जिहाद का अर्थ नीचे लिखी आयतों में सुस्पष्ट है :
(i) सबसे पहले अल्लाह ने मानव समाज को दो गुओं में बांटा (कुरान, ५८ः१९-२२)। जो अल्लाह और मुहम्मद पर ईमान लाते हैं वे अल्लाह की पार्टी वाले (मोमिन) हैं और जो ऐसा नहीं करते, वे शैतान की पार्टी वाले काफ़िर हैं, और मोमिनों का कर्त्तव्य है कि वे कफ़िरों के देश (दारूल हरब) को जिहाद द्वारा दारुल इस्लाम बनायें। साथ अल्लाह ने कहा ”निस्ंसदेह काफ़िर तुम्हारे (ईमानवालों के) खुले दुश्मन हैं” (कुरान,४ः१०१, पृ. २३९)।
(ii) ”तुम पर (गैर-मुसलमानों से) युद्ध फर्ज़ किया गया है और वह तुम्हें अप्रिय है औरहो सकता है एक चीज़ तुम्हें बुरी लगे और वह तुम्हारे लिए अच्छी हो, और हो सकता है कि एक चीज़ तुम्हें प्रिय हो ओर वह तुम्हारे लिए बुरी हो। अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।” (कुरान,२ : २१६, पृ. १६२)
(iii) ”हे नबी ! ‘काफ़िरों’ और ‘मुनाफ़िकों’ से जिहाद करो और उनके साथ सखती से पेश आओ। उनका ठिकाना ‘जहन्नम’ है ओर वह क्या ही बुरा ठिकाना है” (कुरान,९ः७३, पृ. ३८०)
(iv) ”किताब वाले’ (ईसाई, यहूदी आदि) जो न अल्लाह पर ‘ईमान’ लाते हैं और न ‘आख़िरत’ पर और न उसे ‘हराम’ करते हैं जिसे अल्भ्लाह और उसके ‘रसूल’ ने ‘हराम’ ठहराया है और वे न सच्चे ‘दीन’ को अपना ‘दीन’ बनाते हैं, उनसे लड़ो यहाँ तक कि अप्रतिष्ठित होकर अपने हाथ से ज़िज़िया देने लगें।” (कुरान,९ः२९, पृत्र ३७२)।
(v) ”फिर हराम महीने बीत जाऐं तो मुश्रिकों (मूर्ति पूजकों) को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़द्यों और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। यदि वे तौबा कर लें और ‘नमाज’ क़ायम करें और ‘जकात’ दें तो उनका मार्ग छोड़ दो।” (कुरान,९ः५, पृ ३६८)।
(vi) ”निःसन्देह अल्लाह ने ‘ईमान वालों से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए जन्नत है। वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो वे मारते भी हैं और मारे भी हैं और मारे भी जाते हैं। वह अल्लाह के ज़िम्मे (जन्नत का) एक पक्का वादा है कि ‘तौरात’ और ‘इंजील’ और कुरान में; और अल्लाह से बड़कर अपने वादे को पूरा करने वाला कौन हो सकता है ? ।” (कुरान,९.१११, पृ. ३८८)।
(vii) ”वही है जिसने अपने ‘रसूल’ को मार्गदर्शन और सच्चे ‘दीन’ (सत्य धर्म) के साथ भेजा ताकि उसे समस्त ‘दीन’ पर प्रभुत्व प्रदान करें, चाहे मुश्रिकों को यह नापसन्द ही क्यों नह हो।” (कुरान,९ः३३, पृत्र ३७३)।
(viii) इतना ही नहीं, जिहाद न करने वाले के लिए अल्लाह की धमकी भी है-” यदि तुम (जिहाद के लिए) न निकलोगे तो अल्लाह तुम्हें दुख देने वाली यातनाएँ देगा और तुम्हारे सिवा किसी और गिरोह को लाएगा और तुम अल्लाह का कुछ न बिगाड़ पाओगे।” (कुरान,९ः३९, पृ. ३७४)।
उपरोक्त आयतों से सुस्पष्ट है कि ”जिहाद ”फी सबी लिललाह”, यानी ”अल्लाह के लिए जिहाद’ का अर्थ है-१) गैर-मुसलमानों से युद्ध करना, उन्हें कत्ल करना और उनके धर्म को नष्ट करके सारी दुनिया में अल्लाह के सच्चे ‘दीन’ (धर्म) इस्लाम को स्थापित करना। (२) इसके लिए अल्लाह ने मुसलमानों की सम्पत्ति सहित उनकी जिन्दगी इस शर्त पर खरीद ली है कि यदि वे मारे गए तो उन्हें ”जन्नत’ दी जाएगी। (३) गैर-मुसलमानों से युद्ध करना तुम्हारा फ़र्ज है चाहे तुम्हें बुरा ही क्यों न लगे।
अतः प्रत्येक मुसलमान का तन मन धन से गैर-मुसलमानों को इस्लाम में धर्मान्तरित करने और उनके देश को इस्लामी राज्य बनाने के लिए युद्ध करना ही ‘जिहाद फी सबी, लिल्लाह’ या ‘अल्लाह के लिए जिहाद’ का असली मतलब है
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