सनातन धर्म की महिमा





यह लेख लिखने का कारण सनातन धर्म के मूल स्वरूप से अवगत कराना तथा इससे जुड़ी भ्रांतियों का निवारण करना है ।

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【आस्तिक दर्शन 】


आस्तिक दर्शन वैदिक दर्शन परम्परा में उन दर्शनों को कहा जाता है जो वेदों को प्रमाण मानते हैं।


🍁6 प्रमुख आस्तिक दर्शन हैं -

न्याय दर्शन , वैशेषिक दर्शन , सांख्य दर्शन , योग दर्शन , वेदान्त दर्शन और मीमांसा दर्शन ।

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【 नास्तिक दर्शन 】

नास्तिक दर्शन वैदिक दर्शन परम्परा में उन दर्शनों को कहा जाता है जो वेदों को प्रमाण नहीं मानते हैं।


🍁4 प्रमुख नास्तिक दर्शन है -

आजीविक दर्शन, जैन दर्शन, चार्वाक दर्शन और बौद्ध दर्शन।


🍁 जैन और बौद्ध दर्शन वर्तमान में अलग धर्म का स्वरूप कैसे ले चुके हैं ?


वास्तव में जैन और बौद्ध दर्शन मत आरंभ में कोई धर्म नहीं थे यह एक दर्शन सिद्धांत है जो आगे चलकर अलग धर्म का स्वरूप ले लिए और इन्हें धर्म की मान्यता भारत के संविधान ने ही दी है , नहीं तो अगर देखा जाए तो आज भी सनातन धर्म में वैष्णव , शैव , शाक्त आदि ना जाने कितने संप्रदाय और कितनी दर्शन पंथ के लोग सनातन धर्म का अभिन्न अंग है और सभी आपसी समन्वय से रहते हैं ।

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【 प्रमुख संप्रदाय 】


शुक्ल यजुर्वेद की काण्व शाखा का ही नाम 'एकायन शाखा' है पांचरात्रिक मत (वैष्णव /भागवत संप्रदाय ) के प्रवर्तक पाँच ऋषि हैं जिनके नाम औपगायन, कौशिक, शांडिल्य, भरद्वाज तथा मौंजायन और यह काण्व शाखा के अध्येता बतलाए गए हैं । इसी तरह शैव और शाक्त भी वेद की शाखाएं थी जो आगे चलकर संप्रदाय बने इसके अतिरिक्त स्मार्त संप्रदाय के प्रवर्तक आदि शंकराचार्य है । गणपत्य सम्प्रदाय गणपति को सगुण ब्रह्म के रूप में मानता एवं पूजता है। सौर संप्रदाय लगभग वर्तमान में लगभग खत्म है इसलिए इसे लिखने का कोई तात्पर्य नहीं है ।


🍁5 प्रमुख सम्प्रदाय है -शैव , शाक्त , स्मार्त , वैष्णव तथा गणपत संप्रदाय।

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【 सनातन धर्म और हिन्दू धर्म पर मंथन 】


🍁हिन्दू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई ?


भाषाविदों के अनुसार संस्कृत भाषाओं की 'स्' ध्वनि (संस्कृत का व्यंजन 'स्') ईरानी (पूर्व में के यूनानी) भाषाओं की 'ह्' ध्वनि में बदल जाती है इसलिए सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा में जाकर हफ्त हिन्दू में परिवर्तित हो गया (अवेस्ता : वेंदीदाद, फर्गर्द 1:18) , इसके बाद ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को 'हिन्दू' नाम दिया। यूनानीयो के पतन के बाद जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए तो उन्होंने भारत के मूल धर्मावलंबियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया। इस तरह भारतीयों को 'हिन्दू' शब्द मिला।


🍁हिन्दू शब्द का क्या अर्थ है ?


हिन्दू शब्द सिन्धु नदी का अपभ्रंश है और अपभ्रंश शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है व्याकरण के नियमों के अनुसार इसलिए हिन्दू शब्द का कोई अर्थ नहीं है ।


🍁सनातन शब्द का क्या अर्थ है?


श्रीपाद रामानुजाचार्य सनातन को "शाश्वत" शब्द द्वारा परिभाषित करते हैं अर्थात जिसका न तो आदि है और न ही अंत।


🍁क्या हिन्दू धर्म या हिन्दू जैसा कोई शब्द ग्रंथो में मौजूद है ?


" हिन्दू धर्म " जैसा शब्द किसी भी वैदिक ग्रन्थ में नहीं , न ही किसी नए लिखे गए ग्रंथ में मौजूद है । " हिन्दू " शब्द बाद के लिखे गए ग्रंथ में मौजूद है । वास्तव में समय के साथ धीरे धीरे लोगो ने हिन्दू शब्द को धर्म की मान्यता दे दी है , जबकि हिन्दू भौगोलिकता के आधार पर दिया गया नाम है उनलोगो के लिए जो सिंधु नदी के दूसरे तरफ रहते है ,इसलिए भारतवर्ष में रहने वाला चाहे जिस भी धर्म का व्यक्ति हो , वो हिन्दू है ।


'बृहस्पति आगम' सहित अन्य आगम ईरानी या अरबी सभ्यताओं लिखे गए थे। अतः उसमें 'हिन्दुस्थान' का उल्लेख स्पष्ट है । इसके अतिरिक्त कुछ तंत्र ग्रंथो में भी उल्लेख है की हिंसा का त्याग करने वाला हिन्दू कहा जाता है लेकिन यहां भी केवल इन ग्रन्थों के रचनाकार ने हिन्दू शब्द को संस्कृत का साबित करने का प्रयास किया है किन्तु कही भी किसी नए ग्रन्थ में भी" हिन्दू धर्म " नहीं लिखा क्यूंकि उन्होंने भी कभी नहीं सोचा होगा की आज जिस शब्द से भारतियों की पहचाना जा रहा है कल वही शब्द शास्त्रीय अज्ञानता के कारण धर्म का नाम बन जायेगा । चार वेद, ग्यारह प्राचीन उपनिषद, छ: दर्शन, रामायण, महाभारत, गीता, मनुस्मृति आदि किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में हिन्दू शब्द नहीं मिलता । मेरुतन्त्र, शब्द कल्पद्रुम, पारिजात हरण, माधव दिग्विजय आदि सब नवीन ग्रन्थ हैं, यह सब इस्लाम के उदय के दौरान और उसके बाद लिखे जाते रहे है ,अतः मान्य नहीं, प्रमाण नहीं ।


कुछ लोग हिंदू शब्द को ऋग्वेद में ढूंढने का बौद्धिक विलास जैसा करते हैं, परंतु वेद और उसके अंग में जैसे ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद, शतपथ ब्राह्मण,तैत्तिरीय ब्राह्मण , ताण्ड्य ब्राह्मण, कठ ब्राह्मण , गोपथ ब्राह्मण आदि किसी एक हजार सत्ताईस वेद की शाखाओं में हिन्दू शब्द उपलब्ध नहीं है ।


🍁सनातन धर्म और हिन्दू में मूल अंतर क्या है ?


सनातन धर्म शास्वत है जिसका कोई न शूरवात है न अंत है , यह धर्म सृष्टि के समस्त प्राणियों पर लागू होता है । हिन्दू शब्द केवल भारतवर्ष में रहने वाले लोगो पर ही लागू होता है क्यूंकि ये शब्द भौगोलिकता के आधार पर दिया गया भारतवर्ष के वाशियों की पहचान है और हिन्दू शब्द शास्वत भी नहीं है । " हिन्दू धर्म " जैसा कोई चीज़ नहीं है , ये बोलना इसलिए मूर्खता होगी ।


🍁 आज हिंदू धर्म शब्द का प्रयोग प्रमुखता से क्यों किया जाता है ?


भारत में हुआ छोटा सा भी धार्मिक परिवर्तन पूरे विश्व पर असर डालता है यही कारण है कि हमारे संविधान में हमारे धर्म का नाम सनातन धर्म ना लिखकर हिंदू धर्म लिखा गया है इसीलिए आधिकारिक रूप पर अब यही प्रयोग होता है किंतु आवश्यकता है कि भारत सरकार इसे बदलकर सनातन धर्म करदे जिससे आने वाले समय में इसका मूल स्वरूप वापस आ सके ।

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【 क्या सनातन धर्म शास्त्रों में वर्णित है ? 】


हमारी आत्मा शाश्वत है ,परमात्मा शाश्वत है और जो निर्धारित नियम (धर्म) परमात्मा ने सबके लिए बनाये है वो भी शास्वत है इसलिये हमारा धर्म भी सनातन है ।हमारे धर्म का कोई संस्थापक नहीं इसलिए ये आदि से है और अंत तक रहेगा क्यूंकि ये सनातन धर्म है ।


🍁सहायता के बदले में किसी न किसी तरीके से ईश्वर हमारी भी समय आने पर मदत करता है ये सनातन धर्म का सिद्धांत है -


कृते च प्रतिकर्तव्यमेष धर्मः सनातनः |

(वाल्मीकि रामायण : सुंदरकांड सर्ग 1 श्लोक 114)

अर्थ - जब किसी को सहायता प्रदान की जाती है तो उसको भी सहायता प्रदान होती है , यह सनातन धर्म सिद्धांत है


🍁वेदानुसार सनातन का अर्थ -


सनातनमेनमहुरुताद्या स्यात पुनण्रव्

( अथर्ववेद 10:8:23)

अर्थ - सनातन उसे कहते हैं जो, जो आज भी नवीकृत है ।


'सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।


🍁 ईश्वर सनातन है और वो सनातन धर्म का रक्षक है-


त्वम् अक्षरं परमं वेदितव्यं त्वम् अस्य विश्वस्य परं निधानम् ।

त्वम् अव्ययः शाश्वत-धर्म-गोप्ता सनातनस् त्वं पुरुषो मतो मे ॥ १८ ॥

(गीता 11:18)

अर्थ - आप ही जानने योग्य (वेदितव्यम्) परम अक्षर हैं; आप ही इस विश्व के परम आश्रय (निधान) हैं । आप ही सनातन धर्म (शाश्वत धर्म ) के रक्षक हैं और आप ही सनातन पुरुष हैं,ऐसा मेरा मत है।


🍁 सनातन धर्म की उत्पत्ति सृष्टि के आरंभ से ही ईश्वर से हुई है यही कारण है की इसका कोई संस्थापक नहीं है -


त्वत्त: सनातनो धर्मो रक्ष्यते तनुभिस्तव ।

धर्मस्य परमो गुह्यो निर्विकारो भवान्मत: ॥ १८

(श्रीमद भागवतम 3:16:18)

अर्थ - सनातन धर्म आपसे ही उत्पन्न हुआ है, आपके अवतारों द्वारा ही समय-समय पर उसकी रक्षा होती है तथा निर्विकार स्वरूप आप ही धर्म के परम गुह्य रहस्य हैं - यह शास्त्रों का मत है।


🍁 जब वेद नष्ट हो जायेंगे तब उनकी पुनः साक्षात्कार सप्तऋषियों के तप द्वारा होगी जिससे सनातन धर्म की रक्षा हो सके -


चतुर्युगान्ते कालेन ग्रस्ताञ्छ्रुतिगणान्यथा ।

तपसा ऋषयोऽपश्यन्यतो धर्म: सनातन: ॥ ४ ॥

(श्रीमद भागवतम 8:14:4)

अर्थ - चतुर्युगी के अन्त में समय के उलट-फेर से, जब श्रुतियाँ नष्ट प्राय हो जाती हैं, तब सप्तर्षिगण अपनी तपस्या से पुनः उनका साक्षात्कार करते हैं। उन श्रुतियों से ही सनातन धर्म की रक्षा होती है।


🍁 सुव्यवहारिक रहना चाहिए क्यूंकि यही सनातनी होने के लक्षण है -


सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् ।

प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः ॥ १३८

(मनुस्मृति 4 : 138)

अर्थ - सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये । प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये ; यही सनातन धर्म है ॥


🍁परमब्रह्म के ऊपर की ओर मूल वाला और नीचे की ओर शाखा वाला यह प्रत्यक्ष जगत सनातन पीपल का वृक्ष की तरह है अर्थात ब्रह्म और संसार का सम्बन्ध भी सनातन है -


ऊर्ध्वमूलोऽवाक्‍शाख एषोऽश्वत्थः सनातनः।

तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म तदेवामृतमुच्यते।

तस्मिंल्लोकाः श्रिताः सर्वे तदु नात्येति कश्चन। एतद्वै तत्‌ ॥(कठोपनिषद् 2:3:1)

अर्थ - यह सनातन पीपल की तरह है जिसका मूल ऊपर है, किन्तु इसकी शाखाएँ नीचे हैं। 'वही' तेजोमय है, 'वही' एकमेव 'ब्रह्म' 'वही' 'अमृत' कहलाता है; 'उसी' में समस्त लोक आश्रित हैं, कोई भी 'उसके' परे नहीं जाता। यही है 'वह' जिसकी तुम्हें अभीप्सा है।


🍁भगवान बुद्ध कहते है जैसे सत्य शाश्वत है वैसे ही सनातन धर्म है तथा किसी से शत्रुता ख़तम करने को भी सनातन धर्म बताते है -


सच्‍चं वे अमता वाचा, एस धम्मो सनन्तनो।

(त्रिपिटक - सुत्तपिटक: खुद्दकनिकाय: सुत्तनिपात 3:3)

अर्थ - सत्य ही अमर वाणी है, यही सनातन धर्म हैं।


न ही वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनं

अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो।

( धम्मपद :यमक वग्ग :5)

अर्थ - वैर से वैर शांत नहीं होते, बल्कि अवैर से शांत होते हैं। यही सनातन धर्म हैं।


🍁 जैन ग्रन्थ आदिपुराण में कहा गया है की सनातन धर्म की हर प्रकार के प्रयत्न से इसकी रक्षा करनी चाहिए -


ततः सर्वप्रयत्नेन रक्ष्यो धर्मः सनातनः ।

(आदिपुराण 4:198)

अर्थ - सभी प्रकार से प्रयत्न करके इस सनातन धर्म की रक्षा करनी चाहिए।


वर्तमान में भी अधिकांश जैनाचार्य अपने धर्म को सनातन धर्म ही बताते हैं ।


🍁महाभारत में सनातन धर्म के कुछ लक्षण बताये है जो ईश्वर के बनाये नियम है -


अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा |

अनुग्रहश्च दानं च सतां धर्मः सनातनः ||


गीताप्रेस - (महाभारत :वनपर्व 297 : 35)


(Bhandarkar Oriental Research Institute BORI) - (महाभारत :वनपर्व 281: 34)


अर्थ - मन, वाणी व क्रिया द्वारा समस्त प्राणियों के साथ कभी द्रोह न करना तथा सभी प्राणियों पर दया करना व दान देना - ये सभी 'सनातन' धर्म हैं।


🍁महाभारत में सनातन धर्म के कुछ मूल सिद्धांतों की चर्चा की गयी है जिसका पालन प्रत्येक सनातनी को करना चाहिए -


एष धर्मो महायोगो दानं भूतदया तथा ।

ब्रह्मचर्ये तथा सत्यमनुक्रोशो धृतिः क्षमा ।।

सनातनस्य धर्मस्य मूलमेतत् सनातनम्।


गीताप्रेस - (महाभारत : आश्वमेधिकपर्व 91:33)


(Bhandarkar Oriental Research Institute BORI) - (महाभारत : आश्वमेधिकपर्व 94:31)


अर्थ - यही धर्म है, यही महान योग है,दान देना, प्राणियों पर दया करना, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन, सत्य भाषण, करुणा, धैर्य, क्षमा-शीलता। ये सनातन धर्म के सनातन मूल सिद्धांत है।

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