता है , उसका निर्णय विद्वान स्वयं कर सकते हैं की उसे बाद में जोड़ा गया है।

उत्तरकांड के सर्ग 111 के प्रथम श्लोक मे कहा है

एतावदेतदाख्यानं सोत्तरं ब्रह्मपूजितम्।
रामायणमिति ख्यातं मुख्यं वाल्मीकिना कृतम्।।
(वाल्मीकि रामायण 7 :111:1)

पुन: वही इसी सर्ग के11 श्लोक में कहा है -

एतदाख्यानमायुष्यं सभविष्यं सहोत्तरम्।
कृतवान प्रचेतसः पुत्रस्तद् ब्रह्माप्यन्वमन्यत।।
(वाल्मीकि रामायण 7: 111:11)

प्रश्न यह है कि बार-बार उत्तरकांड को अलग करके याद क्यों करवाया जा रहा है क्या वाल्मीकि को 6 से आगे की गिनती नहीं आती थी ? वह सीधे-सीधे 7 कांड ना कहकर 6 कांड +1कांड क्यों कह रहे हैं? क्या वाल्मीकि जैसे उत्कृष्ट विद्वान द्वारा पद पूर्ति अथवा छंद की मात्राओं या अक्षरों की पूर्ति के लिए ऐसा करना और बार-बार करना उचित प्रतीत होता है । निश्चय ही दाल में कुछ काला है समूची रचना में वह कांड अलग से मिलाया गया प्रतीत होता है।

महाभारत के वनपर्व के अंतर्गत अध्याय 274 से 291 तक रामोपाख्यान के नाम से रामचरित्र का वर्णन हुआ है वहां भी रामायण रावण वध के पश्चात अयोध्या लौटने पर राम के राज्याभिषेक के साथ समाप्त हो जाती है इससे पता चलता है कि महाभारत की रचना होने तक रामायण में उत्तर कांड का प्रक्षेप नहीं हुआ था।

श्री राम का पुष्पक विमान लेकर शम्बूक को खोजना एक और असत्य कथन हैं क्यूंकि पुष्पक विमान तो श्री राम जी ने अयोध्या वापिस आते ही उसके असली स्वामी कुबेर को लौटा दिया था-सन्दर्भ- युद्ध कांड 127/59

अब्रवीच्च तदा रामस्तद्विमानमनुत्तमम् ||
वह वैश्रवणं देवमनुजानामि गम्यताम् |
(वाल्मीकि रामायण 6 : 127 : 59)

अर्थात -तब श्री राम ने पुष्पक विमान को आदेश किया कि कुबेर को ले जाओ मैं कुबेर को जाने की अनुमति देता हूँ।

युद्धकाण्ड के अंतिम सर्ग में महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण पूरी होने की बात भी लिखी है " वाल्मीकिना कृतम् " लिखकर ये बताया है कि अब ये रामायण यही तक समाप्त हो चुकी हैं -

शृणोति य इत्दं काव्यं पुरा वाल्मीकिना कृतम् |
श्रद्दधानो जितक्रोधो दुर्गाण्यतितरत्यसौ ||
अर्थात - जो वाल्मीकि द्वारा रचित इस काव्य रचना को पढ़ेगा वो क्रोध और कठिनाईयों पर विजय पायेगा।

सनातन धर्म में जब कोई ऋषि महर्षि कोई ग्रन्थ लिखता था तो वो ग्रन्थ के पूर्ण होने पर अन्त में अपना नाम जरूर अंकित कर देता था जैसे चाणक्य अपने ग्रन्थों के अंत में " इति कौटिल्य’ अर्थात् कौटिल्य का मत है लिखा है " लिखते थे।

रामायणमिदं कृत्स्नं शृण्वतः पठतः सदा ।
प्रीयते सततं रामःस हि विष्णुः सनातनः।।
(वाल्मीकि रामायण 6:128 :119)
अर्थात् - जो इस संपूर्ण रामायण का पाठ करता है, उस पर सनातन विष्णु स्वरूप भगवान् श्री राम सदा प्रसन्न रहते हैं ।

पुनः आगे कहते हैं –
एवमेतत् पुरावृत्तमाख्यानं भद्रमस्तु वः।
(वाल्मीकि रामायण 6:128:121)
अर्थात् -लव कुश कहते हैं -श्रोताओ!आपलोगों का कल्याण हो ।यह पूर्वघटित आख्यान ही इस प्रकार रामायण काव्य के रूप में वर्णित हुआ है।

युद्ध कांड में रामायण की संपूर्णता का इससे और बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है । युद्धकाण्ड के अन्त में 'फलश्रुति' दी हुई है जो किसी ग्रन्थ की समाप्ति की सूचक होती है।

【 अन्य प्रमाण 】

भारत में वाल्मीकि रामायण को आधार बना कर कई प्रादेशिक भाषाओं में रामायण लिखी गई है। अब हम क्रम से इन पर विचार करते हैं-

[1]- कम्ब रामायण – इसका रचना काल लगभग बारहवी शताब्दी है। संस्कृत से भिन्न उपलब्ध भाषाओ में यह सबसे पुरानी रामायण है। इसके लेखक महाकवि कम्बन है। इसकी मूल भाषा तमिल है। अब तक इसके हिन्दी में (पहला अनुवाद 1962में बिहार राजभाषा परिषद् ) कई अनुवाद हो चुके है। इसमें भी बालकाण्ड से लेकर युद्धकाण्ड तक 6 ही काण्ड है। यह भी भगवान् श्रीराम जी के राज्य अभिषेक व् श्री राम जी द्वारा दरबार में सभी के लिए प्रशंसा वचन के साथ पूरी होती है। यह बहुत अधिक वाल्मीकि रामायण से मिलती है। यदि महाकवि कम्बन जी के सामने वाल्मीकि रामायण में उत्तर काण्ड होता तो वह इसका वर्णन जरुर करते। परन्तु उनके सामने जो वाल्मीकि रामायण उपलब्ध थी उसमे 6 काण्ड ही थे।

[2] रंगनाथ रामायण – इसका रचना काल लगभग 1380 इस्वी है. इसकी भाषा तेलुगु है परन्तु अब इसका हिंदी में अनुवाद (1961 में बिहार राजभाषा परिषद द्वारा) चुका है। यह रामायण श्रीराम जी के राज्य अभिषेक व् दरबार के दृश्य के साथ पूरी हो जाती है । इसमें बालकाण्ड से लेकर युद्ध काण्ड तक 6 काण्ड है। यदि इसके रचियता के सामने उपलब्ध वाल्मीकि रामायण में उत्तर काण्ड होता तो वह अवश्य ही उसका उल्लेख करते परन्तु उनके सामने जो वाल्मीकि रामायण उपलब्ध थी उसमे 6 काण्ड ही थे।

[3] - तोरवे रामायण – इसका रचना काल लगभग 1500 इस्वी है. इसकी मूल भाषा कन्नड़ है परन्तु अब इसका हिंदी में अनुवाद चुका है। इसके लेखक तोरवे नरहरी जी है। यह रामायण श्रीराम जी के राज्य अभिषेक, सुग्रीव आदि को विदा करना, रामराज्य में सुख शान्ति, दरबार के दृश्य तथा रामायण पढने के लाभ के वर्णन के साथ पूरी हो जाती है । इसमें बालकाण्ड से लेकर युद्ध काण्ड तक 6 काण्ड है. यदि इसके रचियता के सामने उपलब्ध वाल्मीकि रामायण में उत्तर काण्ड होता तो वह अवश्य ही उसका उल्लेख करते परन्तु उनके सामने जो वाल्मीकि रामायण उपलब्ध थी उसमे 6 काण्ड ही थे।

[4] 'चम्पू-रामायण' जो महाराज भोज के समय में लिखा गया था, में स्पष्ट लिखा है कि यह वाल्मीकीय रामायण का सार है। इस चम्पू-रामायण में युद्धकाण्ड तक का ही विषय है अत: उत्तरकाण्ड प्रक्षिप्त है।

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【 श्री रामचन्द्र जी महाराज का चरित्र 】

वाल्मीकि रामायण में श्री राम चन्द्र जी महाराज द्वारा वनवास काल में निषाद राज द्वारा लाये गए भोजन को ग्रहण करना (बाल कांड 1/37-40) शबर (कोल/भील) जाति की शबरी से बेर खाना (अरण्यक कांड 74/7) यह सिद्ध करता हैं की शुद्र वर्ण से उस काल में कोई भेद भाव नहीं करता था।

श्री रामचंद्र जी महाराज वन में शबरी से मिलने गए। शबरी के विषय में वाल्मीकि मुनि लिखते हैं की वह शबरी सिद्ध जनों से सम्मानित तपस्वनी थी।(अरण्यक कांड 74/10) इससे यह सिद्ध होता हैं की शुद्र को रामायण काल में तपस्या करने पर किसी भी प्रकार की कोई रोक नहीं थी। नारद मुनि वाल्मीकि रामायण (बाल कांड 1/16) में लिखते हैं राम श्रेष्ठ, सबके साथ समान व्यवहार करने वाले और सदा प्रिय दृष्टी वाले हैं।

अयोध्या कांड अध्याय 63 श्लोक 50-51 तथा अध्याय 64 श्लोक 32-33 में रामायण को श्रवण करने का वैश्यों और शूद्रों दोनों के समान अधिकार का वर्णन हैं।
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【 रामायण चारो वर्णों के लिए 】

पठन् द्विजो वाक् ऋषभत्वम् ईयात् |
स्यात् क्षत्रियो भूमि पतित्वम् ईयात् ||
वणिक् जनः पण्य फलत्वम् ईयात् |
जनः च शूद्रो अपि महत्त्वम् ईयात् ||
( वाल्मीकि रामायण 1 :1 :100 )

अर्थात - इस रामायण को पढ़ने वाला अगर व्यक्ति ब्राह्मण होगा तो वो अच्छा वक्ता बनेगा , वह अपने भाषण में श्रेष्ठता प्राप्त करता है, और यदि वह क्षत्रिय व्यक्ति हो, उसे भूमि-अधिकार प्राप्त हो, और अगर वह व्यापार से वैश्य व्यक्ति हो तो वह वह धन-लाभ अर्जित करता है, और यदि वह मजदूर वर्ग (नौकरी करने वाला) से शूद्र व्यक्ति होता है, तो वह व्यक्तिगत महानता को प्राप्त करता है " इस प्रकार नारद ऋषि ने वाल्मीकि ऋषि-को रामायण का सार दिया।
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【 यज्ञ में सभी वर्णों का पूर्ण सम्मान सत्कार 】

सर्वे वर्णा यथा पूजां प्राप्नुवन्ति सुसत्कृता:।
न चावज्ञा प्रयोक्तव्या कामक्रोधवशादपि।।
(वालमीकि रामायण 1:13:13)

अर्थ -सभी वर्णों के लोगों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए। अपमान नहीं होना चाहिए क्रोध पर लोभ पर वासना के द्वारा किसी को भी।

ब्राह्मणान् क्षत्रियान् वैश्यान् शूद्रांश्चैव सहस्रशः।
समानयस्व सत्कृत्य सर्वदेशेषु मानवान्॥
(वालमीकि रामायण 1: 13:19)

अर्थ-महर्षि वसिष्ठ आदेश देते है-‘हजारों की संख्या में ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों और शूद्रों को सभी प्रदेशों से सत्कारपूर्वक बुलाओ। उनको श्रद्धा-सत्कारपूर्वक भोजन कराओ ।

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