- अंग्रेजो के आंने से पूर्व भारत में यह कोई जानता ही नही था की द्रविड़ Dravid और आर्य दो अलग-अलग जातियां है । यह बात तो देश के आने के बाद ही सामने लाई गई । अंग्रेजों को यह कहना भी इसलिए पड़ा क्योंकि वे आर्यों को भारत में हमलावर बनाकर लाये थे । हमलावर की कथा चलाई गई और इसे सही सिद्ध करने के उद्देश्य से द्रविड़ की कल्पना की गई अन्यथा भारत के कसी भी साहित्यिक, धार्मिक या अन्य प्रकार के ग्रन्थ में इस बात का कोई उल्लेख नहीं मिलता की द्रविड़ Dravid और आर्य Arya कहीं बाहर से आए थे । यदि थोड़ी देर के लिए इस बात को मान भी लिए जाए की आर्यों ने विदेशो से अकार यहाँ के मूल निवासियों को युद्धों में हराया था तो पहले यह बताना होगा की उन मूल निवासियों के समय इस देश का नाम क्या था ? क्योंकि जो भी व्यक्ति जहाँ भी रहते हैं, वे उस स्थान का नाम अवश्य रखते है जबकि किसी भी प्राचीन भारतीय ग्रन्थ तथाकथित मूल निवासियों की किसी परंपराए मान्यता में सब ऐसे किसी भी नाम का उल्लेख नहीं मिलता ।
- इस सन्धर्भ में मेकाले का प्रमाण देता हु मेकाले ने अपने पिता को एक पत्र लिखा था जिसमे उसने उलेख किया है कि हिन्दुओ को अपने धर्म और धर्मग्रन्थो के खिलाफ भड़का कर कर अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार कर इसाईयत को बढ़ावा देना था ,देखे मेकाले का वह पत्र –
इसी तरह life and letter of maxmullar में भी maxmullar का एक पत्र मिलता है जिसको उसने १८६६ में अपनी पत्नि को लिखा था पत्र निम्न प्रकार है – ” *I hope I shall finish the work and I feel convinced though I shall not live to see it yet this addition of mine and the translation of the vedas will here after tell to great extent on the fate of india and on the growth of millions of souls in that country. it is the root of their religion and to show them what the root is I feel sure, is the way of uprooting all that has sprung from it during the last three thousand years.”
अर्थात मुझे आशा है कि मै यह कार्य सम्पूर्ण करूंगा और मुझे पूर्ण विश्वास है ,यद्यपि मै उसे देखने को जीवित न रहूँगा, तथापि मेरा यह संस्करण वेद का आध्न्त अनुवाद बहुत हद तक भारत के भाग्य पर और उस देश की लाखो आत्माओ के विकास पर प्रभाव डालेगा | वेद इनके धर्म का मूल है और मुझे विश्वास है कि इनको यह दिखना कि वह मूल क्या है -उस धर्म को नष्ट करने का एक मात्र उपाय है ,जो गत ३००० वर्षो से उससे (वेद ) उत्त्पन्न हुआ है |
इसी तरह एक और दितीय पत्र मेक्समुलर ने १६ दि. १८६८ को भारत के तत्कालीन मंत्री ड्यूक ऑफ़ आर्गायल को लिखा था – ” the ancient religion of india is doomed , if christianity does not step in , whose fault will it be ?
अर्थात भारत के प्राचीन धर्म का पतन हो गया है , यदि अब भी इसाई धर्म नही प्रचलित होता है तो इसमें किसका दोष है ?
इन सबसे विदेशियों का उद्देश हम समझ सकते है |
- क्या आर्य इरान के निवासी थे – इस षड्यंत्र के तहत इन्होने आर्य को इरान का निवाशी बताया है और आज भी सीबीएसई आदि पुस्तको में यही पढ़ाया जाता है कि आर्य इरान से भारत आये जबकि ईरानियो के साहित्य में इसका विपरीत बात लिखी है वहा आर्यों को भारत का बताया है और आर्य भारत से ईरान आये ऐसा लिखा है जिसे हम सप्रमाण उद्द्रत करते है – “चंद हजार साल पेश अज जमाना माजीरा बुजुर्गी अज निजाद आर्यों अज कोह हाय कस्मने मास्त कदम निहादन्द | ब चू आवो माफ्त न्द दरी जा मसकने गुजीदन्द द आरा बनाम खेश ईरान खिया द न्द |”( जुगराफिया पंज किताऊ बनाम तदरीस दरसाल पंजुम इब्त दाई सफा ७५ ,कालम १ सीन अव्वल व चहारम अज तर्क विजारत मुआरिफ व शुरशुद
अर्थात कुछ हजार साल पहले आर्य लोग हिमालय पर्वत से उतर कर यहा आये और यहा का जलवायु अनुकूल पाकर ईरान में बस गये | इस प्रमाण से आर्यों के ईरान से आने की कपोल कल्पना का पता चलता है और उसका खंडन भी हो जाता है |
- क्या आर्य उतरी ध्रुव से आये थे ?
इस मान्यता को बल दिया बाल गंगाधर तिलक ने उन्होंने आर्यों को उतरी ध्रुव का बताया लेकिन जब उमेश चंद विद्या रत्न ने उनसे इस बारे में पूछा तो उनका उत्तर काफी हास्य पद था |
देखिये तिलक जी ने क्या बोला –“आमि मुलवेद अध्ययन करि नाई | आमि साहब अनुवाद पाठ करिया छे “( मनेवर आदि जन्म भूमि पृष्ठ १२४ )
अर्थात – हमने मुलवेद नही पढ़ा , हमने तो साहब (विदेशियों ) का किया अनुवाद पढ़ा है | उतरी ध्रुव विषयक अपनी मान्यताओ के संधर्भ में तिलक महोदय ने लिखा है –
“It is clear that soma juice was extracted and purified at neight in the arctic ”
अर्थ – ” उतरी ध्रुव में रात्रि के समय सोमरस निकला जाता था “|
तिलक जी की इस मान्यता का उत्तर देते हुए नारायण भवानी पावगी ने अपने ग्रन्थ ” आर्यों वर्तालील आर्याची जन्मभूमिं ” में लिखा है – ” किन्तु उतरी ध्रुव में सोम लता होती ही नही ,वह तो हिमालय के एक भाग मुंजवान पर्वत पर होती है ” इससे स्पष्ट है कि आर्यों के उत्तरी ध्रुव के होने की लेखक की अपनी कल्पना थी |
- समस्या आती रहेंगी आर्यों से पहले हमे आर्य शब्द के बारे में जानना चाहिय |
- आर्य शब्द की मीमासा – आर्य शब्द का प्रयोग अनेक अर्थो में वेदों और वैदिक ग्रंथो में किया गया है , जिसे मुख्यत विशेषण ,विशेष्य के लिए प्रयोग किया गया है | निरुक्त ६/२६ में यास्क ” आर्य: ईश्वरपुत्र:” लिख कर आर्य का अर्थ ईश्वर पुत्र किया है | ऋग्वेद ६/२२/१० में आर्य का प्रयोग बलवान के अर्थ में हुआ है |ऋग्वेद १/१०३/३ ऋग. १/१३०/८ और १०/४९/३ में आर्य का प्रयोग श्रेष्ठ के अर्थ में हुआ है |
इसी तरह वेदों के एक मन्त्र में उपदेश करते हुए कहा है ” कृण्वन्तो विश्वार्यम ” अर्थात सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाओ यहाँ आर्य शब्द श्रेष्ट के अर्थ में लिया गया है यदि आर्य कोई जाति या नस्ल विशेष होती तो सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाओ ये उपदेश नही होता |
- बौद्धों के विवेक विलास में आर्य शब्द -” बौधानाम सुगतो देवो विश्वम च क्षणभंगुरमार्य सत्वाख्या यावरुव चतुष्यमिद क्रमात |” ” बुद्ध वग्ग में अपने उपदेशो को बुद्ध ने चार आर्य सत्य नाम से प्रकाशित किया है -चत्वारि आरिय सच्चानि (अ.१४ ) “ धम्मपद अध्याय ६ वाक्य ७९/६/४ में आया है जो आर्यों के कहे मार्ग पर चलता है वो पंडित(विद्वान् )है |
- जैन ग्रन्थ रत्नसार भाग १ पृष्ठ १ में जैनों के गुरुमंत्र में आर्य शब्द का प्रयोग हुआ है – णमो अरिहन्ताण णमो सिद्धाण णमो आयरियाण णमो उवज्झाणाम णमो लोए सब्ब साहूणम “यहा आर्यों को नमस्कार किया है अर्थात सभी श्रेष्ट को नमस्कार • जैन धर्म को आर्य धर्म भी कहा जाता है | [पृष्ठ xvi, पुस्तक : समणसुत्तं (जैनधर्मसार)] जैनों में साध्वियां अभी तक आर्या वा आरजा कहलाती हैं
- पाश्चात्य विद्वानों की दृष्टि में आर्य भारत के मूल निवासी –
(१) यवन राजदूत मैगस्थ नज लिखता है -भारत अनगिनत और विभिन्न जातियों में बसा हुआ है | इनमे से एक भी मूल में विदेशी नही थी , प्रत्युत स्पष्ट ही सारी इसी देश की है |
(२) नोबल पुरूस्कार विजेता विश्वविख्यात विद्वान् मैटरलिंक अपने ग्रन्थ सीक्रेट हार्ट में लिखता है ” It is now hardly to be contested that this source(of knowledge) is to be found in india.thence in all probability the sacred teaching spread into egypt,found its way to acient persia and chaldia , permeated the hebrew race and crept in greece and south of europe, finaaly reaching china and even america.”
अर्थात अब यह निर्विवाद है कि विद्या का मूल स्थान भारतवर्ष में पाया जाता है और सम्भवत यह पवित्र विद्या मिश्र में फेली | मिस्र से ईरान तथा कालदिया का मार्ग पकड़ा ,यहूदी जाति को प्रभावित किया ,फिर यूनान तथा यूरोप के दक्षिण भाग में प्रविष्ट हुई ,अंत में चीन और अमेरिका पंहुची |”
(३) इतिहासविद मयूर अपनी muir : original sanskrit text vol २ में कहता है ” यह निश्चित है कि संस्कृत के ग्रन्थ चाहे कितना भी पुराना हो आर्यों के विदेशी होने का कोई उलेख नही मिलता है |” (४)
विश्वविख्यात एलफिन्सटन अपनी पुस्तक ” elphinston:history of india vol1 “में लिखते है “न मनुस्मृति में न वेदों में आर्यों के बाहर से आने का कोई वर्णन प्राप्त नही होता है |
अब हम यही कह कर लेख समाप्त करना चाहेंगे कि आर्य कोई भी विदेशी जाति नही थी न ही सवर्णों ने विदेश से आकर यहा की संस्कृति को नष्ट किया ये सब यही के मूलनिवासी थे और आर्य एक विशेषण है जो किसी के साथ भी प्रयुक्त हो सकता है वनवासी ,शुद्र ,दलित सभी के साथ बस उसके कर्म श्रेष्ट हो रामायण में जाम्बवान ,हनुमान ,बालि ,सुग्रीव आदि वनवासी जातियों के लिए आर्य शब्द प्रयुक्त हुआ है अत: स्पष्ट है कि ये भी आर्य बन सकते है | अत: हमारा दलित भाइयो से आग्रह है कि देश की एकता के लिए इस झूट आर्यों के विदेशी होने को तियांजली दे देनी चाहिय और अपने आर्य महापुरुषों को पक्षपात रहित हो कर सम्मान देना चाहिय |
संधर्भित ग्रन्थ एवम पुस्तके –
(१) क्या वेदों में आर्यों और आदिवासियों का युद्ध का वर्णन है ?-श्री वेद्य रामगोपाल जी शास्त्री
(२) वैदिक सम्पति- रघुनन्दन शर्मा
(३) वेदार्थ भूमिका -स्वामी विद्यानंद सरस्वती
(४) निरुक्त-यास्क (भाषानुवाद-भगवतदत्त जी )
(५) बौद्धमत और वैदिक धर्म-स्वामी धर्मानंद जी
(६) भारतीय संस्कृति का इतिहास -प. भगवतदत्त
(७) कुलियात आर्य मुसाफिर -प. लेखराम जी
(८) भारतीय संस्कृति का इतिहास-स्वामी रामदेव
(९) बोलो किधर जाओगे – आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक जी
(१० ) शुद्र कौन थे – डा. भीमराव अम्बेडकर
११) आर्यों का आदिदेश -विद्यानंद सरस्वती
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