सनातन धर्म को अगर ऐतिहासिक दृष्टि से देखे तो इसके 5 प्रमुख सम्प्रदाय है -शैव , शाक्त , स्मार्त , वैष्णव तथा वैदिक संप्रदाय।
_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳
【वैष्णव संप्रदाय 】
ये भगवान विष्णु और उनके अवतारों को आराध्य मानने वाला सम्प्रदाय है। इस सम्प्रदाय का प्राचीन नाम 'भागवत धर्म' या 'पांचरात्र मत' है। यह चंदन का तिलक खड़ा लगाते हैं।
कई प्रमुख वैष्णव सम्प्रदाय है जैसे-
(1) श्री वैष्णव जिसके प्रवर्तक प्रमुख आचार्य रामानुजाचार्य हुए।
(2) ब्रह्म वैष्णव जिसके प्रवर्तक प्रमुख आचार्य माधवाचार्य हुए।
(3) रुद्र वैष्णव जिसके प्रवर्तक प्रमुख आचार्य वल्लभाचार्य हुए ।
(4) कुमार वैष्णव जिसके प्रवर्तक आचार्य निम्बार्काचार्य हुए ।
(5)गौड़ीय वैष्णव जिसके प्रवर्तक आचार्य श्री चैतन्य महाप्रभु हुए।
(6)रामानंदी वैष्णव जिसके प्रवर्तक आचार्य श्रीरामानंदाचार्य हुए ।
वर्तमान समय में मशहूर संस्था इस्कॉन चैतन्य महाप्रभु के गौड़ीय वैष्णव मत को ही मानती है।
_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳
【शैव संप्रदाय】
भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव कहते हैं।शैव आड़ा तिलक या त्रिपुंड्र लगाते हैं । पहले शैवमत के मुख्यतः दो ही सम्प्रदाय थे- पाशुपत और आगमिक। फिर इन्हीं से कई उपसम्प्रदाय हुए, जिनकी सूची निम्नांकित है -
(1) पाशुपात शैव - यह सम्प्रदाय शिव को सर्वोच्च शक्ति मानकर उपासना करने वाला सबसे पहला हिन्दू सम्प्रदाय है।
(2) लघुलीश पाशुपत,
(3) कापालिक,
(4) नाथ सम्प्रदाय,
(5) गोरख पन्थ
(6) आगमिक शैव ,
(7) काश्मीर शैव,
(8.) वीर शैव
(9) लिंगायत
इनमें से तो कुछ संप्रदाय अत्यंत प्राचीन है और इनका एक इतिहास रहा है।
_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳
【शाक्त सम्प्रदाय】
आदि शक्ति अर्थात देवी की उपासना करने वाला सम्प्रदाय शाक्त सम्प्रदाय कहलाता है।शाक्त लोग रक्त चंदन का आड़ा टीका लगाते हैं । शाक्त लोग देवीमाहात्म्य, देवीभागवत पुराण तथा शाक्त उपनिषदों (जैसे, देवी उपनिषद) पर आस्था रखते हैं।
_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳
【स्मार्त सम्प्रदाय】
स्मार्त नाम संस्कृत शब्द 'स्मृति' से निकला है । स्मार्त अपनी उपासना में पाँच मुख्य देवताओं-शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य एवं गणेश की पंचायतन पूजा करते हैं।
श्रृंगेरी, कर्नाटक में उनके द्वारा स्थापित मठ स्मार्त सम्प्रदाय का केन्द्र बना हुआ है, तथा इस मठ के प्रमुख जगदगुरु, दक्षिण भारत एवं गुजरात में स्मार्तों के आध्यात्मिक गुरु हैं ।
आज मौजूदा समय में अधिकांश सनातनी इस संप्रदाय को मानने वाले है ज्यादातर इतिहासकार इस संप्रदाय की आलोचना इसके जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था तथा कट्टर जातिनीति के कारण करते है।
_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳
【वैदिक सम्प्रदाय】
इस संप्रदाय के लोग निर्गुण ब्रह्म के उपासक होते थे । प्राचीन काल में ऐसे कई महर्षि हुवे जिहोने निर्गुण ब्रह्म को माना और इनका सिद्धांतिक ग्रन्थ केवल वेद है जिसके कारण ये मूलतः परमेश्वर को ओम् बोलते है , यही कारण है कि कालान्तर आर्य समाज , ब्रह्मा समाज जैसे कई सामाजिक संगठन बने जिन्होंने वेदों और वैदिक उपनिष्दों को सर्वोपरि माना।
_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳_̳
सौहार्दिक सन्देश - सनातन धर्म भले ही प्रमुख 5 साप्रदायों में विभाजित हो लेकिन हमारे महाऋषियों , आचार्यों ने हमेशा दूसरे मतों को सम्मान दिया क्युकी सनातन ग्रन्थ कहते है सत्य एक है उसको जानने के तरीके अलग हो सकते है , हमारे आचार्यों ने कभी एक दूसरे से मत को लेकर झगड़ा नहीं किया इसलिए मौजूदा समय में हमारा विश्वास जिस भी संप्रदाय में हो आखिर में हमसब सनातन धर्म के अटूट हिस्से हैं , यही चीज़ हम सबको सनातनी बनाती है। ये वही महान सनातन धर्म है जिसमे आजीवक और चार्वाक जैसे नास्तिक दर्शनों का भी सम्मान किया गया उन्हें कभी सनातन धर्म से बहिष्कृत नहीं किया गया।
1 टिप्पणियाँ
कस्तं चराचरगुरुं निर्वैरं शान्तविग्रहम् ।
जवाब देंहटाएंआत्मारामं कथं द्वेष्टि जगतो दैवतं महत् ॥ २ ॥
kas taṁ carācara-guruṁ
nirvairaṁ śānta-vigraham
ātmārāmaṁ kathaṁ dveṣṭi
jagato daivataṁ mahat
Synonyms
kaḥ — who (Dakṣa); tam — him (Lord Śiva); cara-acara — of the whole world (both animate and inanimate); gurum — the spiritual master; nirvairam — without enmity; śānta-vigraham — having a peaceful personality; ātma-ārāmam — satisfied in himself; katham — how; dveṣṭi — hates; jagataḥ — of the universe; daivatam — demigod; mahat — the great.
Translation
Lord Śiva, the spiritual master of the entire world, is free from enmity, is a peaceful personality, and is always satisfied in himself. He is the greatest among the demigods. How is it possible that Dakṣa could be inimical towards such an auspicious personality?