सनातन धर्म ही मानव धर्म है





1-जहां दूसरे धर्मों के धर्म ग्रन्थ दूसरे के लिए बैर का पाठ पढ़ाते है और अपनों के लिए प्रेम वही हमारा धर्म पूरे धरती की बात करता है

अयं बन्धु-रयं नेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥

(महोपनिषद्, अध्याय 4, श्‍लोक 71)

अर्थ - यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो सम्पूर्ण धरती ही परिवार है।

2-जहां दूसरे धर्म अपने धार्मिक कार्यों के अंत में केवल अपने ईस्वर की प्रसंशा करते है वही हमारे सनातन धर्म में पूरे ब्रह्माण्ड में शांति के लिए प्रार्थना की जाती है

सनातन धर्म के लोगों के लिए किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्य, संस्कार, यज्ञ आदि के आरंभ और अंत में इस शांति पाठ के मंत्रों का मंत्रोच्चारण करना अनिवार्य होता है।

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,
 पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, 
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

(यजुर्वेद 36 : 17)

अर्थ - हे परमात्मा , शांति कीजिए, वायु में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, हे परमपिता परमेश्वर शांति हो, शांति हो, शांति हो।

3- जहां दूसरे धर्मो के धर्म ग्रंथो में दूसरे धर्म  के लोगो को मार देने की बात लिखी है क्यूंकि वो लोग  उनके ईस्वर के नजर में वह तुच्छ है वही हमारे सनातन परमात्मा के नजर में सभी मनुष्य एक सामान है कोई बड़ा छोटा नहीं

अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभाय ।
-(ऋग्वेद 5/60/5)

अर्थ:-ईश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा।तुम सब भाई-भाई हो। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो।

4 - जहाँ पश्चिमी और अरबी ग्रन्थ क्रिस्चियन बनो और मुस्लिम बनो जैसी बातें बोलते है वही हमारे सनातन धर्म मनुष्य बनने की बात कहता है

मनु॑र्भव (ऋग्वेद 10/53/6)
अर्थ:- ईश्वर कहता है, "मनुष्य बनों"

5 - जहां दूसरे धर्मों के ग्रन्थ में स्त्री को पुरषो से नीचा दिखाया गया है वही हमारे सनातन धर्म में सब को एक समान बताया गया है

“यथैवात्मा तथा प्र॒त्रः प॒त्रेण दुहिता समा"
(मनुस्मृति 9/130)

अर्थ - पुत्र पुत्री के सामान होती है क्यूंकि वह भी पुत्र के तरह आत्मारूप है .

" स्ठुपायां दुहितवापि पुत्रे चात्मनि वा पुनः "
(महाभारत - विराटपर्व 72 : 6 )

अर्थ -"पुत्रवधू , पुत्री में तथा पुत्र में आत्मभेद नहीं है .


6- जहां दूसरे धर्मो में पर्यावरण रक्षा पर कोई विशेष  ध्यान नहीं दिया गया वही हमारे सनातन धर्म इस पर विशेष ध्यान देता है


"वनस्पति वन आस्थापयध्वम्"
(ऋग्वेद-10/101/1)
अर्थ -वन में वनस्पतियाँ उगाओ .

7-जहां दूसरे धर्म के लोग निर्दोष पशुओं की हत्या कर देते है वही हमारा सनातन धर्म इस्पे कहता है-


यस्मिन्त्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानत:
तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यत: (यजुर्वेद 40.7)
अर्थ-जो सभी आत्माओ में अपनी ही आत्मा को देखते हैं, उन्हें कहीं पर भी शोक या मोह नहीं रह जाता क्योंकि वे उनके साथ अपनेपन की अनुभूति करते हैं

व्रीहिमत्तं यवमत्तमथो माषमथो तिलम्।
एष वां भागो निहितो रत्नधेयाय दन्तौ मा हिंसिष्टं पितरं मातरं च ॥
(अथर्ववेद 6.140.2)

अर्थ - चावल , जौ, तिल खाओ ये अनाज विशेष रूप से आपके लिए हैं उन लोगों को न मारें जो पिता और मां होने में सक्षम हैं।


8-जहां दूसरे धर्म धार्मिक  हिंसा को बढ़ावा देते है वही सनातन धर्म का अहिंसा का सिद्धान्त है

अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः ।
अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते ।।
-(महाभारत : अनुशासन पर्व - 21/19)

अर्थ - अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तप है और अहिंसा परम सत्य है, क्योंकि उसी से धर्म की प्रवृत्ति होती है।

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