क्या कहता है गुरु ग्रन्थ साहिब इस्लाम के बारे में



गुरुनानक देव जी की यह प्रसिद्द उक्ति कि वेद कतेब कहो मत झूठे, झूठा जो ना विचारे अर्थात वेदों को जूठा मत कहो जूठा वो हैं जो वेदों पर विचार नहीं करता सिख पंथ को  हिन्दू सिद्ध करता है।

जहाँ तक इस्लाम का सम्बन्ध है गुरु ग्रन्थ साहिब इस्लाम के मान्यताओं से न केवल भारी भेद रखता हैं अपितु उसका स्पष्ट रूप से खंडन भी करता है।


 1. सुन्नत का खंडन 


ਕਾਜੀ ਤੈ ਕਵਨ ਕਤੇਬ ਬਖਾਨੀ ॥

 काजी तै कवन कतेब बखानी ॥

हे काजी ! तूने कौन-सा कतेब पढ़ा है ?


ਪੜ੍ਹਤ ਗੁਨਤ ਐਸੇ ਸਭ ਮਾਰੇ ਕਿਨਹੂੰ ਖਬਰਿ ਨ ਜਾਨੀ ॥੧॥ 

पड़्हत गुनत ऐसे सभ मारे किनहूं खबरि न जानी ॥१॥ 

तेरे जैसे कतेब पढ़ने एवं विचार करने वाले सभी नष्ट हो गए हैं। लेकिन किसी को भी ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ .


ਸਕਤਿ ਸਨੇਹੁ ਕਰਿ ਸੁੰਨਤਿ ਕਰੀਐ ਮੈ ਨ ਬਦਉਗਾ ਭਾਈ ॥

सकति सनेहु करि सुंनति करीऐ मै न बदउगा भाई ॥

मुसलमानों में स्त्री से आसक्ति-प्रेम के कारण सुन्नत करवाई जाती है लेकिन इसका संबंध अल्लाह के मिलन से नहीं। हे भाई ! इसलिए मैं (सुन्नत पर) विश्वास नहीं करता।


ਜਉ ਰੇ ਖੁਦਾਇ ਮੋਹਿ ਤੁਰਕੁ ਕਰੈਗਾ ਆਪਨ ਹੀ ਕਟਿ ਜਾਈ ॥੨॥

जउ रे खुदाइ मोहि तुरकु करैगा आपन ही कटि जाई ॥२॥

यदि अल्लाह ने मुझे मुसलमान बनाना था तो अपने आप ही सुन्नत जन्मजात हो जाती ॥ २॥


ਸੁੰਨਤਿ ਕੀਏ ਤੁਰਕੁ ਜੇ ਹੋਇਗਾ ਅਉਰਤ ਕਾ ਕਿਆ ਕਰੀਐ ॥

सुंनति कीए तुरकु जे होइगा अउरत का किआ करीऐ ॥

यदि सुन्नत करने से कोई मुसलमान बनता है तो औरत का क्या होगा ?


ਅਰਧ ਸਰੀਰੀ ਨਾਰਿ ਨ ਛੋਡੈ ਤਾ ਤੇ ਹਿੰਦੂ ਹੀ ਰਹੀਐ ॥੩॥

अरध सरीरी नारि न छोडै ता ते हिंदू ही रहीऐ ॥३॥

नारी तो अधागिनी है, जो मनुष्य के शरीर का आधा भाग है, उसे छोड़ा नहीं जा सकता। इसलिए हिन्दू बने रहना ही बेहतर है (सुन्नत का पाखण्ड नहीं करना चाहिए) ॥ ३॥


ਛਾਡਿ ਕਤੇਬ ਰਾਮੁ ਭਜੁ ਬਉਰੇ ਜੁਲਮ ਕਰਤ ਹੈ ਭਾਰੀ ॥

छाडि कतेब रामु भजु बउरे जुलम करत है भारी ॥

हे मूर्ख प्राणी ! कतेबों को छोड़कर राम नाम का भजन कर। निरर्थक विवादों में फँसकर तू भारी अत्याचार कर रहा है।


ਕਬੀਰੈ ਪਕਰੀ ਟੇਕ ਰਾਮ ਕੀ ਤੁਰਕ ਰਹੇ ਪਚਿਹਾਰੀ ॥੪॥੮॥

कबीरै पकरी टेक राम की तुरक रहे पचिहारी ॥४॥८॥

कबीर ने एक राम की टेक ही पकड़ी है तथा मुसलमान बुरी तरह ख्वार हो रहे हैं।॥ ४॥ ८॥


(गुरु ग्रन्थ साहिब : राग आसा कबीर - पृष्ठ 477)


अर्थात - कबीर जी कहते हैं ओ काजी तो कौनसी किताब का बखान करता है। पढ़ते हुऐ, विचरते हुऐ सब को ऐसे मार दिया जिनको पता ही नहीं चला। जो धर्म के प्रेम में सख्ती के साथ मेरी सुन्नत करेगा सो मैं नहीं कराऊँगा। यदि खुदा सुन्नत करने ही से ही मुसलमान करेगा तो अपने आप लिंग नहीं कट जायेगा। यदि सुन्नत करने से ही मुस्लमान होगा तो औरत का क्या करोगे? अर्थात कुछ नहीं और अर्धांगि नारी को छोड़ते नहीं इसलिए हिन्दू ही रहना अच्छा है। ओ काजी! क़ुरान को छोड़! राम भज१ तू बड़ा भारी अत्याचार कर रहा है, मैंने तो राम की टेक पकड़ ली हैं, मुस्लमान सभी हार कर पछता रहे है।


2. रोजा, नमाज़, कलमा, काबा का खंडन 


ਰੋਜਾ ਧਰੈ ਨਿਵਾਜ ਗੁਜਾਰੈ ਕਲਮਾ ਭਿਸਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥

रोजा धरै निवाज गुजारै कलमा भिसति न होई ॥

रोजा रखने, नमाज पढ़ने और कलमा पढ़ने से जन्नत (स्वर्ग) नहीं मिलती।


ਸਤਰਿ ਕਾਬਾ ਘਟ ਹੀ ਭੀਤਰਿ ਜੇ ਕਰਿ ਜਾਨੈ ਕੋਈ ॥੨॥

सतरि काबा घट ही भीतरि जे करि जानै कोई ॥२॥

अल्लाह का घर काबा तो तेरे अन्तर्मन के भीतर ही मौजूद है परन्तु मिलता तभी है यदि कोई इस भेद को जान ले ॥ २ ॥


(गुरु ग्रन्थ साहिब : राग आसा कबीर -पृष्ठ 480)

अर्थात - मुसलमान रोजा रखते हैं और नमाज़ गुजारते है। कलमा पढ़ते है।  और कबीर जी कहते  हैं  इन किसी से बहिश्त न होगी। इस घट (शरीर) के अंदर ही 70 काबा के अगर कोई विचार कर देखे तो।


3. बांग का खंडन


ਕਬੀਰ ਮੁਲਾਂ ਮੁਨਾਰੇ ਕਿਆ ਚਢਹਿ ਸਾਂਈ ਨ ਬਹਰਾ ਹੋਇ ॥

कबीर मुलां मुनारे किआ चढहि सांई न बहरा होइ ॥

कबीर जी उपदेश देते हैं कि हे मुल्ला ! तू मीनार पर बांग देने के लिए क्यों चढ़ता है, बांग सुनने वाला मालिक बहरा नहीं।


ਜਾ ਕਾਰਨਿ ਤੂੰ ਬਾਂਗ ਦੇਹਿ ਦਿਲ ਹੀ ਭੀਤਰਿ ਜੋਇ ॥੧੮੪॥

जा कारनि तूं बांग देहि दिल ही भीतरि जोइ ॥१८४॥

जिसके लिए तू बांग देता है, उसको तू अपने दिल में ही देख॥ १८४ ॥


(गुरु ग्रन्थ साहिब : राग आसा कबीर -पृष्ठ 1374)


अर्थात - कबीर जी कहते हैं की ओ मुल्ला। खुदा बहरा नहीं जो ऊपर चढ़ कर बांग दे रहा है। जिस कारण तू बांग दे रहा हैं उसको दिल ही में तलाश कर।



4. हिंसा (क़ुरबानी) का खंडन 


ਜਉ ਸਭ ਮਹਿ ਏਕੁ ਖੁਦਾਇ ਕਹਤ ਹਉ ਤਉ ਕਿਉ ਮੁਰਗੀ ਮਾਰੈ ॥੧॥

जउ सभ महि एकु खुदाइ कहत हउ तउ किउ मुरगी मारै ॥१॥

तुम्हारा कहना है कि सब में एक खुदा ही मौजूद है तो फिर मुर्गी कृो क्यों मार रहे हो॥ १॥


ਮੁਲਾਂ ਕਹਹੁ ਨਿਆਉ ਖੁਦਾਈ ॥

मुलां कहहु निआउ खुदाई ॥

हे मुल्ला ! मुझे बताओ, क्या यह खुदा का इंसाफ है,


ਤੇਰੇ ਮਨ ਕਾ ਭਰਮੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥

तेरे मन का भरमु न जाई ॥१॥ 

तेरे मन का भ्रम अभी दूर नहीं हुआ॥ १॥


ਪਕਰਿ ਜੀਉ ਆਨਿਆ ਦੇਹ ਬਿਨਾਸੀ ਮਾਟੀ ਕਉ ਬਿਸਮਿਲਿ ਕੀਆ ॥

पकरि जीउ आनिआ देह बिनासी माटी कउ बिसमिलि कीआ ॥

जीव (मुर्गी) को पकड़ कर लाया, शरीर को नाश कर दिया, उसकी मिट्टी को खत्म कर दिया।


ਜੋਤਿ ਸਰੂਪ ਅਨਾਹਤ ਲਾਗੀ ਕਹੁ ਹਲਾਲੁ ਕਿਆ ਕੀਆ ॥੨॥

जोति सरूप अनाहत लागी कहु हलालु किआ कीआ ॥२॥

जीव की ज्योति ईश्वर में ही मिल जाती है, फिर हलाल क्या किया॥ १॥


ਕਿਆ ਉਜੂ ਪਾਕੁ ਕੀਆ ਮੁਹੁ ਧੋਇਆ ਕਿਆ ਮਸੀਤਿ ਸਿਰੁ ਲਾਇਆ ॥

किआ उजू पाकु कीआ मुहु धोइआ किआ मसीति सिरु लाइआ ॥

वुजू किया, हाथ-मुंह धोकर पवित्र हुए तथा मस्जिद में सिर झुकाया गया


ਜਉ ਦਿਲ ਮਹਿ ਕਪਟੁ ਨਿਵਾਜ ਗੁਜਾਰਹੁ ਕਿਆ ਹਜ ਕਾਬੈ ਜਾਇਆ ॥੩॥

जउ दिल महि कपटु निवाज गुजारहु किआ हज काबै जाइआ ॥३॥

इन सबका क्या फायदा, जब दिल में कपट ही है तो नमाज अदा करने या हज्ज के लिए काबे में जाने का कोई लाभ नहीं॥ ३॥


गुरु ग्रन्थ साहिब : विलास प्रभाती कबीर - पृष्ठ 1350


अर्थात - कबीर जी कहते है ओ मुसलमानों। जब तुम सब में एक ही खुद बताते हो तो तुम मुर्गी को क्यों मारते हो। ओ मुल्ला! खुदा का न्याय विचार कर कह। तेरे मन का भ्रम नहीं गया है। पकड़ करके जीव ले आया, उसकी देह को नाश कर दिया, कहो मिटटी को ही तो बिस्मिल किया।  तेरा ऐसा करने से तेरा पाक उजू क्या, मुह धोना क्या, मस्जिद में सिजदा करने से क्या, अर्थात  हिंसा करने से तेरे सभी काम बेकार हैं।

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ਕਬੀਰ ਭਾਂਗ ਮਾਛੁਲੀ ਸੁਰਾ ਪਾਨਿ ਜੋ ਜੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ਖਾਂਹਿ ॥

कबीर भांग माछुली सुरा पानि जो जो प्रानी खांहि ॥

कबीर जी मांस-मछली व शराब पर एतराज जतलाते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति भांग, शराब पीते हैं, मांस-मछली का भोजन करते हैं,


ਤੀਰਥ ਬਰਤ ਨੇਮ ਕੀਏ ਤੇ ਸਭੈ ਰਸਾਤਲਿ ਜਾਂਹਿ ॥੨੩੩॥

तीरथ बरत नेम कीए ते सभै रसातलि जांहि ॥२३३॥

उनके तीर्थ, व्रत-उपवास, कर्म-धर्म सब निष्फल हो जाते है ॥२३३ ॥


(गुरु ग्रन्थ साहिब : विलास प्रभाती कबीर -पृष्ठ 1377)


अर्थात - कबीर जी कहते हैं जो प्राणी भांग, मछली और शराब पीते हैं, उनके तीर्थ व्रत नेम करने पर भी सभी रसातल को जायेंगे।

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ਰੋਜਾ ਧਰੈ ਮਨਾਵੈ ਅਲਹੁ ਸੁਆਦਤਿ ਜੀਅ ਸੰਘਾਰੈ ॥

रोजा धरै मनावै अलहु सुआदति जीअ संघारै ॥

हे काजी ! तू अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए रोज़े (व्रत) रखता है और अपने स्वाद के लिए जीवों का भी संहार करता है।


ਆਪਾ ਦੇਖਿ ਅਵਰ ਨਹੀ ਦੇਖੈ ਕਾਹੇ ਕਉ ਝਖ ਮਾਰੈ ॥੧॥

आपा देखि अवर नही देखै काहे कउ झख मारै ॥१॥

तू अपना मतलब ही देखता है, दूसरों का ध्यान नहीं रखता। तू क्यों निरर्थक ही भाग-दौड़ करता फिरता है ? ॥ १॥


ਕਾਜੀ ਸਾਹਿਬੁ ਏਕੁ ਤੋਹੀ ਮਹਿ ਤੇਰਾ ਸੋਚਿ ਬਿਚਾਰਿ ਨ ਦੇਖੈ ॥

काजी साहिबु एकु तोही महि तेरा सोचि बिचारि न देखै ॥

हे काजी ! सबका मालिक एक है, वह खुदा तेरे मन में भी मौजूद है लेकिन तू सोच-विचार कर उसे देखता नहीं।


ਖਬਰਿ ਨ ਕਰਹਿ ਦੀਨ ਕੇ ਬਉਰੇ ਤਾ ਤੇ ਜਨਮੁ ਅਲੇਖੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥

खबरि न करहि दीन के बउरे ता ते जनमु अलेखै ॥१॥ रहाउ ॥

हे कट्टरवादी धर्म के बावले ! तू उसका पता नहीं करता, इसलिए तेरा जीवन किसी लेखे में नहीं अर्थात् व्यर्थ है॥ १॥ रहाउ ॥


(गुरु ग्रन्थ साहिब : रास आगा कबीर- पृष्ठ 483)


अर्थात - ओ काजी साहिब तू रोजा रखता हैं अल्लाह को याद करता है, स्वाद के कारण जीवों को मारता है। अपना देखता हैं दूसरों को नहीं देखता हैं। क्यों समय बर्बाद कर रहा हैं। तेरे ही अंदर तेरा एक खुदा हैं। सोच विचार के नहीं देखता हैं। ओ दिन के पागल खबर नहीं करता हैं इसलिए तेरा यह जन्म व्यर्थ है।



वेद की मान्यताओं का मंडन एवं इस्लाम की मान्यताओं का खंडन गुरु ग्रन्थ साहिब स्पष्ट रूप से करते है। इस पर भी अब हठ रूप में कोई सिख भाई अलगाववाद की बात करता हैं तो वह न केवल अपने आपको अँधेरे में रख रहा हैं अपितु गुरु ग्रन्थ साहिब के सन्देश की अवमानना भी कर रहा हैं।

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